अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में SC ने फैसला रखा सुरक्षित, केस को बड़ी बेंच को भेजने की मांग
Advertisement
trendingNow0/india/delhi-ncr-haryana/delhiharyana1534401

अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में SC ने फैसला रखा सुरक्षित, केस को बड़ी बेंच को भेजने की मांग

दिल्ली बनाम केंद्र सरकारः प्रशासनिक अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार मांग रही दिल्ली सरकार की याचिका पर SC की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी की. कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.

अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में SC ने फैसला रखा सुरक्षित, केस को बड़ी बेंच को भेजने की मांग

ऋषभ गोयल/नई दिल्लीः अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार मांग रही दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा. आज सुनवाई के आखिरी दिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मामले की सुनवाई बड़ी बेंच से होनी चाहिए. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि केंद्र दिल्ली को अराजकता के हवाले नहीं कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है. ऐसे में सॉलिसिटर जनरल का बड़ी बेंच से सुनवाई की मांग का औचित्य नहीं दिखता. हालांकि सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्होंने दिसंबर में ही इस मामले को बड़ी बेंच को भेजे जाने की मांग की थी और उस वक्त चीफ जस्टिस ने कहा था कि अंतिम दौर की सुनवाई के समय इस मुद्दे को देखेंगे.

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल को लिखित दलीलें दाखिल करने की अनुमति दे दी है. इससे पहले केंद्र सरकार ने SC को बताया था कि 2017 के बाद से दिल्ली सरकार से उपराज्यपाल को भेजी गई सभी 18 हजार फाइलों को एलजी ने मंजूरी दी है. 1992 से लेकर अब तक महज 7 मामलों को ही LG ने दिल्ली सरकार से मतभेद होने के चलते राष्ट्रपति के पास भेजा.

ये भी पढ़ेंः Delhi Assembly Session: आप विधायक ने सदन में लहराई नोटों की गड्डी, बोले- मुझे चुप रहने के लिए रिश्वत दी

तुषार मेहता का कहना था कि एक ऐसी अवधारणा बना दी गई है कि यहां एलजी ही सर्वोपरि है और दिल्ली सरकार महज प्रतीक के तौर पर है. ये सही नहीं है. हकीकत ये है कि केंद्र और राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार होने के बावजूद अभी तक राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देने के चलते सहजता से काम होता रहा है.

काफी समय से लंबित है विवाद

बता दें कि 4 जुलाई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र बनाम दिल्ली विवाद के कई मसलों पर फैसला सुनाया था, लेकिन सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मुद्दों को आगे की सुनवाई के लिए छोड़ दिया गया था, जिसके बाद 14 जनवरी, 2019 को इस मसले पर 2 न्यायमूर्तियों की बेंच ने फैसला सुनाया था, लेकिन दोनों न्यायमूर्तियों, जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण का निर्णय अलग-अलग था. इसके बाद यह मामला 3 न्यायमूर्तियों की बेंच के सामने रखा गया था. आखिरकार चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायमूर्तियों की बेंच ने सुना.

Trending news