नई दिल्लीः राजधानी दिल्ली में वाहन से होने वाले प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने 1 अक्टूबर से 28 फरवरी तक भारी मालवाहक गाड़ियों के प्रवेश पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है. क्योंकि वाहनों से होने वाले प्रदूषण से सर्दियों में वायु प्रदूषण की गुणवत्ता काफी ज्यादा खराब हो जाती है. 15 जून दिल्ली सरकार ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत पड़ोसी राज्यों को पत्र लिखकर राष्ट्रीय राजधानी में केवल BS 6 बसों को ही 1 अक्टूबर से दिल्ली की भेजने की अपील की थी.


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अधिकारियों ने कहा कि यह अनुरोध शहर में वाहन से होने वाले प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए किया गया था, क्योंकि यहां प्रदूषण में हरियाणा से आने वाली गाड़ियों का भी योगदान होता है. राष्ट्रीय राजधानी में अक्टूबर के बाद से सर्दियों के महीनों में प्रदूषण का उच्च स्तर नजर आता है जिसके लिए पराली जलाने एवं वाहन से होने वाले उत्सर्जन समेत कई कारक जिम्मेदार हैं.


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खबरों की मानें तो दिल्ली के व्यापारी संघ ने दिल्ली में डीजल वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंधित करने के लिए दिल्ली सरकार के फैसले की निंदा की है. इसी के साथ कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्ज (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल तथा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विपिन आहूजा ने कहा है कि सरकार का यह निर्णय दिल्ली के व्यापार को ऐसे समय में बंद कर देगा जब यहां त्योहार और शादी का मौसम होगा.



उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार के इस कठोर और तुगलकी फरमान का दिल्ली के व्यापारी कड़ा विरोध करेंगे. खंडेलवाल ने कहा कि दिल्ली के व्यापारी इस निर्णय के खिलाफ मजबूती से खड़े होंगे और केंद्र सरकार के हस्तक्षेप की मांग के अलावा वे दिल्ली सरकार के खिलाफ एक आंदोलन भी शुरू करेंगे. कैट ने इस मुद्दे पर अपनी रणनीति का फैसला करने के लिए अगले सप्ताह दिल्ली के व्यापार जगत के नेताओं की एक बैठक बुला रही है.


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कैट ने आगे कहा कि यह निर्णय दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के व्यापारी विरोधी रवैये को दर्शाता है. गौरतलब है कि दिल्ली देश के सबसे बड़े वितरण केंद्रों में से एक है और दिल्ली सरकार का राजस्व काफी हद तक व्यापारिक गतिविधियों पर निर्भर है. अगर यह आदेश लागू होता है तो दिल्ली में दूसरे राज्यों से और दिल्ली से दूसरे राज्यों में माल की ढुलाई पर बड़ा रोड़ा बन जाएगा. यह दिल्ली में सभी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियों को रोक देगा जिसके परिणामस्वरूप व्यापार में बड़ा व्यवधान होगा और दिल्ली सरकार को राजस्व का भारी नुकसान होगा.


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