Haryana New CM Nayab Singh Saini: 12 मार्च 2024 शाम पांच से छह के बीच नायब सिंह सैनी ने हरियाणा के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है. आज सुबह ही मनोहर लाल खट्टर ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. नायब को मनोहर लाल खट्टर का करीबी माना जाता है. नायब सिंह सैनी भाजपा के हरियाणा इकाई के प्रदेश अध्यक्ष हैं. वह ओबीसी समुदाय से आने वाले भाजपा के प्रमुख नेता हैं.


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जानें 27 अक्टूबर 2023 को क्या हुआ था
हरियाणा में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ को उनके पद से हटा दिया जाता है. उनकी जगह बीजेपी हरियाणा में कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाती है. कोई सोच भी नहीं सकता था,  नायब आगे चलकर हरियाणा के सीएम की कुर्सी पर भी बैठेंगे, लेकिन यह आज यानी 12 मार्च 2024 को सच साबित हुआ. मात्र 136 दिनों में राज्य के बीजेपी अध्यक्ष से लेकर हरियाणा के सीएम तक नायब ने सफर तय कर लिया है और  मनोहर लाल खट्टर के 'अजुर्न' नायब सैनी हरियाणा के नए सीएम की पद की शपथ ले चुके हैं. 


मनोहर लाल खट्टर के 'अर्जुन' 
जैसे ही मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफे की खबर सामने आई तो अगला सीएम कौन होगा? इस बात की चर्चा तेज हो गई थी. दो नाम सामने आए एक संजय भाटिया और दूसरा नायब सिंह सैनी. लेकिन दोपहर होते ही एक नाम पर बीजेपी ने मुहर लगा दी. और वह नाम था नायब सिंह सैनी का. नायब सिंह सैनी को मनोहर लाल खट्टर का करीबी माना जाता है. साल 2019 में भाजपा ने उन्हें कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा और वह संसद पहुंचे. वह संसद के श्रम संबंधी स्थायी समिति के सदस्य भी हैं. सैनी को 2023 में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई. ज्यादातर कार्यक्रमों में खट्टर के साथ देखे जाते रहे हैं. मीडियो रिपोर्ट की माने तो बीजेपी पार्टी का नायब सिंह के नाम पर मुहर लगाने के पीछे खट्टर की सहमति भी है. 


नायब सिंह सैनी का सियासी करियर
नायब सिंह सैनी को साल 1996 में राज्य में भाजपा संगठन की जिम्मेदारी दी गई थी. साल 2002 में वो भाजयुमो के जिला महामंत्री बनाए गए. 2012 में सैनी अंबाला के जिलाध्यक्ष बने. इसके बाद सैनी लगातार बढ़ते गए. नायब सैनी 2014 में नारायणगढ़ से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. साल 2016 में सैनी को खट्टर सरकार में राज्य मंत्री भी बनाया गया था. 


नायब सिंह सैनी को क्यों बनाया गया सीएम?
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले 54 साल के सैनी कुरूक्षेत्र से पहली बार सांसद बने हैं. वो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के करीबी माने जाते हैं. नायब सिंह सैनी सीएम क्यों बने इस पर लोगों के पास तमाम तरह के तर्क हो सकते हैं, लेकिन हरियाणा में मौजूदा राजनैतिक हालात और आने वाले लोकसभा चुनाव को अगर दिमाग में ध्यान रखा जाए तो कुछ समीकरण सामने आ सकते हैं. नायब सिंह सैनी राजनीति के सॉफ्ट चेहरे हैं. चुनाव से पहले सीएम बदलने का प्रयोग बीजेपी पहले भी गुजरात और त्रिपुरा में कर चुकी है, जिसके बेहतर नतीजे मिले. हिमाचल में मुख्यमंत्री नहीं बदलने के कारण बीजेपी को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था.


समीरण नंबर 1:- 
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले 54 साल के सैनी कुरूक्षेत्र से पहली बार सांसद बने हैं. वो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के करीबी माने जाते हैं. उनको सीएम के तौर पर हरियाणा की जाति-केंद्रित राजनीति में गैर-जाट मतदाताओं विशेष रूप से पिछड़े समुदायों को एकजुट करने के भाजपा की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. जहां जाट समर्थन बड़े पैमाने पर कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोक दल के बीच बंटे हुए हैं. 


बीजेपी ने सहयोगी पार्टी  से किया किनारा
हरियाणा में बीजेपी ने अपने गठबंधन की सहयोगी रहे जेजेपी से पल्ला झाड़ लिया है, वहीं सरकार का चेहरा भी बदल दिया है. लोकसभा की 10 सीटों पर बीजेपी अब अकेले चुनाव लड़ेगी. चार साल तक सरकार में पार्टनर रही जेजेपी से अचानक बीजेपी ने दूरी बना ली. सिर्फ एक सीट माग रहे दुष्यंत चौटाला अब गठबंधन के पार्टनर नहीं रहे. जेजेपी ने समर्थन वापस नहीं लिया बल्कि सीएम ने इस्तीफा देकर सत्ता का सीन बदल दिया.


खट्टर का विरोध होना 
सीएम मनोहर लाल खट्टर का इस्तीफा दिलाकर लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने कई समीकरण साध लिए. इस बदलाव के साथ ही भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार की 9 साल की एंटी-इनकंबेंसी की काट के साथ गैर जाट वोटों का ध्रुवीकरण और जाट वोट में बंटवारे की नींव रख दी. किसान आंदोलन में शंभू बॉर्डर पर होने वाली गोलीबारी के लिए खट्टर सरकार निशाने पर थी. इसका असर पंजाब चुनाव में पड़ सकता था. इन तमाम समीकरणों को साधते हुए बीजेपी ने सीएम का चेहरा ही बदल दिया. गृह मंत्री अमित शाह विरोध को देखते हुए सीएम बदलने के पक्ष में थे. मनोहर लाल खट्टर पीएम मोदी के करीबी हैं, इसलिए उन्हें सेफ एग्जिट दिया गया. अब मनोहर लाल खट्टर करनाल से लोकसभा प्रत्याशी हो सकते हैं.


जाटलैंड में गैर जाट वोटों पर बीजेपी की नजर
जाटलैंड हरियाणा में जाट वोटर परंपरागत तौर से आईएनएलडी और कांग्रेस के वोटर रहे. बीजेपी ने 2014 में गैर जाट ओबीसी की राजनीति शुरू की. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सात लोकसभा सीट मिली और पार्टी को 34.7 फीसदी वोट मिले थे. उस साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 33.2 फीसदी वोटों के साथ 90 में से 47 विधानसभा सीटें जीत ली और पहली बार सरकार बनाई. जाटों की पार्टी मानी जाने वाली आईएनएलडी को 24.1 प्रतिशत और कांग्रेस को 20 प्रतिशत वोट मिले. इस चुनाव से ही बीजेपी ने गैर जाट वोटरों पर नजर टिका दीं.  पहली बार हरियाणा में गैर जाट पंजाबी मनोहर लाल खट्टर को सीएम की कुर्सी सौंप दी.


बीजेपी के इस फैसले से जाट नाराज हुए. हरियाणा में जाट बिरादरी की आबादी 30 फीसदी है. इसके अलावा जट सिख, सैनी, बिश्नोई और त्यागी वोटरों की तादाद काफी है. बीजेपी की पॉलिसी का असर यह रहा कि 2019 में पीएम मोदी के चेहरे और गैर जाट वोटों के कारण 58.02 फीसदी वोट मिले. नायब सिंह सैनी के सीएम बनने के बाद यह वोट बैंक पक्का हो गया है. अब बीजेपी एक बार फिर 10 लोकसभा सीट जीतने की उम्मीद कर रही है. 


पैर छूकर सीएम पद की ली शपथ
चुनाव से पहले बीजेपी ने एक बार फिर गैर जाट ओबीसी पर दांव लगाया है. नायब सिंह सैनी के जरिये बीजेपी ने हरियाणा में गैर जाट ओबीसी को गोलबंद करने की तैयारी की है. बताया जाता है कि हरियाणा के जाट वोटर बीजेपी और मनोहर लाल खट्टर से नाराज थे. इस फैसले का बीजेपी को कितना फायदा होगा यह तो समह ही बताएगा. अभी तो नए सीएम ने कुर्सी सहेज ली है. नायब ने खट्टर के पैर छूकर सीएम की शपथ ले ली है.