कभी चौके-छक्के लगाकर किया था यूपी का नाम रोशन, अब रिक्शा चलाकर कर रहा गुजारा
Advertisement
trendingNow0/india/delhi-ncr-haryana/delhiharyana1305388

कभी चौके-छक्के लगाकर किया था यूपी का नाम रोशन, अब रिक्शा चलाकर कर रहा गुजारा

 20 गेंद में 67 रन बनाने स्टार क्रिकेटर राजा बाबू आज अपनी अजीविका के लिए ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हैं. खेल में उन्होंने काफी नाम कमाया लेकिन आज भी उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. 

कभी चौके-छक्के लगाकर किया था यूपी का नाम रोशन, अब रिक्शा चलाकर कर रहा गुजारा

गाजियाबाद: साल 2017 में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच हुए क्रिकेट मैच ने एक खिलाड़ी को स्टार बना दिया. 20 गेंद में 67 रन बनाने वाले राजा बाबू की हर तरफ तारीफ हो रही थी. इसके बाद दिव्‍यांग क्रिकेट सर्किट में स्‍टेट और नैशनल लेवल के कई मैच में राजा बाबू ने अपने बल्ले का कमाल दिखाया लेकिन ये स्टार खिलाड़ी आज अपने गुजर-बसर के लिए सड़कों पर ई-रिक्शा चलाने को मजबूर हैं. 

दिव्‍यांग क्रिकेटर्स के लिए बनी चैरिटेबल संस्‍था बंद होने के बाद बढ़ीं मुश्किलें 
दिव्‍यांग क्रिकेटर्स के लिए बनाई गई चैरिटेबल संस्‍था, दिव्‍यांग क्रिकेट एसोसिएशन (DCA) लोकल कारोबारियों की मदद से चलाई गई थी, जिसके बंद हो जाने के बाद राजा बाबू को पैसे मिलना भी बंद हो गए, जिसके बाद उन्होंने अपने परिवार को चलाने के लिए दूध बेचना और सड़कों पर ई-रिक्शा चलाना शुरू कर दिया. उन्हें ई-रिक्शा भी खेल में बेहतर प्रदर्शन करने के इनाम में मिला था. 

Happy Birthday Arvind Kejriwal: ऐसे आम आदमी की कहानी जिसका दिल्ली मॉडल देश की राजनीतिक दिशा बदल सकता है 

परिवार में 4 लोगों की रोजी-रोटी चलाना मुश्किल
राजा बाबू के परिवार में उनकी पत्नी और 2 बच्चें हैं, कोविड महामारी के बीते दो सालों में वो बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा कर रहे हैं. क्रिकेट में उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिए उन्हें कई सम्मान दिए गए लेकिन उन सबके बीच में ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे उनकी दो वक्त की रोटी का खर्च पूरा हो सके. 

हादसे में गंवाए पैर
साल 1997 में एक ट्रेन हादसे में राजा बाबू ने अपना एक पैर खो दिया था लेकिन उसके बाद भी वो अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ते रहे और क्रिकेट के अपना नाम कमाया. 

दिल्ली में 2 रुपये बढ़े दूध के दाम, अमूल ने कहा- माल भाड़ा बढ़ा, मदर डेयरी ने दिया ये हवाला

12 साल की उम्र से की क्रिकेट खेलने की शुरुआत
राजा बाबू ने 12 साल की उम्र में गली क्रिकेट से अपने खेल की शुरुआत की थी, साल 2000 में कानपुर में आरामीना ग्राउंड पर ट्रेनिंग शुरू की और फिर जिलास्तर पर खेलने लगे. 2013 में बिजनौर का तरफ से खेलने का मौका मिला. 2015 के उत्तराखंड दिव्‍यांग क्रिकेट टूर्नमेंट में बेस्‍ट प्‍लेयर का अवार्ड दिया गया. इसके बाद 2014 में एक बार पैसों की कमी की वजह से गाजियाबाद की जूता फैक्‍ट्री में काम किया लेकिन क्रिकेट के साथ वो संभव नहीं हो पाया और फिर नौकरी छोड़ दी. 2016 में नैशनल लेवल के मैच खेले और मैन ऑफ द मैच रहे. कोरोना के बाद एक बार फिर क्रिकेट की शुरुआत करते हुए 2022 में राजाबाबू मध्‍य प्रदेश के लिए वीलचेयर क्रिकेट खेलना शुरू किया लेकिन कोरोना की वजह से मैच नहीं हो पाए. 

मैच में अलग पहचान बनाने वाले राजा बाबू का कहना है कि क्रिकेट ने नाम तो बहुत दिया लेकिन यहां पर उतने भी पैसे नहीं मिले जिससे जीवन चलाया जा सके. दिव्‍यांग क्रिकेटर्स को भी खेल के साथ खर्च और रिटायरमेंट के बाद पेंशन की सुविधा दी जानी चाहिए, जिससे दिव्‍यांग क्रिकेटर्स का भविष्य भी सुरक्षित रहे. 

Trending news