1984 दिल्ली में क्यों भड़के सिख विरोधी दंगे, जानिए कब क्या हुआ?
1984 Anti-Sikh Riots: 31 अक्टूबर 1984 में को भारत की राजधानी दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई. जिसके बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे हुए और हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई.
रेनू अकर्णीया/ नई दिल्ली: 31 अक्टूबर 1984 में को भारत की राजधानी दिल्ली ने आजादी के बाद ऐसे दंगे कभी नहीं देखे थे. भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की उनके दो अंगरक्षकों ने की हत्या कर दी थी. जिसके बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगों के भड़क गए थे. कई दिनों तक दिल्ली के कुछ सिख रिहायशी इलाकों क्षेत्रों में जारी रहे. इन दंगों में दिल्ली में तीन हजार की संख्या में सिखों की हत्या हुई. इनके घरों, दुकानों को जलाया और लूटा गया और इनको मौत के घाट उतारा गया था. चलिए जानते हैं कि आखिर यह क्यों हुआ और कब क्या-क्या हुआ.
1984 का सिख दंगे से जुड़ी पूरी टाइमलाइन:
5 जून 1984- पंजाब में सिख आतंकवाद को दबाने के लिए इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) की शुरुआत की. ऑपरेशन में आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाला समेत कई की मौत हो गई और इस कार्रवाई में स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंचा था. भिंडरावाले की मौत और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के नुकसान का बदला लेने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी. जिसकी सूचना ऑल इंडिया रेडियो की रिपोर्ट में है.
31 अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्हें दिल्ली के AIIMS ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था. वहीं विदेश यात्रा से लौट रहे राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह (Giani Zail Singh) जब इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनकर हवाई अड्डे से सीधआ एम्स के पास पहुंचे तो उनकी गाड़ी पर हमला हुआ. इसके बाद दिल्ली के कई इलाकों में सिखों के खिलाफ दंगे भड़के जिसकी शुरुआत त्रिलोकपुरी से हुई.
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इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) को उसी दिन देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी.
1 नवंबर 1984 को सिख दंगों में पूर्वी दिल्ली के पहला सिख मारा जाता है. सबसे ज्यादा बदमाशों के निशाने पर गुरुद्वारे थे. इन दंगों में सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके त्रिलोकपुरी, शाहदरा, गीता कॉलोनी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी और पालम कॉलोनी और पुलिस हस्तक्षेप वाले इलाके जैसे फर्श बाजार और करोलबाग में हत्याएं और बड़ी हिंसा देखने को मिली.
2 नवंबर 1984 को दिल्ली में कर्फ्यू की घोषणा की गई, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया. हालांकि सेना को पूरे शहर में तैनात किया गया पर पुलिस ने सेना का सहयोग नहीं किया.
3 नवंबर 1984 की शाम तक पुलिस और सेना ने मिलकरर हिंसा को कम करने का काम किया. हिंसा ग्रस्थ इलाकों की बिजली और पानी की स्पलाई को काट दिया गया था. हिंसा के दौरान सिखों को जिंदा बचने के लिए अपने बाल तक काटने पड़े थे.
PTI की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में ही लगभग 2700 लोग मारे गए थे औक देशभर में मरने वालों का संख्या 3,500 के करीब थी.
मई 2000 में सिख दंगों से जुड़े केस की जांच के लिए जी. टी. नानावती कमीशन (G.T. Nanavati Commission) का गठन किया गया था.
24 अक्टूबर 2005, पांच साल बाद CBI ने नानावती कमीशन की सिफारिश पर केस दर्ज किया गया.
दिसंबर 2007 में सिख विरोधी दंगों के एक और गवाह दुष्यंत कुमार ने कई टीवी चैनलों को इंटरव्यू दिया. जिसमें उसने कहा था कि CBI कभी जांच के लिए उसके पास नहीं आई . तत्कालीन मुख्य विपक्षी दल BJP ने इस मामले में तत्कालीन CBI प्रमुख सुरेश पचौरी पर सवाल खड़े किए, लेकिन उन्होंने इस मामले में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया था.
1 फरवरी 2010 को ट्रायल कोर्ट ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार, बलवान खोकर, महेंद्र यादव, कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल, किशन खोकर, महा सिंह और संतोष रानी को आरोपी के तौर पर समन जारी किया गया.
30 अप्रैल 2013 को कोर्ट ने सज्जन कुमार को बरी कर दिया. जिसके बाद 19 जुलाई 2013 को CBI ने हाईकोर्ट (High Court) में सज्जन कुमार को बरी किए जाने के खिलाफ अपील की और 22 जुलाई 2013 को हाईकोर्ट ने सज्जन कुमार को CBI की दायर याचिका पर नोटिस जारी किया.
17 दिसंबर 2018 को हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई. वहीं बाकी के आपराधी बलवान खोकर, भागमल और गिरधारी लाल की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा गया और महेंद्र यादव और किशन खोकर की सजा को अदालत ने 10 साल कर दिया.