Same Sex Marriage: यहां पर मौजूद वकील और जज पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. हम नहीं जानते कि इस मामले पर दक्षिण भारत का एक किसान और उत्तर भारत का एक किसान इस पर क्या सोचता है. इस पर विचार के लिए संसद ही सही जगह है- केंद्र
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Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानून मान्यता देने की याचिकाओं पर चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की. कोर्ट ने साफ किया कि वो अभी ऐसे विवाहों को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता देने के सीमित पहलू पर ही सुनवाई करेंगे, शादियों से जुड़े पर्सनल लॉ सुनवाई का विषय नहीं होंगे. कोर्ट ने वकीलों को स्पेशल मैरिज एक्ट को लेकर ही अपनी दलीलें रखने को कहा.
दरअसल, कोर्ट के सामने दलील रखी गई थी कि अगर कोर्ट समलैंगिक शादियों को मान्यता देता है तो इसका असर विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ पर भी पड़ेगा. सुप्रीम कोर्ट में जैसे ही सुनवाई शुरू हुई तो केंद्र सरकार की तरफ से अदालत में पेश हुए सॉलीसीटर जनरल सुषार मेहता ने केंद्र की तरफ से आपत्ति पर विचार की मांग की.
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उन्होंने कहा कि अदालत शादी की नई संस्था नहीं बना सकती. उन्होंने तर्क दिया कि यहां पर मौजूद वकील और जज पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि हम नहीं जानते कि इस मामले पर दक्षिण भारत का एक किसान और उत्तर भारत का एक किसान इस पर क्या सोचता है. इस पर विचार के लिए संसद ही सही जगह है.
सरकार ने याचिका सुने जाने का विरोध किया
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका सुने जाने का विरोध किया. SG तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह को कानून मान्यता देने पर अगर कोई फैसला लेने का अधिकार रखता है तो वो संसद है, कोर्ट नहीं. मेहता ने कहा कि कोर्ट का इस मसले पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं बनता और याचिकाकर्ताओं को इसके लिए कोर्ट जा रुख करना ही नहीं चाहिए था.
पर्सनल लॉ पर अभी सुनवाई नहीं -SC
तुषार मेहता ने कहा कि अपनी मर्जी से पार्टनर चुनने, सेक्सुअल रुझान रखने, निजता का सबको अधिकार है, लेकिन जहां तक समलैंगिक शादियों को कानून मान्यता देने का मसला है, ये अदालती आदेश से नहीं हो सकता. इस तरह के मसलों को लेकर स्वीकार्यता समाज से आनी चाहिए. तुषार मेहता ने ये भी कहा कि एक पुरुष और स्त्री की शादी को कानून मान्यता देता है. यहां तक कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी एक पुरुष और महिला की शादी का प्रावधान है.
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हालांकि, चीफ जस्टिस ने एसजी तुषार मेहता की इस दलील पर सवाल खड़े किए. चीफ जस्टिस ने कहा कि इसको लेकर आपकी अवधारणा सही नहीं है. पुरुष और महिला की परिभाषा सिर्फ शारीरिक बनावट से तय नहीं होती. उनकी मनोस्थिति भी अहमियत रखती है. कोर्ट ने कहा कि चूंकि अभी अदालत ने पर्सनल लॉ से जुड़े पहलुओं पर सुनवाई नहीं करने का फैसला लिया है, लिहाजा अभी राज्यों का पक्ष सुनने की कोर्ट को जरूरत नहीं है.
LGBT समुदाय को भी शादी में बराबर का हक
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील मुकल रोहतगी ने शादी को लेकर दूसरों की तरह LGBT समुदाय के भी समान अधिकार होने की दलील दी. उन्होंने कहा कि बराबर सम्मान का ये अधिकार देने के लिए विधायिका का इतंजार करने की जरूरत नहीं है. कोर्ट अपने स्तर भी दखल दे सकता है. सुनवाई कल भी जारी रहेगी.
(इनपुटः असाइमेंट)