Small Plots Scheme will Come in NCR: गाजियाबाद विकास प्राधिकरण की यह नई योजना शहर के बुनियादी ढांचे को विकसित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकती है. लेकिन जब इसे चुनावी परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है, तो कई सवाल खड़े होते हैं. क्या यह केवल एक विकास परियोजना है या चुनावी राजनीति का एक और दांव? इसका जवाब आने वाले महीनों में सामने आएगा.
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NCR Small Plots Scheme: गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने वैशाली क्षेत्र में 16,000 वर्ग मीटर से अधिक खाली जमीन की पहचान की है और इस पर छोटे भूखंडों की योजना बनाने की तैयारी कर रहा है. यह योजना ऐसे समय में सामने आ रही है जब दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट की मांग तेजी से बढ़ रही है और 2025 के चुनाव नजदीक हैं. क्या यह पहल केवल एक शहरी विकास परियोजना है या इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति भी छिपी है.
नई योजना के पीछे की रणनीति
1989 में जब जीडीए ने वैशाली में अपनी योजना शुरू की थी, तब इसे दिल्ली और नोएडा के नजदीक एक प्रीमियम रियल एस्टेट डेस्टिनेशन के रूप में विकसित किया गया था. पिछले तीन दशकों में यहां ग्रुप हाउसिंग, बहुमंजिला इमारतें और व्यावसायिक केंद्र बने. लेकिन अब जीडीए को सेक्टर 3 सहित कई जगहों पर 16,000 वर्ग मीटर से अधिक खाली जमीन मिली है, जिस पर नए छोटे भूखंड विकसित करने की योजना बनाई जा रही है. जीडीए उपाध्यक्ष अतुल वत्स ने इस पहल को एक नियमित शहरी विकास प्रक्रिया बताया, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ इसे अलग नजरिए से देख रहे हैं. चुनावी मौसम में इस तरह की योजनाएं आम जनता को लुभाने का एक साधन बन सकती हैं. खासकर तब जब दिल्ली और गाजियाबाद में आवासीय संपत्तियों की मांग बढ़ रही हो.
चुनावी समीकरण और रियल एस्टेट का कनेक्शन
दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट लंबे समय से राजनीति से जुड़ा रहा है. वैशाली, इंदिरापुरम और क्रॉसिंग रिपब्लिक जैसे क्षेत्रों में संपत्ति की बढ़ती कीमतें सरकारों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बनी रही हैं. इस योजना से छोटे भूखंडों की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे मध्यमवर्गीय परिवारों को लाभ मिल सकता है. लेकिन क्या यह योजना वास्तव में जनता के लिए है या इसका उद्देश्य चुनावी फायदे को ध्यान में रखते हुए मतदाताओं को आकर्षित करना है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह योजना सफल होती है, तो इससे मौजूदा सरकार को राजनीतिक लाभ मिल सकता है. जीडीए की इस पहल को दिल्ली और गाजियाबाद के विकास के एक बड़े एजेंडे के रूप में पेश किया जा सकता है, जिससे भाजपा सरकार शहरी विकास में अपनी उपलब्धियों को भुना सके.
क्या वाकई आम जनता को मिलेगा लाभ?
अभी यह देखना बाकी है कि इस योजना के तहत भूखंडों की कीमतें क्या होंगी और किन नियमों व शर्तों के तहत इन्हें बेचा जाएगा. क्या यह भूखंड मध्यमवर्ग के लिए सुलभ होंगे या यह भी केवल बड़े निवेशकों के हाथों में चला जाएगा. यह सवाल महत्वपूर्ण है, क्योंकि चुनावी मौसम में इस तरह की योजनाओं का फायदा अक्सर आम जनता को कम और बड़े बिल्डरों को ज्यादा मिलता है.
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