अरविंद केजरीवाल राजनीति में यंग्री यंगमैन की तरह एंट्री किए थे. उन्होंने खूब संघर्ष किया और एक दशक में उनकी पार्टी ने दो राज्यों में सरकार में है. केजरीवाल के दिल्ली मॉडल की चर्चा ब्रिटेन में हो रही है.
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नई दिल्ली: बात 2005 की है. देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा था. राजनीतिक गलियारों में लूट-खसोट हो रही थी. इसमें क्या पार्टी और अधिकारी सब शामिल थे. अलग-अलग लोग अपने-अपने हिस्से का संघर्ष कर रहे थे. ऐसे में एक व्यक्ति ने मोर्चा संभाला. उसने सरकारी नौकरी छोड़ दी. लोगों को भ्रष्टाचार से लड़ने का पाठ पढ़ाने लगा. उसके इस काम पर 2006 में रमन मैगसेसे पुरस्कार मिला. यहीं से उस शख्स को भ्रष्टाचार से लड़ने का बल मिला है. भ्रष्टाचार खत्म करने को महीनों अनशन किया, पार्टी बनाई और आज दिल्ली का मुख्यमंत्री बन लोगों को चहेता बना हुआ. ये कहानी है राजनीति के कुशल खिलाड़ी और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की.
फ्री बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा का वादा कर राजनीति में आने वाले केजरीवाल की पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है. गुजरात और हिमाचल में पैर पसारने की तैयारी में दिन रात एक हुए हैं. बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा अब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से टक्कर मिलती दिख रही है. इसकी वजह है केजरीवाल की अपने खास वोट बैंक की राजनीति. लोगों के टैक्स के पैसे से मुफ्त की चीजें देना. अभी हाल में एक रिपोर्ट आई है जिसमें यह निकलकर आया है कि मोदी को टक्कर केवल केजरीवाल दे सकते हैं. इंडिया टुडे की मूड ऑफ द नेशन में 27 फीसदी लोगों का ऐसा मानना है. लेकिन केजरीवाल ने यह मुकाम आसानी से हासिल नहीं किया है. इसके पीछे है उनका लंबा संघर्ष, त्याग और लोगों से जुड़ाव.
भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए मैग्सेसे पुरस्कार
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जन्म 16 अगस्त 1968 को हुआ था. वो मूलत: हरियाणा के हैं. भारतीय राजनीतिज्ञ, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हैं. 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. 1992 में वे भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में सेलेक्ट हो गए. दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया था. नौकरी छोड़कर सामाजिक कार्यकर्ता बन गए, वो कई एनजीओ से जुड़ गए. लोगों को भ्रष्टाचार से लड़ने का पाठ पढ़ाने लगे. भारत में सूचना का अधिकार अर्थात सूचना कानून (सूका) के आन्दोलन को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाने, सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने और सबसे गरीब नागरिकों को भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये सशक्त बनाने हेतु उन्हें वर्ष 2006 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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'मैं आम आदमी हूं'
अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देखा था और इसे खत्म करने के लिए शुद्ध राजनीति का हवाला देकर आम आदमी पार्टी (AAP) के नाम से एक नये राजनीतिक दल की स्थापना की. दिल्ली में वर्ष 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स होने वाले थे तब उन्होंने जोरशोर से इन खेलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया था जिसके बाद वो बेहद पॉपुलर होते चले गए. अरविंद केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 को अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत की. उन्होंने बाकायदा गांधी टोपी, जो अब 'अन्ना टोपी' भी कहलाने लगी है, पहनी थी, उन्होंने टोपी पर लिखवाया, 'मैं आम आदमी हूं'. यहीं से आम आदमी पार्टी के गठन की आधिकारिक घोषणा अरविंद केजरीवाल एवं लोकपाल आंदोलन के बहुत से सहयोगियों द्वारा 26 नवम्बर 2012, भारतीय संविधान अधिनियम की 63वीं वर्षगांठ के अवसर पर जंतर मंतर से की गई.
सीखीं राजनीति की बारीकियां
बीजेपी ने उन पर आरोप लगाया तो उन्होंने खुद को दिल्ली का बेटा कहा. अपने पहले कार्यकाल के दौरान वह 28 दिसम्बर 2013 से14 फरवरी 2014 तक इस पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने दिल्ली पुलिस पर काम न करने देने का आरोप लगाया. रेल भवन के बाहर कई दिनों तक धरना दिया. यहां से वो आंदोलनकारी अवतार में जन्में, 49 दिन में ही सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इस बार टारगेट कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर किया और कहा कि ये दोनों पार्टियां जनहित के काम नहीं करने दे रही हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में केजरीवाल ने पार्टी के 400 लोगों को चुनाव मैदान में उतारा. खुद नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़े. लेकिन हार गए. AAP के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. लेकिन केजरीवाल हताश नहीं हुए, उन्होंने राजनीति की बारीकियां सीखीं.
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जब छूटा अपनों का साथ
साल 2015 आ चुका था. एक बार फिर केजरीवाल और उनकी टीम ने कमर कसी. इस बार दिल्ली के रण में यह कहकर प्रचार में उतरे किए उन्हें पूर्ण बहुमत चाहिए, तभी काम कर सकते हैं. 49 दिनों में सरकार से इस्तीफा देने पर दिल्लीवासियों से माफी भी मांगी. इस चुनाव में दिल्ली ने अपने बेटे पर बंपर प्यार लुटाया. 70 में से 67 सीटें दे दीं. इस दौरान पार्टी स्तर पर केजरीवाल को अंदरूरी दिक्कतों से सामना करना पड़ा. योगेंद्र यादव से लेकर प्रशांत भूषण तक पार्टी के कई बड़े नेताओं उन्हें तानाशाह कहते हुए AAP से अलग हो गए.
इन योजनाओं से बने दिल्ली वालों के चहेते
एक वक्त ऐसा भी आया जब केजरीवाल पीएम मोदी पर सीधे हमलावर हो गए थे. हालांकि इसका उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ा. AAP को सपोर्ट करने वाले मिडिल क्लास उनसे कन्नी काटने लगा. केजरीवाल समझ गए कि पीएम पर पर्सनल हमला करना ठीक नहीं है. दिल्ली के मुखिया ने अब दिल्ली पर फोकस किया. वह खुद जनता दरबार लगाने लगे, लोगों की समस्याओं का निदान करने लगे. दिल्ली में 20 हजार लीटर पानी, 200 यूनिट तक बिजली और महिलाओं के लिए बस का सफर फ्री करने के साथ ही आप सरकार ने बुजुर्गों के लिए तीर्थयात्रा की शुरुआत की.
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हिंदुत्व की काट और शाह को चुनौती
बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे पर चल चुकी है. पीएम मोदी की आंधी में कांग्रेस साफ हो चुकी थी. लेकिन केजरीवाल ने बीजेपी के हिंदुत्व का काट खोज लिया. उन्होंने दिल्ली चुनाव से पहले अमित शाह को बहस की चुनौती दे डाली. कहा कि गीता में लिखा है, मैदान छोड़कर नहीं भागना चाहिए. एक सच्चा हिंदू जो होता है वो बहादुर होता है वो मैदान छोड़कर इस तरह भागता नहीं. केजरीवाल ने खुद को हनुमान भक्त भी बताया और हनुमान चालीसा भी गाई.
अब गुजरात और हिमाचल पर फोकस
इनके सबके बीच केजरीवाल की फ्री की योजना ने लोगों को उनका चहेता बना दिया. केजरीवाल अब एक सधे हुए राजनेता बन चुके हैं. अपनी मुफ्त बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य के बल पर उन्होंने पंजाब में सरकार बना ली है. गुजरात और हिमाचल पर उनका फोकस है. गुजरात में केजरीवाल खूब दौरे कर रहे हैं. वहां भी लोगों को फ्री में बिजली पानी का वादा कर रहे हैं. महिलाओं के लिए खास योजना बना रहे हैं.
पीएम ने दी जन्मदिन की बधाई
अरविंद केजरीवाल का आज जन्मदिन है. इस मौके पर पीएम मोदी ने भी उन्हें ट्वीट कर जन्मदिन की बधाई दी है. पीएम ने जन्मदिन की बधाई देने के दौरान लंबी उम्र के साथ उनके बेहतर स्वास्थ्य की भी कामना की है. वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री ने बधाई देने के लिए पीएम का शुक्रिया अदा किया है. वहीं नितिन गडकरी ने ट्वीट किया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं. आप स्वस्थ और दीर्घायु रहें, ईश्वर से यही कामना करता हूं. केजरीवाल ने इस ट्वीट का जवाब देते लिखा, 'आपका बहुत बहुत शुक्रिया सर.'
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