IND VS NED: सिख दंगों में छोड़ा भारत, अब उसी के खिलाफ खेल रहा ये पंजाबी खिलाड़ी
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IND VS NED: सिख दंगों में छोड़ा भारत, अब उसी के खिलाफ खेल रहा ये पंजाबी खिलाड़ी

टी-20 वर्ल्ड कप के मैच में भारत और नीदरलैंड का मैच है. जहां नीदरलैंड की ओर से खेलने वाला विक्रमजीत सिंह पहला सिख खिलाड़ी है. आइए इसके बारे में कुछ बाते बताते हैं जो शायद आपको नहीं पता होंगी. 

IND VS NED: सिख दंगों में छोड़ा भारत, अब उसी के खिलाफ खेल रहा ये पंजाबी खिलाड़ी

रेनू अकर्णीया/ नई दिल्ली: टी-20 वर्ल्ड कप के मैच में भारत और नीदरलैंड का मैच है. जिसमें भारत का स्टार गेंदबाज अर्शदीप (Arshdeep Singh) और नीदरलैंड का बल्लेबाज विक्रमजीत सिंह (Vikramjit Singh) आमने सामने हैं. 19 साल के विक्रमजीत सिंह को नीदरलैंड में सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से एक है. चलिए आज नीदरलैंड के इस सिख खिलाड़ी के बारे में जानते हैं. 

विक्रमजीत सिंह Netherlands की ओर से खेलड़े वाले पहले सिख खिलाड़ी 
1984 में जब भारत में सिख समुदायों के खिलाफ दंगे भड़के थे उस रात नीदरलैंड के क्रिकेट खिलाड़ी विक्रमजीत सिंह के परिवार की है. जिन्होंने 80 के दशक में भारत छोड़ना पड़ा था. 19 साल के इस युवा खिलाड़ी का जन्म नीदरलैंड में ही हुआ और वो नीदरलैंड ओर से खेलड़े वाले पहले सिख खिलाड़ी हैं. 

विक्रमजीत सिंह ने Chandigarh से ली क्रिकेट में ट्रेनिंग

नीदरलैंड के अंडर-12 टूर्नानेंट के समय कप्तान बोरेन की नजर 11 साल के विक्रजीत पर पड़ी. जिसके बाद विक्रमजीतो को स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरर्स कंपनी से स्पॉन्सरशिप मिली. बता दें इसी कंपनी ने देश के दिग्गज खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी और हरभजन सिंह के लिए बैट बनाया है.  विक्रमजीत 17 साल की उम्र में अपने खेल को निखारने के लिए भारत के चडीगढ़ के  चंडीगढ़ के उनियाल में गुरुसागर क्रिकेट अकादमी में 6 महीने की ट्रेनिंग ली. साल 2021 में भारत के पूर्व अंडर-19 के खिलाड़ी तरुवर कोहली के साथ ट्रेनिंग भी की. 

5 साल की उम्र में नीदरलैंड पहुंचे थे खिलाड़ी के पिता 
जब विक्रमजीत के पिता हरप्रीत सिंह नीदरलैंड आए थे तब वे सिर्फ पांच साल के थे. विक्रमजीत के दादा जी उन्हें यहां लाए, लेकिन शुरुआती दिनों में उन्हें उनके पहनावे, दाढ़ी  की वजह से काफी परेशानियां झेलनी पड़ी, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया था. विक्रमजीत के दादा जी ने वहां टैक्सी चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण किया और आगे चलकर उन्होंने वहां एक ट्रांसपोर्ट कंपनी शुरू की थी. इस कंपनी को साल 2000 में उसके दादा जी ने विक्रमजीत के पिता को सौंप कर भारत लौट आए थे. 

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