Live-in Relationships in India: बदलते वक्त के साथ कई कपल शादी की जगह लिव-इन रिलेशनशिप में रहना ज्यादा पसंद करते हैं. इसकी मुख्य वजह ये भी होती है कि इसमें दोनों के ऊपर किसी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं होती और वो कभी भी आसानी से अलग हो सकते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला और उस दौरान होने वाले बच्चों को हमारे कानून द्वारा कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं. 


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लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला के अधिकार


-लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अगर घरेलू हिंसा का शिकार हो रही है, तो वह घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत अपने पार्टनर के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती है. 


-CRPC की धारा- 125 के तहत लिव-इन रिलेशनशिप में भी भरण पोषण का अधिकार दिया जाता है. इस रिश्ते में पार्टनर के अलग होने के बाद दी जानें वाली मुआवजे की राशि को पॉलिमनी कहा जाता है. 
  
-लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अगर अपना गुजारा नहीं कर सकती, तो पार्टनर को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम-2005 के अनुसार महिला को गुजारा भत्ता देना पड़ता है, अगर पार्टनर मुआवजा देने से इंनकार करता है, तो महिला कोर्ट भी जा सकती है.  


-राइट टू शेल्टर के तहत लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को घर से नहीं निकाला जा सकता.


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लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला के बच्चों को मिलने वाले अधिकार


-लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल के बच्चों को शादीशुदा कपल के बच्चों जितने ही अधिकार दिए जाते हैं, वो पैतृक संपत्ति में हिस्सा ले सकते है. साथ ही CRPC के सेक्शन 125 तहत  भारतीय न्यायपालिका बच्चों को सुरक्षा भी देती है.