Sanjhi Mata ki Kahani 2023: नवरात्रि के दिनों में भक्त 9 दिनों तक मां दुर्गा के रूपों की पूजा करते हैं. इसी के साथ कई घर में सांझी माता भी मनाई जाती है और विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. तो चलिए आज जानते हैं कि क्या है सांझी माता और इसका महत्व?
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Sanjhi Mata ki Kahani 2023: हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व माना गया है. यह त्योहार साल में चार बार मनाया जाता है. मगर सबसे ज्यादा मान्यता शारदीय नवरात्रि की मानी जाती है. नवरात्रि के दिनों में भक्त 9 दिनों तक मां दुर्गा के रूपों की पूजा करते हैं. इसी के साथ कई घर में सांझी माता भी मनाई जाती है और विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. तो चलिए आज जानते हैं कि क्या है सांझी माता और इसका महत्व?
इन क्षेत्रों में होती सांझी माता की पूजा-
सांझी माता मध्यप्रदेश के कुछ गांवों के अलावा उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसी के साथ दिल्ली के भी कुछ क्षेत्रों में भी सांझी माता को बनाया जाती है और पूजा की जाती है. सांझी माता को घर पर बनाई जाती है. इसे बनाने के लिए मिट्टी का उपयोग किया जाता है. मिट्टी की मदद से आकृति का रूप दिया जाता है और फिर उसे गोबर का उपयोग कर दीवार पर चिपकाया जाता है. सांझी माता के साथ सूरज और चंदा की भी कलाकृति मनाई जाती है. इसके साथ माता को चूड़ी, बिंदी व श्रृंगार किया जाता है.
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कन्याएं करती हैं पूजा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सांझी पर्व महिलाओं और कन्याओं के लिए होता है. घर की सभी महिला मिलकर सांझी माता को बनाती है. लड़कियां शाम के वक्त सांझी माता की आरती व भजन गाकर उन्हें भोग लगाती हैं. सभी लड़कियां मिलकर एक-दूसरे के घर जाकर सांझी पूजती हैं. नवरात्रि के 9 दिनों तक सांझी माता की पूजा करने के बाद 10वें दिन सांझी माता का विसर्जन किया जाता है. सांझी माता के विसर्जन से पहले उनकी पूजा की जाती है और उनको भोग लगाया जाता है. इसके बाद गंगा या नदी में विसर्जित की जाती है.
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सांझी माता की कहानी-
प्रचलित मान्यता के अनुसार, सांझी को कहीं मां दुर्गा या पार्वती माता का प्रतीक माना जाता है, कहीं पर उन्हें विवाहित ब्राह्मणी माना जाता है. तो कहीं उन्हें अछूत जाति की पुत्री माना जाता है. एक कहानी ये भी है कि सांझी माता की शादी के तुरंत बाद ही मौत हो गई थी. प्रचलित मान्यता के अनुसार सांझी बाई षोडशी (16 की उम्र) थी. सांझी का 1 दिन 1 वर्ष के बराबर होता है.
16 दिन के बाद कुंवारी कन्या को पूर्ण यौवन प्राप्त करती है और अपने ससुराल चली जाती है. सांझी माता का 16वां दिन विसर्जन किया जाता है. इस दिन वह पितृ मूल्य केवल उसी समाज में प्रचलित होता है, जिसे अछूत माना जाता है. प्रचलित मान्यता के अनुसार, उनका व्यक्तित्व बेहद ही चमत्कारी है. जो अपने पिता के घर को छोड़कर अपने पति के घर पर जाती है. कहते हैं कि जो जो लड़कियां सांझी की पूरे विश्वास के साथ विदा करती हैं उन्हें एक अच्छा वर मिलता है और वे जीवन भर खुश रहती हैं.