नई दिल्ली: आपने कई बार पुलिस वालों को अपराधियों का पीछा करते हुए देखा होगा, आपने उन्हें प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करते हुए भी ज़रूर देखा होगा और कई बार आपको यही पुलिस वाले आम लोगों पर खाकी वर्दी का रौब झाड़ते हुए भी दिखे होंगे . लेकिन पुलिस वालों को अपनी ही सुरक्षा की गुहार लगाते हुए शायद आपने कभी नहीं देखा होगा . वो भी दिल्ली पुलिस को.. जो देश की राजधानी की पुलिस है, जिसके कंधों पर दिल्ली की करीब दो करोड़ जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी है. आज दिल्ली पुलिस एक अलग ही भूमिका में नज़र आई . आज दिल्ली पुलिस प्रदर्शनकारियों को लाठियों से नहीं मार रही थी . बल्कि खुद अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन कर रही थी .


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अक्सर जब दिल्ली पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करती है तो प्रदर्शनकारियों की आंखों में आंसू आ जाते हैं उनके परिवार वाले भी रोने पर मजबूर हो जाते हैं. लेकिन आज दिल्ली पुलिस खुद रो रही थी . पुलिसकर्मियों की आंखों में आंसू थे और उनके परिवार भी बहुत दुख में थे .


आज दिल्ली पुलिस के हज़ारों कर्मचारियों ने वकीलों द्वारा की जा रही हिंसा के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया . हिंसा के इस सिलसिले की शुरुआत 2 नवंबर को हुई थी और इस हिंसा की जड़ में एक मामूली सा पार्किंग विवाद था .किसी भी देश के इतिहास में ऐसे मौके बहुत कम आते हैं जब लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाले...अपनी ही सुरक्षा की मांग करने लगते हैं . और आज दिल्ली में करीब 10 घंटों तक बिल्कुल ऐसा ही होता रहा .



प्रदर्शन करने वाले पुलिस कर्मियों का आरोप था 2 नवंबर की हिंसा के बाद...दिल्ली की अलग अलग अदालतों के बाहर प्रदर्शन के नाम पर वकीलों द्वारा पुलिस वालों पर हमले किए जा रहे हैं, उन्हें मारा-पीटा जा रहा है . आरोपों के मुताबिक साकेत कोर्ट में वकीलों ने बाइक सवार एक पुलिस कर्मी को बुरी तरह पीटा और इसी तरह दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत के बाहर भी एक बाइक सवार युवक की वकीलों द्वारा पिटाई की गई .


हिंसा की इन्हीं घटनाओं के विरोध में आज दिल्ली के हज़ारों पुलिस कर्मी सुबह से ही दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर जमा होने लगे और न्याय दिलाए जाने की मांग करने लगे. पुलिस कर्मियों के इस धरने और प्रदर्शन में उनके परिवार के लोग भी शामिल हुए . इन लोगों की सबसे बड़ी मांग थी कि ड्यूटी पर तैनात पुलिस वालों को सुरक्षा की गारंटी दी जाए और उनके हितों की रक्षा करने के लिए एक यूनियन का भी गठन किया जाए . दिल्ली के पुलिस कर्मियों का ये धरना करीब 10 घंटे के बाद खत्म हुआ लेकिन तब तक पूरा देश दिल्ली पुलिस का असहाय चेहरा देख चुका था .


इस मामले में ताज़ा अपडेट ये है कि प्रदर्शन करने वाले पुलिसकर्मियों की कुछ मांगे मान ली गई हैं . इनमें पुलिस कर्मियों पर हिंसा करने वालों के खिलाफ FIR की मांग और घायल पुलिसकर्मियों को मुआवज़ा देने की मांग बी शामिल है . इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टाफ की संख्या और बजट के मामले में दिल्ली पुलिस को देश की सर्वश्रेष्ठ पुलिस माना जाता है. लेकिन आज देश की सबसे मजबूत पुलिस फोर्स को न्याय मांगने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा .


पुलिस वालों का कहना था कि उन्हें अब वर्दी पहनने से डर लगता है...क्योंकि लोगों की रक्षा करने वाली यही वर्दी अब उन्हें भीड़ का निशाना बना रही है . जबकि वकीलों का कहना है कि शनिवार को तीस हज़ारी कोर्ट में हुई हिंसा के दौरान पुलिस की तरफ से गोलियां चलाई गईं...जिसमें कुछ वकील घायल हो गए .


ये कितनी बड़ी विडंबना है कि देश की जिस पुलिस पर जनता की रक्षा करने की जिम्मेदारी है वो आज अपने लिए ही Protection यानी सुरक्षा मांग रही है . दिल्ली पुलिस उस देश की पुलिस है जो सुपर पावर बनने के सपने देख रहा है. अब आप खुद सोचिए कि क्या अपनी सुरक्षा की मांग कर रही असहाय दिल्ली पुलिस एक सुपर पावर देश की राजधानी की सुरक्षा कर सकती है ? . दिल्ली में सिर्फ कानून की रक्षा करने वाले ही खतरे में नहीं है.


बल्कि दिल्ली की सड़कें भी पूरी तरह जाम हो चुकी हैं . दिल्ली की सड़कें किसी डेंजर जोन में बदल चुकी है . जहां ना तो वाहन चलाने की जगह और ना ही पैदल चलना संभव है .इसके अलावा दिल्ली की हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि यहां तीस साल के ऐसे युवाओं को फेफड़े का कैंसर हो रहा है जो सिगरेट तक नहीं पीते .


दिल्ली की नदियां भी अब जीवनदायनी नहीं रही..यमुना नदी के पानी में उगी सब्जियां आपके शरीर में जहर भर रही हैं, आपको गंभीर रूप से बीमार बना रही हैं . और तो और जिस मोबाइल फोन नेटवर्क के ज़रिए आप पूरी दुनिया के संपर्क में रहते हैं वो भी दिल्ली में आकर दम तोड़ देता है .


अब आप खुद सोचिए कि क्या ये सब एक सुपर पावर देश की राजधानी के लक्ष्ण हो सकते हैं . राजधानी तो छोड़िए..ये सारे लक्ष्ण एक सामान्य से शहर के भी नहीं होने चाहिए . लेकिन हमारे देश में सब चलता है वाली सोच ने..देश की राजधानी को एक असहाय शहर में बदल दिया है . जहां ना कानून व्यवस्था ठीक है, ना हवा साफ है, ना सड़कों पर चलने के लिए जगह है और जहां मोबाइल फोन के Signals भी ठीक से काम नहीं करते .


कल हमने आपको DNA में बताया था कि कैसे शनिवार को तीस हज़ारी कोर्ट में...पार्किंग विवाद को लेकर दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच कहासुनी हो गई और ये कहासुनी बाद में हिंसा में बदल गई . हिंसा की इन घटनाओं के Videos देखकर आप कह सकते हैं कि कानून के ये दोनों रखवाले...कानून की दहलीज़ पर ही एक दूसरे की गैरकानूनी Lynching कर रहे हैं .


आज पुलिसकर्मियों को शांत कराने के लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को खुद सामने आना पड़ा . उन्होंने पुलिस कर्मियों से काम पर लौटने की अपील की . लेकिन उनकी इस अपील का भी प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों पर कोई असर नहीं हुआ और वो दोषी वकीलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते रहे .


नाराज़ पुलिसकर्मियों पर...दिल्ली पुलिस कमिश्नर की इस अपील का कोई असर नहीं हुआ और उनका धरना प्रदर्शन जारी रहा . इसके बाद शाम को करीब सवा 6 बजे दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर प्रदर्शनकारियों को समझाने पहुंचे . लेकिन उनकी बातों का भी कोई ख़ास असर नहीं हुआ...दिल्ली के स्पेशल पुलिस कमिश्नर अपने Juniors को ये भरोसा दिला रहे थे कि उनकी मांगे मान ली जाएंगी लेकिन पुलिस वाले उनके हितों की रक्षा करने वाली... वेलफेयर यूनियन का गठन किए जाने की मांग पर अड़े रहे .


पुलिस कर्मियों की मांग ये भी थी कि तीस हज़ारी कोर्ट में हुई हिंसा के मामले में सस्पेंड किए गए पुलिस वालों को बहाल किया जाए और घायल पुलिसकर्मियों को मुआवज़ा दिया जाए . इसके बाद रात आठ बजे...दिल्ली पुलिस कर्मियों द्वारा ये धरना प्रदर्शन खत्म कर दिया गया लेकिन तब तक इन पुलिस वालों के दर्द का एहसास पूरे देश को हो चुका था .


दिल्ली के पुलिसकर्मी अपने ही महकमे के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो दूसरी तरफ दिल्ली के वकील भी इस हिंसा के विरोध में हड़ताल पर चले गए . हालांकि देश भर के वकीलों का प्रतिनिध्त्व करने वाली सबसे बड़ी संस्था बार काउंसिल का कहना है कि वकीलों को हड़ताल खत्म कर देनी चाहिए .बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने उन वकीलों के नाम भी मांगे हैं...जिन पर पुलिसकर्मियों की पिटाई के आरोप हैं .


यानी अब वकीलों की सबसे बड़ी संस्था को भी ये बात समझ में आ गई है कि इस मामले में वकीलों द्वारा कानून को हाथ में लिया गया और अपने पद और प्रतिष्ठा का गलत इस्तेमाल किया गया . आपने अक्सर देखा होगा कि न्याय की देवी की मूर्ति के हाथ में दो तराजू होते हैं और उसकी आंखों पर काली पट्टी बंधी होती है . कहा जाता है कि न्याय की देवी सिर्फ सबूतों के आधार पर फैसला सुनाती है और अपने तराजू में सबको बराबरी से तौलती है .


लेकिन दिल्ली के पुलिस वालों कों कहीं ना कहीं ये लग रहा है कि न्याय व्यवस्था भी उनके साथ इंसाफ नहीं कर रही है. प्रदर्शन कर रहे पुलिस कर्मियों का कहना है कि तीस हज़ारी कोर्ट में हुई हिंसा को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिया गया आदेश एक तरफा है और अदालत में उनका पक्ष ठीक से नहीं रखा गया .रविवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले की तत्काल सुनवाई की थी . अदालत ने अपने फैसले में इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे और दिल्ली पुलिस के दो बड़े अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया था .


आज जब दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक और दूसरे पुलिस अधिकारियों ने नाराज़ पुलिसकर्मियों को समझाने की कोशिश की..तो भी इनका गुस्सा शांत नहीं हुआ और ये अपने Seniors के सामने भी नारेबाज़ी करते रहे . ज़ाहिर है ये पल इन बड़े बड़े पुलिस अधिकारियों के लिए बहुत मुश्किल रहा होगा . क्योंकि इन पर अपने जूनियर्स और साथी पुलिस वालों को अनुशासित रखने की भी जिम्मेदारी है. लेकिन आज पुलिसकर्मियों के गुस्से के सामने ये बड़े बड़े पुलिस अधिकारी भी असहाय नज़र आए .