Supreme Court: मुस्लिम महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पतियों से भरण- पोषण का दावा करने में सक्षम बनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, भाजपा नेता शाजिया इल्मी ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है और सभी मुस्लिम महिलाओं के लिए राहत है. यह एक ऐतिहासिक फैसला है. इस फैसले के तहत, कोई भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण भत्ते की मांग कर सकती है और उस मांग को पूरा करना अनिवार्य होगा.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

तलाकशुदा महिला अदालत से सपर्क करके कर सकती है भरण-पोषण की मांग 
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि यह किसी भी तरह का दान नहीं है और एक तलाकशुदा महिला अदालत से संपर्क कर सकती है और इस धारा के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है. मुझे लगता है कि यह बहुत सारी मुस्लिम महिलाओं की प्रार्थनाओं का परिणाम है. शाजिया इल्मी ने आगे कहा, सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा के अपराधीकरण को बरकरार रखा है और कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला न केवल भरण-पोषण भत्ते की मांग कर सकती है, बल्कि 2019 विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम का भी सहारा ले सकती है, जो उसे अधिक सुरक्षा प्रदान कर सकता है.


ये भी पढ़ें: Delhi-NCR Rain: दिल्ली-एनसीआर में उमस से लोगों को मिली राहत, झमाझम बारिश से मौसम हुआ सुहाना


सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता मनीषा चावा ने कहा, जब यहां याचिका दायर की गई थी, तो सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था कि मुख्य मुद्दा यह है कि व्यक्तिगत कानूनों में उपाय की मांग की जा रही है, जिसके लिए उन्हें व्यक्तिगत कानूनों का सहारा लेना चाहिए, न कि धर्मनिरपेक्ष कानूनों का. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि व्यक्तिगत कानून धर्मनिरपेक्ष कानूनों को पीछे नहीं छोड़ सकते और यद्यपि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 की धारा 3 और 4 में उपाय मौजूद है, आप सीआरपीसी प्रावधानों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते. आप यह नहीं कह सकते कि वे लागू नहीं होंगे. उन्होंने आगे कहा कि इसे दान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि महिला द्वारा सामना किए जा रहे आर्थिक संकट के कारण दिया गया है. 


यह निर्णय सभी धर्म की महिलाओं पर होगा लागू 
मामले में पति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस वसीम ए कादरी ने कहा,  सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया गया मुद्दा यह था कि क्या तलाकशुदा महिला द्वारा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन दायर किया जा सकता है या वह विशेष अधिनियम की धारा 3 के तहत आवेदन दायर करने की हकदार है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस वसीम ए कादरी से कहा कि इस मुद्दे के अलावा, अगर महिला गृहिणी है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है, तो वह संयुक्त खाता रखने की हकदार है. इसलिए, यह एक ऐतिहासिक निर्णय है. मैं इसे महिला सशक्तिकरण के उत्थान के लिए एक निर्णय कहूंगा, यह केवल तलाकशुदा महिला या मुस्लिम महिला पर लागू नहीं होता है, यह सभी महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.


इन प्रावधानों के तरत पतियों से कर सकती है भरण पोषण का दावा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) मुस्लिम विवाहित महिलाओं सहित सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है और वे इन प्रावधानों के तहत अपने पतियों से भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं. शीर्ष अदालत ने यह भी दोहराया कि समय आ गया है कि भारतीय पुरुष 'गृहिणियों' की भूमिका और बलिदान को पहचानें जो एक भारतीय परिवार की ताकत और रीढ़ हैं और उन्हें संयुक्त खाते और एटीएम खोलकर उनकी वित्तीय सहायता करनी चाहिए. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने फैसला सुनाया कि धारा 125 सीआरपीसी, जो पत्नी के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार से संबंधित है, सभी महिलाओं पर लागू होती है और एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला इसके तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है.