Motihari News: बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी में पुलिस ने पॉकेट डिस्पोजल के नाम पर पीड़ितों के आखों में धूल झोकने का काम किया है. मोतिहारी एसपी 11 हजार एफआईआर का पॉकेट डिस्पोजल के नाम पर आंखों में धूल झोंकने वाली तस्वीर को खत्म करने में जुट गए हैं.
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Motihari News: क्या आपने कभी सुना है कि पुलिस भी लोगों के आंखों में धूल झोंकती है, नहीं ना? पर आज हम आपको एक ऐसे ही पुलिस के बारे में बताने वाले हैं. जिनके बारे में जानने के बाद आप हैरत में पड़ जाएंगे. आप और हम किसी भी तरह के विवाद को होने के बाद थाना या न्यायालय का शरण लेते हैं. अमुमन जब कहीं कोई घटना होती है, तो लोग थाना में जाकर एफआईआर दर्ज करवाते हैं. एफआईआर दर्ज होने के बाद थानाध्यक्ष के द्वारा एक आईओ को नियुक्त किया जाता है, फिर आईओ अनुसंधान और रोज केस डायरी लिखने की शुरुआत करता है. केस डायरी को सुपरविजन करने का अधिकार इंस्पेक्टर, एसडीपीओ से लेकर एसपी तक को होता है. पुलिस के केस डायरी के आधार पर न्यायालयों में मुकदमे की सुनवाई होती है. सुनवाई के बाद निर्दोष बरी होता है और दोषी को सजा होती है. पर धूल झोंकने वाला काम यहीं पर होता है. अनुसंधान का अंतिम रूप होता है पुलिस के द्वारा न्यायालय में चार्जशीट दाखिल करना. पर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मोतिहारी में करीब 32 हजार केश अभी अनुसंधान के दौरान चल रहा है. इसमें से 11 हजार केश ऐसे है जो जिला पुलिस के रिकॉर्ड से लेकर मुख्यालय तक के रिकॉर्ड में केस डिस्पोजल के तौर पर फाइल में दर्ज है. जिसे पॉकेट डिस्पोजल का नाम दिया गया है. यह पॉकेट डिस्पोजल सिर्फ मोतिहारी के पुलिस की कहानी नही है. बल्कि, बिहार के ज्यादातर जिलों की यही कहानी है.
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क्या होता है पॉकेट डिस्पोजल?
अब हम आपको बताते हैं कि पॉकेट डिस्पोजल क्या होता है? आखिर इसे आंखों में धूल झोंकना क्यों कहा जाता है? कानून के जानकार एडवोकेट अजीत सिंह ने बताया है कि केस डिस्पोजल होने के बाद कोर्ट में नहीं भेजने के कारण कोर्ट में केस का निपटारा नहीं हो पाता है. जिस वजह से कोर्ट में केश पेंडिग बढ़ता जाता है और पीड़ित पक्ष कोर्ट और थाना का चक्कर लगाते रह जाते हैं. दरअसल पॉकेट डिस्पोजल का मतलब हुआ एफआईआर का वैसा अनुसंधान जिसे पूर्ण होने की सूचना जिला पुलिस ने मुख्यालय को तो भेज दिया पर न्यायालय में नहीं भेजा. अब अगर न्यायालय में भेजा जाता तो न्यायालय में केश की सुनवाई जल्द पूर्ण होती.
पीड़ित जब कभी पुलिस के रिकॉर्ड में अपना केश के अनुशंधान की स्थिति को जानने पहुंचता है, तो पुलिस के रिकॉर्ड में अनुशंधान पूर्ण यानी फाइनल कट जाने की जानकारी मिलती है. पर न्यायालय में जाने पर उन्हें पता चलता है कि पुलिस ने चार्जशीट दाखिल ही नहीं किया है. तो अब आप ही बताइए यह आंखों में धूल झोंकना हुआ कि नहीं, तो फिर क्या है? अब गनीमत यह है कि पुलिस महकमे में एसपी स्वर्ण प्रभात जैसे ईमानदार और कर्मठ आईपीएस अधिकारी भी हैं.
मोतिहारी में मिशन अनुसंधान की शुरुआत
मोतिहारी के एसपी स्वर्ण प्रभात ने पुलिस के इस लोचे को पकड़ा है और अब मोतिहारी में मिशन अनुशंधान की शुरुआत कर दिया है. मोतिहारी एसपी 11 हजार एफआईआर का ना सिर्फ पॉकेट डिस्पोजल के नाम पर आंखों में धूल झोंकने वाली तस्वीर को खत्म करने में जुट गई है. बल्कि, 11 हजार पॉकेट डिस्पोजल एफआईआर के साथ ही कुल 32 हजार एफआईआर के अनुसंधान को पूर्ण करने के लिए मोतिहारी में मिशन अनुसंधान की शुरुआत भी कर दिया है.
अनुसंधानकर्ता को कोर्ट से रिसीविंग लेने का आदेश जारी
मोतिहारी में अब दोबारा से कोई पॉकेट डिस्पोजल ना हो इसके लिए एसपी ने प्रत्येक अनुसंधानकर्ता को कोर्ट से रिसीविंग लेने का आदेश भी जारी कर दिया है. एसपी स्वर्ण प्रभात के मिशन अनुसंधान के निर्देश के बाद अब थाना में इंस्पेक्टर से लेकर अनुसंधानकर्ता फाइल पर लगे धूल हटाते हुए दिखने लगे हैं. थानाध्यक्ष थाना पर अनुसंधानकर्ताओं के साथ बैठक कर निर्देश देते हुए दिखाई देने लगे हैं.
एसपी ने पीड़ितों में न्याय की उम्मीद को जगाया
मोतिहारी एसपी ने ना सिर्फ पॉकेट डिस्पोजल को खत्म कर पीड़ितों को जल्द न्याय मिलने की उम्मीद को जगाया है. बल्कि, थाना में दर्ज करीब 32 हजार एफआईआर की भी जल्द अनुसंधान पूर्ण करने के लिए मिशन मोड में अनुसंधान को जल्द पूर्ण करने की हिदायत देकर सही मायने में आम लोगों तक न्याय की पहुंच को आसान भी बनाया है.
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न्यायालयों में जल्द से जल्द चार्जशीट दाखिल होने पर ना सिर्फ दोषियों को जल्द सजा मिलने लगेगी, बल्कि दोषियों को जल्द सजा मिलने से समाज में अपराध का दफ्तर भी कम होने लगेगा. अब जरूरत इस बात की है कि जो मुहिम मोतिहारी के एसपी ने चलाया है. वैसा ही मुहिम बिहार के प्रत्येक जिले के एसपी भी चलाए. ताकि इलाके के लोगों को समय पर न्याय मिल सके.
इनपुट - पंकज कुमार
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