Artifical Rain: पिछले दस दिनों से दिल्ली-एनसीआर में छाई स्मॉग की घनी चादर ने लोगों का जीवन प्रभावित कर दिया है. दीवाली के बाद से यह स्थिति लगातार खराब होती जा रही है, जिससे एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400-500 के स्तर तक पहुंच गया है. यह प्रदूषण इतना गंभीर है कि अगर कोई व्यक्ति खुली हवा में निकलता है, तो उसके फेफड़ों और गले में जहरीली हवा घुसने का खतरा है.


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ग्रैप 4 और उसके प्रभाव
ग्रैप 4 लागू होने के बावजूद स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. इससे यह स्पष्ट होता है कि दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए और अधिक प्रभावी उपायों की आवश्यकता है. इस संदर्भ में, आर्टिफिशियल बारिश एक संभावित समाधान के रूप में उभर रहा है.


कृत्रिम बारिश की संभावना
नोएडा की कुछ कॉलोनियों ने कृत्रिम बारिश कराने पर विचार करना शुरू कर दिया है. हालांकि, मौसम के पूर्वानुमान अगले 8-10 दिनों में बारिश की संभावना से इनकार कर रहे हैं, जिससे प्रदूषण और बढ़ सकता है.


सरकार की पहल
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कृत्रिम बारिश के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना है कि धुंध से छुटकारा पाने के लिए यह एकमात्र उपाय है और इसे चिकित्सा आपातकाल के रूप में देखा जाना चाहिए. स्मॉग के कारण लोगों की तबीयत बिगड़ रही है. आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ और खांसी की शिकायतें आम हो गई हैं. विशेष रूप से, सांस की बीमारियों से पीड़ित लोग इस स्थिति से अधिक प्रभावित हो रहे हैं.


तकनीकी समाधान
भारत में कृत्रिम बारिश कराने की तकनीक मौजूद है. पिछले साल संयुक्त अरब अमीरात ने ड्रोन के जरिए बादलों को इलेक्ट्रिक चार्ज करके बारिश कराई थी. यह तकनीक नई है, लेकिन इसके परिणाम सकारात्मक रहे हैं. 50 के दशक में भारतीय वैज्ञानिकों ने महाराष्ट्र और यूपी के लखनऊ में कृत्रिम बारिश के प्रयोग किए थे. दिल्ली में भी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश की तैयारी की गई थी. इस तकनीक के माध्यम से हवा को साफ करने की उम्मीद है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी साबित हो सकती है.


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कृत्रिम बारिश की नई तकनीक
दुबई और इसके आस-पास के क्षेत्रों में हाल ही में हुई कृत्रिम बारिश एक नई तकनीक का परिणाम है. यह तकनीक विशेष रूप से ड्रोन के उपयोग पर आधारित है, जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है. हालांकि, यह प्रक्रिया काफी महंगी है, लेकिन इसके माध्यम से बारिश कराने की नई संभावनाएं खुल रही हैं. कृत्रिम बारिश के अन्य तरीके भी प्रचलित हैं, जिसमें आमतौर पर पहले कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं और फिर उनसे बारिश कराई जाती है.


कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया
कृत्रिम बारिश एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें पहले कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं. सबसे पुरानी और सबसे अधिक प्रचलित तकनीक में विमान या रॉकेट का उपयोग करके बादलों में सिल्वर आयोडाइड मिलाया जाता है. यह सिल्वर आयोडाइड प्राकृतिक बर्फ की तरह कार्य करता है, जिससे बादलों का पानी भारी हो जाता है और बारिश होती है.


बादल और क्लाउड सीडिंग
कई विशेषज्ञों का मानना है कि कृत्रिम बारिश के लिए बादल का होना आवश्यक है. बिना बादल के क्लाउड सीडिंग नहीं की जा सकती. जब बादल बन जाते हैं, तब सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है, जिससे भाप पानी की बूंदों में बदल जाती है. यह प्रक्रिया ग्रैविटी के कारण धरती पर गिरती है. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, दुनिया के 56 देश क्लाउड सीडिंग का उपयोग कर रहे हैं.


क्लाउड सीडिंग का इतिहास
कृत्रिम बारिश की यह तकनीक पिछले 50-60 वर्षों से उपयोग में लाई जा रही है और इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है. इसका पहला प्रदर्शन फरवरी 1947 में ऑस्ट्रेलिया में हुआ था. अमेरिका में 60 और 70 के दशक में कई बार कृत्रिम बारिश करवाई गई, लेकिन बाद में इसका उपयोग कम होता गया.


बारिश के खतरे से बचाव
चीन ने भी कृत्रिम बारिश का प्रयोग किया है, खासकर 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान 21 मिसाइलों के माध्यम से बारिश के खतरे को टालने का प्रयास किया गया. लेकिन हाल के समय में चीन ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्लाउड सीडिंग बंद कर दी है.


दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारी
वर्ष 2018 में, दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के कारण कृत्रिम बारिश की योजना बनाई गई थी. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कदम बढ़ाया, लेकिन मौसम अनुकूल न होने के कारण यह प्रक्रिया नहीं हो सकी.