Election Symbol: लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव हो दोनो में ही चुनाव चिह्न बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. चुनाव के समय चुनाव चिह्न के आगे बटन दबाकर ही हम किसी भी प्रत्याशी को वोट देते हैं.  पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग पूरी हो चुकी है.  चुनाव आयोग ने भी तैयारियों को लेकर पूरा मसौदा बना लिया है. अगर चुनाव चिह्न की बात करें तो राष्ट्रीय पार्टियां हों या छोटी पार्टियां या फिर निर्दलीय प्रत्याशी हर किसी को चुनाव चिह्न दिया जाता है, जहां रजिस्टर्ड पार्टियों को पहले से ही चुनाव चिह्न मिले होते हैं तो वहीं निर्दलीय प्रत्याशी को नॉमिनेशन प्रोसेस और चुनाव से कुछ दिन पहले ही चुनाव चिह्न मिल जाता है, लेकिन इसको लेना इतना आसान नहीं होता है. चुनाव चिह्न को लेने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. आज हम आपको बताएंगे आखिर कैसे चुनाव चिह्न पार्टियों और उम्मीदवारों  को मिलते हैं. 


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ऐसे किया जाता है चुनाव चिह्न का आवंटन
किसी पार्टी को मान्यता देनी हो या किसी राज्य में चुनाव कराना हो या किसी भी पार्टी को चुनाव चिह्न देना हो ये सारे काम चुनाव आयोग के अंडर में ही होते हैं. ये अधिकार चुनाव आयोग को संविधान के आर्टिकल 324 साथ ही रेप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल ऐक्ट 1951 और कंडक्ट ऑफ इलेक्शंस रूल्स 1961 के तहत मिलती है. चुनाव आयोग को चुनाव चिह्न आवंटित करने का अधिकार The Election Symbols (Reservation and Allotment) Order, 1968 के तहत मिलती है. इसमें नई पार्टी या आजाद उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न दिया जाता है.  


चुनाव आयोग के पास लगभग 100 से अधिक चुनाव चिह्न होते हैं, लेकिन यह किसी भी पार्टी को नहीं दिया जाता है. चुनाव आयोग चुनाव के समय दो लिस्ट बनाकर रखते हैं. पहले लिस्ट में वो सिंबल होते हैं, जिनका पिछले कुछ वर्षों में आवंटन हो चुका है और दूसरी लिस्ट में वो सिंबल होते हैं, जिनका आवंटन नहीं हुआ होता है.  चुनाव आयोग अपने पास लगभग 100 चुनाव चिह्न जरूर रखता है जिनका आवंटन किसी को नहीं हुआ रहता है. चुनाव चिह्न आरक्षित या अनारक्षित होते हैं.  आरक्षित चिन्ह वो होते हैं जो किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है, जबकि शेष चुनाव चिह्न अनारक्षित होते हैं. 


मुख्य उद्देश्य क्या है?
सभी पार्टियों को चुनाव चिह्न देने का मुख्य उद्देश्य यह है कि जो मतदाता नाम पढ़ कर वोट न डाल सके उनको वोट डालने में चुनाव चिह्न मदद करते हैं. चुनाव चिह्न राजनीतिक पार्टियों को दूसरे से अलग करने में अनुमति देता है. 


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सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव चिह्न का किया था समर्थन
कन्हैयालाल उमर बनाम आरके त्रिवेदी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव चिह्न की आवश्यकता का काफी समर्थन किया था. देश में मतदाता अपने राजनीतिक कर्तव्य को लेकर काफी जागरूक हैं, लेकिन इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लिख-पढ़ नहीं सकते हैं. ऐसे में चुनाव चिह्न की मदद से मतदाता को अपने उम्मीदवार को चुनने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़गा.