Haryana Farmer News: नौकरी अगर अच्छी हो तो खेती-किसानी करने के बारे में भला कौन सोचता है, लेकिन बदलाव के इस दौर में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अपनी जिद और जज्बे के चलते नई राह पकड़ रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में आपने ऐसे कई खबरों के बारे में सुना या पढ़ा होगा कि किसी ने इंजीनियर की नौकरी तो किसी ने गूगल की नौकरी छोड़कर किसानी शुरू कर दी है. आइये हम आपको मिलवाते हैं, ऐसे एक किसान से जिन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ अपनी पुश्तैनी जमीन पर चार नेट हाउस लगाकर कर रहे खीरे की खेती है.


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करनाल जिले के गांव छपरियों में एक युवा किसान ने अपनी 45000 रुपये की सरकारी नौकरी छोड़कर नेट हाउस में संरक्षित खेती की, जिसमें काफी अधिक फायदा है. गर्मी के मौसम में अधिकतर खीरे की डिमांड बढ़ जाती है. इसको लेकर किसान ने 2 वर्ष पहले एक नेट हाउस से अपना यह काम शुरू किया. वहीं आज उनके पास तकरीबन 4 के करीब नेट हाउस है और आगे दो नेट और हाउस लगाने के बारे में सोच रहे हैं, क्योंकि उनको इस काम से अधिक मुनाफा तो हुआ ही है. उसी के साथ संरक्षित खेती कर और लोगों को भी रोजगार मिला है. संरक्षित खेती का सबसे अधिक फायदा यह है कि इसमें पानी की काफी ज्यादा बचत होती है, क्योंकि इसमें पौधों की जड़ों तक उतना ही पानी पहुंचता है, जितनी उसको आवश्यकता होती है. ड्रिप सिंचाई के द्वारा बूंद-बूंद पानी पौधों की जड़ों तक पहुंचता है, जितनी खुराक कि उसको आवश्यकता होती है उतनी ही मिल जाती है. इस समय किसान के खेत में देख-रेख का कार्य चल रहा है और तुड़ाई भी हो रही है.


किसान इस खीरे को दिल्ली चंडीगढ़ जैसे बड़े-बड़े शहरों में भेजते हैं, जहां पर इसकी डिमांड भी काफी जायद रहती है. अगर इस समय की रेट की बात करें तो 15 रुपये प्रति किलो रेट चल रहा है. अगर इसमें खर्च की बात की जाए तो एक नेट हाउस पर ढाई से तीन लाख रुपये का खर्च कर 2 लाख रुपये हर नेट हाउस में किसान को बचत हो रही है. यानी 4 नेट हाउस से 8 लाख रुपये की बचत हुई है.


किसान ने बताया कि अगर इसमें सरकार की बात की जाए तो सरकार द्वारा हमें सबसे पहले इसमें 65% की सब्सिडी मिली थी. हालांकि अब उस सब्सिडी को 50% कर दिया गया है, मगर उसके बाद भी काफी अच्छा काम चल रहा है. अगर युवाओं की बात करें तो उनको सबसे पहले नेट हाउस के बारे में जानना पड़ेगा कि ड्रिप सिंचाई क्या होती है. हमें खाद पानी किस प्रकार देना है. इसकी जानकारी होना अति आवश्यक है. अगर किसान भाई इस तरफ आना चाहते हैं तो वह इसके बारे में ट्रेनिंग भी ले सकते हैं, यहां से उनको अच्छी तरह की जानकारी मिल सकेगी.


खीरे विभिन्न मौसम के लिए उपलब्ध किस्मों के अनुसार पूरे वर्ष उगाया जा सकता है. दो उठी हुई बेड्स के बीच से दूरी 4 फीट हो और इसको एक ही कतार पर 30 से 40 सेमी. की दूरी पर बोते हैं. खीरे के पौधों को एक प्लास्टिक की रस्सी के सहारे लपेटकर ऊपर की ओर चढ़ाया जाता है. इस प्रक्रिया से प्लास्टिक की रस्सियों को एक सिरे के पौधों के आधार से और दूसरे सिरे को ग्रीनहॉउस में क्यारियों के ऊपर 9-10 फीट ऊंचाई पर बंधे लोहे के तारों पर बांध देते हैं. आखिरी में जब पौधा तार के बराबर हो जाता है तो पौधों को नीचे की ओर चलने दिया जाता हैं. वहीं साथ-साथ विभिन्न दिशाओं से निकली शाखाओं की लगातार काट-छांट करते रहें. कटाई-छंटाई करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि हमने किस किस्म को उगाया है. पौधों की उर्वरक व जल की मात्रा मौसम एवं जलवायु पर निर्भर करती है. आमतौर पर गर्मी में प्रतिदिन और सर्दी में 2-3 दिन के अंतराल पर दिया जाता है. उर्वरक पानी के साथ मिलाकर ड्रिप सिंचाई प्रणाली द्वारा दिए जाते हैं. बुआई के 40 दिन बाद फसल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है.


Input: Kamarjeet Singh