Arvind Kejriwal: अरविंद केजरीवाल ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. न सिर्फ जाट आरक्षण को लेकर मोदी-शाह को सवालों में घेरा है, बल्कि नई दिल्ली विधानसभा सीट से जाट प्रत्याशी परवेश वर्मा पर भी जाट की मुख्तारी को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. अरविंद केजरीवाल ने दो टूक पूछा है कि राजस्थान के जाट को दिल्ली में आरक्षण मिलेगा लेकिन दिल्ली के जाट को नहीं, ऐसा क्यों? बात सिर्फ सवाल तक नहीं है. केजरीवाल ने दावा किया है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बीते 10 साल में चार बार जाट नेताओं से झूठ बोला है. वादा करके धोखा दिया है. जब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री भी झूठ बोलेंगे तो जनता कहां जाएगी? केजरीवाल ने उन चार मौकों का भी जिक्र किया.


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26 मार्च 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली जाट समाज के प्रतिनिधियों को अपने घर बुलाकर ये वादा किया कि केंद्र की ओबीसी लिस्ट में दिल्ली के जाट समाज को शामिल किया जाएगा. 8 फरवरी 2017 को यूपी चुनाव से पहले अमित शाह ने चौधरी वीरेंद्र सिंह के घर पर दिल्ली और देश के जाट नेताओं से वादा किया कि स्टेट लिस्ट में ओबीसी जातियों को केंद्र की लिस्ट में जोड़ा जाएगा. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली में परवेश वर्मा के आवास पर अमित शाह ने जाट नेताओं से मुलाकात की और जाट समाज को केंद्र के ओबीसी लिस्ट में शामिल करने का वादा दोहराया. 2022 में दिल्ली में अमित शाह ने सैकड़ों जाट नेताओं को बुलाया, मुलाकात की और फिर वादा दोहराया.


जाट बहुल सीटों पर है ‘आप’ का कब्जा
दिल्ली में जाट बहुल सीटों पर अभी आम आदमी पार्टी का दबदबा है. महरौली, मुंडका, रिठाला, नांगलोई, मटियाला, नजफगढ़ और बिजवासन जाट बहुल सीटें हैं और ये सभी सीटें आम आदमी पार्टी के पास हैं. मगर, इन सीटों को बचाने की चुनौती आम आदमी पार्टी के पास है. इसके अलावा भी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में जाट वोटर बहुत प्रभावशाली हैं. दिल्ली में लगभग 10 प्रतिशत जाट वोट हैं. दिल्ली के 364 गांवों में से 225 गांवों में जाटों का दबदबा है. बीते दिनों किसान आंदोलन में जाट समुदाय की भागीदारी रही थी. हरियाणा और राजस्थान में जाटों ने कांग्रेस को वोट दिए थे. हालांकि लोकसभा चुनाव में जाट वोटों का झुकाव बीजेपी की ओर दिखा था. आसन्न विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली विधानसभा सीट पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बीजेपी की ओर से चुनौती दे रहे हैं परवेश वर्मा, जो न सिर्फ जाट हैं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री और दबंग जाट नेता साहिब सिंह वर्मा के बेटे भी हैं. हालांकि बीजेपी ने कोई मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं दिया है लेकिन परवेश वर्मा स्वयं को लगभग उसी तरीके से प्रोजेक्ट कर रहे हैं. 


जाट समुदाय से वादाखिलाफी का आरोप
अरविंद केजरीवाल ने जाट समुदाय के साथ बीजेपी के किए गए वादों और उन वादों पर अमल नहीं करने का मुद्दा उठाकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ-साथ परवेश वर्मा पर भी सवाल उठाए हैं. जाटों की उपेक्षा का यह सवाल जाटों को आम आदमी पार्टी के साथ एकजुट कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो जाट बहुल सीटें तो आम आदमी पार्टी बचा ही ले जाएगी, साथ ही पूरे दिल्ली में 18 प्रतिशत वोटों का झुकाव उसके साथ होगा. अरविंद केजरीवाल ने यह भी साफ किया है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव केवल आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच है. ऐसा कहकर उन्होंने जाट समेत तमाम वोटरों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे कांग्रेस के बारे में ना सोचें. केंद्रीय ओबीसी लिस्ट में दिल्ली के जाट समाज को शामिल करने को लेकर बीजेपी की ओर से धोखा दिए जाने का उल्लेख करते हुए अरविंद केजरीवाल ने भरोसा दिया है कि वे इस लड़ाई को लड़ेंगे. जाट वोटरों के साथ खड़े होने का वादा करके अरविंद केजरीवाल ने निश्चित रूप से जाट वोटरों के बीच अपनी पहुंच को मजबूत करने का जज्बा दिखाया है. दिल्ली में केंद्र सरकार की 7 यूनिवर्सिटी हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई कॉलेज हैं. दिल्ली पुलिस, एनडीएमसी, एम्स, सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया जैसे कई केंद्र सरकार के संस्थान हैं, जहां दिल्ली के जाट समाज को रिजर्वेशन और नौकरी दोनों मिल सकती है. मगर, केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल नहीं होने के कारण ऐसा नहीं हो पाता है. अरविंद केजरीवाल ने जाट के अलावा रावत, रौनियार, रायतंवर, चारन और ओड को भी केंद्रीय ओबीसी लिस्ट में शामिल करने की मांग की जो दिल्ली की ओबीसी लिस्ट में शामिल हैं.


दलित, मुस्लिम, जाट बहुल 30 सीटें हैं ‘आप’ के पास
दिल्ली में 17 प्रतिशत दलित वोटरों को लेकर भी आम आदमी पार्टी बहुत सचेत है. दलितों के लिए दिल्ली की सभी 12 सुरक्षित सीटें आम आदमी पार्टी के पास हैं. ऐसे में जैसे ही अमित शाह ने सदन में बाबा साहब अंबेडकर को लेकर बयान दिया. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में इस मुद्दे को पकड़ लिया. अंबेडकर के नाम पर स्कॉलरशिप की घोषणा करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ऐसा वे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अमित शाह ने बाबा साहेब अंबेडकर का अपमान किया है. आम आदमी पार्टी इसलिए भी सचेत है कि दलित वोटरों का रुख कहीं कांग्रेस की ओर ना हो जाए जिसके पास 1998 में सभी 13 सुरक्षित सीटें थीं.  मुस्लिम बहुल 11 सीटों में आम आदमी पार्टी के पास 9 सीटें हैं. इस तरह जाट (7), दलित (12) और मुस्लिम बहुल (11 में 9) सीटों के साथ कुल 30 सीटें आम आदमी पार्टी के पास हैं. इन सीटों को बचाए रखना सत्ता मे लौटने की गारंटी भी है. आम आदमी पार्टी को लगता है कि बीजेपी से मुकाबले में इंडिया गठबंधन के दल समाजवादी पार्टी, टीएमसी, शिवसेना यूबीटी का समर्थन हासिल हो जाने के बाद वे कांग्रेस के हाथ से संघर्ष को त्रिकोणा बनाने का मौका छीनने में कामयाब हो रहे हैं. ऐसा होता है तो आम आदमी पार्टी की चिंता बहुत हद तक खत्म हो जाती है. यही कारण है कि आम आदमी पार्टी अब बीजेपी को हिन्दुत्व के मोर्चे पर भी टक्कर देती दिख रही है. ग्रंथी-पुजारी सम्मान योजना के साथ-साथ चुनाव अभियान में भी साधु-संतो का इस्तेमाल भी आम आदमी पार्टी करती दिख रही है. जाटों के लिए आरक्षण की मांग कर अरविंद केजरीवाल ने जाट वोटों को सुरक्षित करने की कोशिश की है. ऐसा करते हुए नरेंद्र मोदी, अमित शाह और परवेश वर्मा तीनों पर जाट समुदाय से वादाखिलाफी के आरोप लगाए हैं. देखना यही है कि केजरीवाल का चुनावी तीर क्या विरोधियों को घायल कर पाता है.
इनपुट: रंजन कुमार