Haryana News: पुलिस और गैरसरकारी संगठनों की मदद से मजदूरी से आजाद हुई नेपाली बच्ची
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Haryana News: पुलिस और गैरसरकारी संगठनों की मदद से मजदूरी से आजाद हुई नेपाली बच्ची

Haryana News:  तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ देने वाली समीहा रोजी-रोजगार की तलाश में थी, जिसका फायदा उठाते हुए एक रिक्शा वाला और एक औरत उसे अच्छा पैसा कमाने का लालच देकर हरियाणा लेकर आए.

Haryana News: पुलिस और गैरसरकारी संगठनों की मदद से मजदूरी से आजाद हुई नेपाली बच्ची

Haryana News: तीन गैरसरकारी संगठनों की दो देशों में चार दिन तक चली खोजबीन और आखिर में हरियाणा पुलिस की तत्परता से नेपाल की एक 15 वर्षीय नाबालिग को हरियाणा के जींद जिले में एक मुर्गीपालन फार्म से मुक्त कराया गया. एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन जिसे बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के नाम से भी जाना जाता है, उसे नेपाल के नेपालगंज से लापता हुई 15 वर्षीय बच्ची समीहा (बदला हुआ नाम) के ट्रैफिकिंग के जरिए भारत लाए जाने के बाबत एक खुफिया सूचना प्राप्त हुई थी.

बच्ची द्वारा भेजी गई लोकेशन से पता चला कि उसे हरियाणा ले जाया गया है, जिसके बाद अपने-अपने राज्यों में बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे इन संगठनों ने तत्काल यह जानकारी हरियाणा की सफीदों पुलिस से साझा की. पुलिस की टीमों ने इन संगठनों के सहयोग और उनसे मिली जानकारी पर कार्रवाई करते हुए आखिरकार बच्ची को मुक्त करा लिया. बच्ची को उसकी मां के साथ नेपाल रवाना कर दिया गया है.

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तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ देने वाली समीहा रोजी-रोजगार की तलाश में थी. इसी दौरान कुछ महीने पहले उसकी एक रिक्शा चालक शिवा और एक बुजुर्ग महिला हसीना से मित्रता हो गई. शिवा और हसीना ने भांप लिया कि बच्ची आर्थिक तंगी की शिकार है और किसी भी तरह दो-चार पैसे कमाना चाहती है. इन दोनों ने बच्ची को अपने साथ भारत जाने के लिए राजी कर लिया. हसीना ने उससे हरियाणा में एक मुर्गीपालन फार्म में नौकरी और अच्छी तनख्वाह दिलाने का वादा किया. समीना पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी और सिर से पिता का साया भी उठ चुका था. गरीबी की मार झेल रहे परिवार के भले के लिए उसने तुरंत हामी भर दी. जींद जिले के सफीदों स्थित मुर्गीपालन फार्म में पहुंचते ही समीहा ने खतरे को भांप लिया और किसी तरह चोरी-छिपे अपनी मां को फोन से संपर्क कर बताया कि वह खतरे में है. उसने मां को व्हाट्सऐप पर अपनी लोकेशन भी भेजी. भारत-नेपाल सीमा पर छोटी सी किराने की दुकान चलाने वाली समीहा की मां पहले ही उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा चुकी थीं.

बेटी को खतरे में देख घबराई मां ने तुरंत भारत-नेपाल सीमा पर काम कर रहे एक बाल अधिकार कार्यकर्ता को इसकी जानकारी दी, जिन्होंने अपनी सहकर्मी और देहात, उत्तर प्रदेश की कार्यकारी निदेशक देवयानी चतुर्वेदी को इस बाबत सूचित किया. अब तक दोनों कार्यकर्ताओं को भली भांति समीना के ठिकाने का अंदाजा हो गया था और उन्हें हरियाणा में किसी से संपर्क करने की जरूरत थी. देवयानी ने बताया, "जैसे ही हमें यह जानकारी मिली, हमें पता था कि बिना बहुत से लोगों को बताए हमें तेजी से कदम उठाने होंगे इसलिए हमने तुरंत सलाह के लिए नई दिल्ली में बचपन बचाओ आंदोलन से संपर्क किया. उन्होंने तुरंत एमडीडी ऑफ इंडया से कॉन्फ्रेंस कॉल पर हमारी बात कराई और हमने सभी जानकारियां उनसे साझा की."

एमडीडी की टीम ने बिना समय गंवाए बच्ची को मुक्त कराने के लिए हरियाणा पुलिस से संपर्क किया. एमडीडी ऑफ इंडिया, हरियाणा के सीईओ सुरिंदर सिंह मान ने बताया, "हमने तत्काल सफीदों के पुलिस अधीक्षक आशीष कुमार से संपर्क किया जिन्होंने तुरंत बताई गई लोकेशन पर बच्ची की तलाश के लिए पुलिस टीम रवाना की. इस दौरान हमने इस बात का इत्मीनान करने के लिए कि बच्ची को कहीं दूसरी जगह तो नहीं ले जाया गया है, उससे कई बार फोन पर बात की. पुलिस टीम ने मौके पर पहुंच कर बच्ची को मुक्त करा लिया." उन्होंने कहा कि यह बाल दुर्व्यापार, बाल मजदूरी, बाल यौन शोषण और बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहे तीनों संगठनों के साझा प्रयासों का नतीजा है जिससे बच्ची को मुक्त कराया जा सका.

बच्ची को बाल कल्याण समिति, जींद के समक्ष पेश किया गया और उसे एक आश्रय गृह में रखा गया. काउंसलिंग के दौरान बच्ची ने स्वीकार किया कि वह नौकरी के लालच में अपने घर वालों को बताए बिना भारत आ गई थी. काऊंसलिंग और चिकित्सा जांच के बाद समीहा को उसी मां के सुपुर्द कर दिया गया और दोनों नेपाल रवाना हो गईं. बाल मजदूरों को मुक्त कराने के रास्ते में आ रही चुनौतियों का जिक्र करते हुए बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, "कई राज्यों और कुछ देशों से मुफलिसी के शिकार और असहाय बच्चों की ट्रैफिकिंग की जा रही है. खतरों से अंजान होने के कारण ये बच्चे आसान निशाना होते हैं और बाल दुर्व्यापारी इन्हें बाल मजदूरी और वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेल देते हैं. हम देश के कोने-कोने से इन बच्चों को मुक्त कराने के हर संभव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जब तक बाल दुर्व्यापार के खिलाफ कड़े कानून नहीं बनाए जाते और दोषियों को एक समयसीमा में सख्त सजा नहीं दी जाती, तब तक इस लड़ाई को जीता नहीं जा सकता और कमजोर पृष्ठभूमि के बच्चों के सिर पर खतरा बरकरार रहेगा.