Dussehra: हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पवित्र गाथा रामायण है. रामायण में इतने प्रकार के चरित्रों को दर्शाया गया है जिन्हें समझा आज भी बेहद मुश्किल है. मगर आज दशहरे के शुभ अवसर पर रामायण के ऐसे ही अद्भुत चरित्र के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका नाम आप कई हजार सालों से सुनते आ रहे है. वो नाम है मेघनाथ, जिसे इंद्रजीत के नाम से जाना जाता है. इसलिए आज हम इंद्रजीत के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों को जानेंगे.


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जानें, कौन था मेघनाथ?


युद्ध के मैदान में सबका पसीने छुड़ाने वाला महान योद्धा मेघनाथ लंकापति रावण का सबसे बड़ा पुत्र था और रावण के पहली पत्नी मंदोदरी ने मेघनाथ को जन्म दिया था. उन्होंने अपने पुत्र का नाम मेघनाथ क्यों रखा, इसके पीछे भी एक कहानी है. शास्त्रों के अनुसार, जब मेघनाथ का प्राकट्य हुआ था तब उसके रोने की आवाज एक साधारण बालक की तरह नहीं बल्कि बादल के गड़गड़ाहट की तरह सुनाई पड़ती थी जिसके वजह से उस बालक का नाम मेघनाथ रखा गया.


क्यों, रावण के प्रिय पुत्र थे मेघनाथ


हिंदू शास्त्रों और ज्योतिष के अनुसार, मेघनाथ रावण का सबसे बड़ा पुत्र और लंका युवराज भी था. इसलिए रावण मेघनाथ को सबसे ज्यादा प्यार करते थे. कहते हैं कि जितना बड़ा महान विद्वान ज्योतिष रावण था उससे भी कहीं ज्यादा गुणवान, महान योद्धा और सबसे बड़ा ज्ञानी वह अपने बेटे मेघनाथ को बनाना चाहता था.


इतना ही नहीं अपने पुत्र को सबसे ज्यादा ताकतवर और अजर अमर बनाने की कामना को लेकर त्रिलोक विजेता रावण ने सभी देवताओं को अपने पुत्र के जन्म के समय एक ही स्थान अर्थात ग्यारहवें घर में विराजमान रहने के लिए कहा था. मेघनाथ के जन्म के वक्त रावण को पुत्र से इतना लगाव हो गया था कि उन्होंने ग्रहों की चाल तक बदलने की कोशिश कर डाली.


लेकिन, भगवान शनिदेव ने रावण की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए सारे ग्रहों से अलग बाहरवें घर में जाकर बैठ गए. ताकि रावण का पुत्र मेघनाथ अजर अमर की उपाधि ना प्राप्त कर सके।


कैसे मिला मेघनाथ को ब्रह्मा का वरदान?


हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए लंकापति रावण ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था. इस युद्ध ने मेघनाथ ने भी हिस्सा लिया था. इस दौरान लंकापति पर इंद्र ने हमला करना चाहा तो मेघनाथ ने पिता को बचाने के लिए आगे आ गया. मेघनाथ ने उसी क्षण इंद्र और इंद्र के वाहन एरावत पर हमला कर दिया और उसने सभी देवताओं के साथ इंद्र को भी हरा दिया जिसके बाद से इंद्रजीत के नाम से संबोधित किया जाने लगा.


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युद्ध के समाप्त होने के बाद मेघनाथ स्वर्ग से निकलने लगा तो उसने इंद्र को अपने साथ ले लिया और अपने रथ पर बैठा कर लंका में ले आया, लेकिन जब ब्रह्मा जी मेघनाथ से निवेदन किया कि वह इंद्र को मुक्त कर दें. मगर मेघनाथ इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था. इसके बाद ब्रह्मा जी ने इंद्र को छोड़ देने के लिए उसके बदले एक वरदान देने का वचन दिया.


मेघनाथ ने इसका फायदा उठाते हुए उनसे अमरता का वरदान प्रदान करने के लिए कहा. उस दौरान ब्रह्मा ने मेघनाथ बोला कि अमर होना इस प्रकृति में किसी भी जीव के लिए संभव नहीं है क्योंकि यह तो प्रकृति के ही खिलाफ है. तुम  कोई दूसरा वरदान मांग लो. मगर मेघनाथ अपनी बात पर अड़ा रहा. इसके बाद ब्रह्मा ने कहा कि अगर वो अपनी मूल देवी निकुंभला देवी का यज्ञ करेगा और वह यज्ञ जब संपूर्ण हो जाएगा तब उसे एक ऐसा रथ प्राप्त होगा जिस पर बैठकर वह किसी भी शत्रु के सामने युद्ध में पराजित नहीं हो पाएगा और ना ही उसकी मृत्यु होगी.


इसी के साथ ब्रह्मा जी ने इंद्र को को यह भी बताया कि सिर्फ धरती पर एक ऐसा होगा जो मेघनाथ का अंत कर पाएगा. जो 12 सालों से सोया ना हो. इस वरदान के चलते लक्ष्मण ही ऐसा व्यक्ति था जो मेघनाथ को मौत के घाट उतार सकता था क्योंकि वो वनवास के दौरान 14 वर्षों तक सोया नहीं था. इसी कारण राम रावण युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र में लक्ष्मण के हाथों ही मेघनाथ का अंत हुआ.


धरती पर मेघनाथ था सबसे शक्तिशाली


कहते है कि इंद्रजीत के बल की जितनी तारीफ की जाए, उतनी ही कम है क्योंकि वो अकेला ऐसा योद्धा था जिसने एक ही दिन के युद्ध में 67 मिलियन वानरों को मौत के घाट उतार दिया था और लंका में वह अकेला ऐसा योद्धा था जो पूरी वानर सेना को अपनी गर्जना से बिखेर सकता था. मगर घमंड की वजह से मौत के घाट उतार दिया गया.