Bhiwani Hindi News: इस साल देश 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा, लेकिन भिवानी के गांव रोहनात में आजादी का जश्न नहीं मनाया जाता है. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए गांव रोहनात ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि यहां लोग नहीं मनाते आजादी का पर्व. जानें कहानी.
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Independence Day 2023: Bhiwani News: अंग्रेजी हुकूमत को खत्म हुए लंबा अरसा बीत गया. आजादी के जश्र को आज देश 77वां स्वतंत्रता दिवस समारोह के रूप में मनाने जा रहा है, लेकिन भिवानी के गांव रोहनात के लोगों के लिए यह आजादी बेमानी है. वे आज भी अंग्रेजों की दी हुई सजा को भुगत रहे हैं. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए गांव रोहनात ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह के आदेश पर 29 मई 1857 को गांव रोहनातवासियों ने क्रांतिकारियों का साथ देते हुऐ अंग्रेजी हुकूमत पर आक्रमण बोल दिया था. रोहनातवासियों ने तोशाम, हांसी व हिसार में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.
रोहनातवासियों ने हांसी में सरकारी खजाना लूटा. उन्होंने 12 अंग्रेज अफसर हिसार में और 11 हांसी में मारे. इससे क्रोधित होकर अंग्रेजों ने रोहनात गांव को तोप से उड़ा दिया. जिससे गांव में भगदड़ मच गई. बचे-कुचे लोगों को अंग्रेजों ने हांसी की सड़क के बीच रोड रोलर से कुचला दिया गया. हांसी की यह सड़क आज भी लाल सड़क के नाम से जानी जाती है. गांववालों को दी गई मौत के ग्वाह कुंवा और बरगद का पेड़ गांव में आज भी मौजूद है. 14 सितंबर1857 को गांव को बागी घोषित कर दिया और अंग्रेजों ने गांव को नीलाम करने की ठान ली.
शहीद गांव के ग्रामीणों ने बताया कि 20 जुलाई 1857 को जमीन नीलाम करने की प्रक्रिया शुरू की. महीने के अंदर गांव की लगभग 20656 बीघे और 19, बिसवे कृषि योग्य व गैर कृषि योग्य भूमि की नीलामी आठ हजार सौ रूपये में कर दी. जिसे आसपास के गांवों के 61 व्यक्तियों ने खरीदा. नीलामी का चौथा भाग 2025 रूपये मौके पर जमा करवा दिऐ गए. बेदखल होने के कारण गांव के किसान अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने को विवस हो गए. बस गांवो में कुंआ, तलाब और बरगद के पेड़ को नीलाम नहीं किया था. बाकी पूरा गांव समेत जमीन को भी नीलाम कर दिया था.
उन्होंने बताया कि इसी कुएं में गावों के लोगों को 1857 में डालकर मार दिया था. यह कुंआ आज भी मौजूद है. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो लोगों ने अंग्रेजों की दी सजा वापिस लेने की मांग की, लेकिन आश्वासन के बजाय लोगों को कुछ न मिला. तत्कालीन संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरों ने रोहनातवासियों को मुआवजे व जमीन हिसार के पास बीड गांव में देने की बात कही. इसी दौरान 1 नवंबर 1966 को हरियाणा एक अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गया. रोहनातवासियों ने हरियाणा सरकार के सामने मांगे रखी, लेकिन सरकार ने खजाना में पैसा न होने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया. इस प्रकार रोहनातवासियों को जमीन वापिस देने की बात आज तक पूरी न हो सकी. लोगों का कहना है कि शहीदों के गांव के साथ सरकार का यह बर्ताव आमजन की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है. यह सरकार की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हैं. शहीदों ने अपना खून बहाकर देश को आजादी दिलवाई थी.
बता दें कि यहां बरगद के पेड़ पर गांव के लोगों को फांसी लगाकर मार दिया था. तभी से रोहनात गांववासी आजादी का पर्व न ही स्वतंत्रता दिवस और न ही गणतंत्रता दिवस मनाया जाता है. यहां तक की गांव में तिरंगा भी नहीं फहराया जाता. क्योंकि गांववासियों का मानना है कि वे आज भी गुलामी की दासतां को झेल रहे हैं. कहने को तो रोहनात गांव को शहीद गांव का दर्जा प्राप्त है, लेकिन गांववासियों को अंग्रेजों की सजा से कब तक मुक्ति मिलेगी यह भविष्य के गर्भ में छिपी है.
यहां लोगों का कहना है कि अंग्रेजों की गुलामी आज भी हम सजा के रूप में भुक्त रहे हैं. सरकार को यह सजा आजादी मिलते ही खत्म कर देनी चाहिए थी. सरकार द्वारा रोहनात गांव को आदर्श गांव का दर्जा दिया गया है. लोगों को सिर्फ इसी बात का मलाल है कि आज भी जो शहीदों की जमीन को निलाम किया गया था वह शहीदों के परिवारों को वापिस नहीं मिली. कई आजादी की जंग लडने वाले तत्कालीन सरकारों से गुहार लगाकर थक गए, लेकिन आज तक इस मामले में सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. सरकार द्वारा गांव को सभी मूलभूत सुविधाएं दी गई हैं.
समय-समय पर सरकारें आई, लेकिन किसी ने स्थाई समाधान नहीं निकाला. शहीदी दिवस पर 23 मार्च 2018 को गांव में सीएम मनोहर लाल ने खुद आकर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था. गांव की मांगे मान ली थी, लेकिन आज तक न ही गांव में प्लाट मिले हैं और न ही गांव में अग्रेजों के समय नीलाम की गई जमीन वापिस मिली है. लोग पिछले एक साल से धरने पर बैठे हैं. एक व्यक्ति की इस दौरान मौत भी हो गई है, लेकीन अब तक किसी ने कोई सुनवाई हुई है.
Input: नवीन शर्मा