CBI की रडार पर क्यों आया दिल्ली का आबकारी विभाग, जानिए इसकी स्थापना, अधिकार और कार्य
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CBI की रडार पर क्यों आया दिल्ली का आबकारी विभाग, जानिए इसकी स्थापना, अधिकार और कार्य

शुक्रवार को CBI ने आबकारी नीति मामले में चार्जशीट पेश की है, जिसमें कुल 7 लोगों का नाम है. इस चार्जशीट में मनीष सिसोदिया का नाम नहीं है, जिसके बाद से AAP, BJP के ऊपर हमलावर है. 

CBI की रडार पर क्यों आया दिल्ली का आबकारी विभाग, जानिए इसकी स्थापना, अधिकार और कार्य

नई दिल्ली: दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में CBI ने आबकारी घोटाले मामले में 7 आरोपियों के खिलाफ  10 हजार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है. इस चार्जशीट में विजय नायर, अभिषेक बोइनपल्ली, समीर महेंद्रू, मुत्तथा गौतम, अरुण आर पिल्लई, कुलदीप सिंह, नरेंद्र सिंह और दो एक्साइज के पूर्व अधिकारियों के नाम शामिल हैं. 

जांच में कब क्या हुआ

27 सितंबर को CBI ने दिल्ली के शराब घोटाले से संबंधित जांच के दौरान इवेंट मैनेजमेंट कंपनी ओनली मच लाउडर के पूर्व सीईओ, व्यवसायी विजय नायर को गिरफ्तार किया था. वहीं अगस्त माह में CBI ने इस मामले में 8 लोगों के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (LOC) जारी किया था. आरोपियों में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, तत्कालीन आबकारी आयुक्त अरवा गोपी कृष्णा, उपायुक्त आनंद तिवारी और सहायक आयुक्त पंकज भटनागर शामिल थे. इसी माह ईडी ने दिल्ली शराब घोटाला मामले में दो लोगों को गिरफ्तार किया था, जिसमें अरबिंदो फार्मा के चीफ शरद रेड्डी और विनय बाबू का नाम शामिल है. ये दोनों हैदराबाद की टॉप फार्मा कंपनी के कारोबारी हैं. वहीं 17 अगस्त 2022 को सीबीआई ने 3 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था, इनमें बड्डी रिटेल प्राइवेट लिमिटेड गुरुग्राम के डायरेक्टर अमित अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा और अर्जुन पांडे का नाम शामिल है.

मनीष सिसोदिया से 9 घंटे CBI की पूछताछ, दावा- अफसरों ने इशारों में BJP जॉइन करने को कहा
बीते माह सीबीआई की 9 घंटे की पूछताछ खत्म होने के बाद उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने आवास के बाहर मीडिया से बात करते हुए दावा किया था कि पूछताछ के दौरान उन पर AAP छोड़ने का दबाव बनाया गया. एजेंसी के अधिकारियों ने उन्हें BJP में शामिल होने की सलाह दी, साथ ही सीएम बनाने का ऑफर भी दिया. 

मनीष सिसोदिया जांच के घेरे में क्यों?
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के पास आबकारी विभाग है. CBI ने FIR में सिसोदिया के अलावा तत्कालीन आबकारी आयुक्त अरवा गोपी कृष्ण, तत्कालीन उप आबकारी आयुक्त आनंद कुमार तिवारी, सहायक आबकारी आयुक्त पंकज भटनागर, 9 व्यवसायी और 2 कंपनियों को आरोपी के रूप में नामजद किया था. एजेंसी ने आरोप लगाया था कि सिसोदिया और अन्य आरोपी लोक सेवकों ने निविदा के बाद लाइसेंसधारियों को अनुचित लाभ देने के इरादे से सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बिना एक्साइज पॉलिसी 2021-22 से संबंधित सिफारिश की और निर्णय लिया. 

मनीष सिसोदिया जांच के घेरे में क्यों?
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के पास आबकारी विभाग है. CBI ने FIR में सिसोदिया के अलावा तत्कालीन आबकारी आयुक्त अरवा गोपी कृष्ण, तत्कालीन उप आबकारी आयुक्त आनंद कुमार तिवारी, सहायक आबकारी आयुक्त पंकज भटनागर, 9 व्यवसायी और 2 कंपनियों को आरोपी के रूप में नामजद किया था. एजेंसी ने आरोप लगाया था कि सिसोदिया और अन्य आरोपी लोक सेवकों ने निविदा के बाद लाइसेंसधारियों को अनुचित लाभ देने के इरादे से सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बिना एक्साइज पॉलिसी 2021-22 से संबंधित सिफारिश की और निर्णय लिया. 
 

मनीष सिसोदिया पर लगे ये आरोप
मनीष सिसोदिया पर आरोप लगाया गया कि शराब कारोबारियों को लाइसेंस फीस में 144.36 करोड़ रुपये की छूट दी थी, इसके लिए कोरोना का बहाना बनाया गया. इस छूट के लिए कैबिनेट को लूप में नहीं रखा गया, बल्कि मंत्री स्तर पर ही फैसला ले लिया गया. एक्साइज डिपार्टमेंट ने एयरपोर्ट जोन में L1 लाइसेंसधारी को 30 करोड़ रुपये वापस कर दिए थे, क्योंकि उसे एयरपोर्ट अथॉरिटी की ओर से दुकान खोलने की अनुमति नहीं मिली थी. जबकि, ये रकम जब्त की जानी थी. विदेशों से आने वाली बीयर पर 50 रुपये प्रति केस के हिसाब से रकम ली जाती थी. इस फैसले को भी बिना किसी मंजूरी के वापस ले लिया गया. इससे सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा. साथ ही L7Z और L1 लाइसेंसधारियों का लाइसेंस पहले 1 अप्रैल से 31 मई और फिर 1 जून से 31 जुलाई तक बढ़ा दिया गया और इसके लिए एलजी की मंजूरी भी नहीं ली गई.

मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट में सरकार पर लगे थे 4 कानून तोड़ने के आरोप
-GNCTD अधिनियम 1991
-व्यापार नियमों के लेनदेन (TOBR)-1993
-दिल्ली उत्पाद शुल्क अधिनियम-2009
-दिल्ली उत्पाद शुल्क नियम-2010

नई शराब नीति
17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने राज्य में नई शराब नीति लागू की. इसके तहत राजधानी में 32 जोन बनाए गए और हर जोन में ज्यादा से ज्यादा 27 दुकानें खुलनी थी. इस तरह से कुल 849 दुकानें खुलनी थी. नई शराब नीति में दिल्ली की सभी शराब की दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया, इसके पहले दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत प्राइवेट थीं .नई पॉलिसी लागू होने के बाद 100 प्रतिशत प्राइवेट हो गईं. सरकार ने तर्क दिया था कि इससे 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा.  सरकार ने लाइसेंस की फीस भी कई गुना बढ़ा दी, जिस एल-1 लाइसेंस के लिए पहले ठेकेदारों को 25 लाख देना पड़ता था, नई शराब नीति लागू होने के बाद उसके लिए ठेकेदारों को पांच करोड़ रुपये चुकाने पड़े. इसी तरह अन्य कैटेगिरी में भी लाइसेंस की फीस में काफी बढ़ोतरी हुई.

निगमों से शराब की बिक्री वापस लेकर निजी हाथों में सौंप दी गई. शराब पीने की उम्र 25 से घटाकर 21 वर्ष की गई. दुकान को कम से कम 500 वर्ग मीटर, सीसीटीवी से लैस करने के निर्देश दिया गया.ड्राई डे को 21 से कम करके 3 कर दिया गया. पिंक बूथ खोलने की अनुमति दी गई थी ताकि महिलाएं शराब का सेवन कर सकें. रेस्तरां व बार को शराब बिक्री केंद्र से ही शराब खरीदने की अनुमति दी गई. शराब बिक्री केंद्र को एमआरपी पर छूट देने की अनुमति थी. बार, क्लब्स और रेस्तरां को रात 3 बजे तक दुकान खोलने की छूट थी.

उप-मुख्यममंत्री मनीष  सिसोदिया ने कहा था, हमने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए नई आबकारी नीति लागू की थी इसके पहले 850 शराब की दुकानों से सरकार को 6000 करोड़ रुपये के राजस्व की प्राप्ति होती थी. लेकिन नई आबकारी नीति लागू होने के बाद हमारी सरकार को उतनी ही दुकानों से 9000 करोड़ रुपये से भी अधिक राजस्व मिलता है.

आम आदमी पार्टी के नेता रडार पर, लेकिन CM केजरीवाल ने खुद को मॉडर्न जमाने का अभिमन्यु बताया
बीते दिनों ZEE मंच पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पूरे देश में बीजेपी को सबसे ज्यादा डर दुनिया की सबसे छोटी पार्टी से डर लगता है. ये हमारे खिलाफ चक्रव्यूह रचा है गुजरात और एमसीडी का चुनाव रखा. मैं मॉडर्न जमाने का अभिमन्यु हूं, बीजेपी का चक्रव्यूह तोड़ना आता है. साथ ही ये भी कहा कि मनीष सिसोदिया ने घोटाला किया तो उसे जेल में डाल दो. रेड में कुछ नहीं मिला. दीवार तोड़ी-गद्दे फाड़े लेकिन एक रुपया मनीष सिसोदिया के घर से नहीं मिला. मैं कट्टर ईमानदार हूं ये कहने के लिए जिगरा चाहिए. ऊपर वाली की कृपा साफ नीयत से आती है. ईमानदारी के साथ आंदोलन किया.

30 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर आशंका जताई कि आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा को गिरप्तार किया जा सकता है. 19 अगस्त को राघव चड्ढा ने कहा कि AAP नेताओं के खिलाफ 100 से अधिक फर्जी मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन वे हर बार अदालतों में निर्दोष साबित हुए.

वहीं इससे पहले भी जून 2017 में मनीष सिसोदिया रडार पर आ चुके हैं. सीबीआई ने दिल्ली के मथुरा रोड स्थित मनीष सिसोदिया के आवास पर 'टॉक टू एके (अरविंद केजरीवाल)' नामक आप अभियान में कथित अनियमितताओं को लेकर सिसोदिया का बयान दर्ज किया था, जो गोवा और पंजाब में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुआ था.अभियान में कथित वित्तीय अनियमितताओं के आरोप भी लगे थे. 

सीएम अरविंद केजरीवाल भी रहें रडार पर
साल 2018, जब अरविंद केजरीवाल तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट के एक मामले में आरोपियों में से एक थे. इस मामले में मनीष सिसोदिया और आप के अन्य नेताओं को भी आरोपित किया गया था. हालांकि, एक ट्रायल कोर्ट ने केजरीवाल और सिसोदिया को बरी कर दिया था, जिन्हें बाद में अक्टूबर 2018 में नौ अन्य विधायकों के साथ जमानत दे दी गई थी. उसी साल यानी साल 2018 में ही दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल के रिश्तेदार  विनय बंसल को एंटी करप्शन ब्रांच ने लोक निर्माण विभाग में एक कथित घोटाले में गिरफ्तार किया था. विनय बंसल की कथित तौर पर एक कंपनी में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जिसके बारे में आरोप था कि वह दिल्ली में एक जल निकासी व्यवस्था के निर्माण के दौरान वित्तीय अनियमितताओं में शामिल थे.

फरवरी 2018 में दिल्ली पुलिस आप विधायकों अमानतुल्ला खान और प्रकाश जरवाल द्वारा कथित हमले के संबंध में वीडियो और अन्य सबूतों की तलाश में मुख्यमंत्री के आवास पर गई थी. निचली अदालत ने केजरीवाल, सिसोदिया और आप के अन्य विधायकों- राजेश ऋषि, नितिन त्यागी, प्रवीण कुमार, अजय दत्त, संजीव झा, ऋतुराज गोविंद, राजेश गुप्ता, मदन लाल और दिनेश मोहनिया को आरोप मुक्त कर दिया था. अदालत ने खान और जरवाल के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया था. 

दिसंबर 2015 में दिल्ली में आप के सत्ता में आने के कुछ महीने बाद, सीबीआई ने केजरीवाल के तत्कालीन प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के खिलाफ जांच के सिलसिले में उनके कार्यालय की तलाशी ली थी. जुलाई 2016 में, केंद्रीय एजेंसी ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश में राजेंद्र कुमार से जुड़े कई ठिकानों की तलाशी ली और एक फर्म को कथित रूप से अनुचित लाभ प्रदान करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया था.
जुलाई 2016 में सीबीआई ने केजरीवाल के प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार से जुड़े दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर तलाशी ली. कुमार को केंद्रीय एजेंसी ने एक कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल में बंद
सत्येंद्र जैन को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मई 2022 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया था. ईडी ने उन पर उनके और उनके परिवार के नियंत्रण वाली पांच शैल कंपनियों के जरिए कथित हवाला लेनदेन का आरोप लगाया था. ईडी की जांच से पता चला था कि 2015-16 की अवधि के दौरान, सत्येंद्र जैन के स्वामित्व और नियंत्रण वाली कंपनियों को 'हवाला मार्ग' के माध्यम से कोलकाता स्थित एंट्री ऑपरेटरों को कैश ट्रांसफर के बदले मुखौटा कंपनियों से लगभग 4.81 करोड़ रुपये की आवास प्रविष्टियां प्राप्त हुईं थी.

कथित अस्पताल घोटाला
बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने इस साल जून में शहर में सात अस्पतालों के निर्माण में कथित घोटाले को लेकर दिल्ली सरकार पर निशाना साधा था। उपराज्यपाल ने मामले की जांच के लिए मनोज तिवारी की शिकायत एंटी करप्शन ब्यूरो को भेज दी थी. हालांकि, आप ने आरोपों को निराधार बताया था.

कैलाश गहलोत भी रहे रडार पर
दिल्ली के मंत्री और आप नेता कैलाश गहलोत का नाम एक कथित टैक्स चोरी के मामले में आया था, जिसके संबंध में आयकर विभाग ने अक्टूबर 2018 में दिल्ली और गुरुग्राम में उनसे जुड़े परिसरों की तलाशी ली थी. एजेंसी ने आरोप लगाया था कि गहलोत करोड़ों की टैक्स चोरी में शामिल थे. वहीं साल 2021 में केंद्र ने दिल्ली परिवहन विभाग द्वारा 1,000 बसों की खरीद में एक कथित घोटाले की जांच के लिए सीबीआई को हरी झंडी भी दी थी, जिसका नेतृत्व कैलाश गहलोत कर रहे थे.

किसकी सरकार में सबसे ज्यादा नेता सीबीआई के घेरे में, एडीए या यूपीए?
सितंबर में प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सीबीआई के घेरे में यूपीए की सरकार में जहां 60 फीसद विपक्ष के थे, वहीं एनडीए सरकार में यह बढ़कर 95 फीसद हो गया. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के 10 वर्षों (2004-2014) के दौरान 72 नेता सीबीआई की जांच के दायरे में आए, जिनमें 43 यानी 59.72  प्रतिशत नेता विपक्ष के थे. उस दौरान 43 विपक्षी नेताओं में से सबसे ज्यादा बीजेपी के नेता थे, जिसमें कुल 12 बीजेपी नेताओं से पूछताछ की गई, छापे मारे गए या गिरफ्तार किए गए. गुजरात के तत्कालीन मंत्री केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी सोहराबुद्दीन शेख की कथित मुठभेड़ में हत्या के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था.

वहीं बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए-II के बीते 8 वर्षों के कार्यकाल में कुल 124 नेताओ को सीबीआई जांच का सामना करना पड़ा, जिनमें 118 यानी करीब 95 फीसदी विपक्ष से रहे. आपको बता दें एनडीए-II का कार्यकाल में बीजेपी के भी कुल 6 नेताओं को सीबीआई के जांच का सामना करना पड़ा. रिपोर्ट की माने तो एनडीए-II के 8 साल के कार्यकाल में जिन विपक्षी नेताओं को सीबीआई के जांच का सामना करना पड़ा, उनमें टीएमसी के कुल 30, कांग्रेस के कुल 26, आरजेडी के कुल 10, बीजेडी के कुल 10, वाईएसआरसीपी के कुल 6, बीएसपी के कुल 5, टीडीपी के कुल 5, आप, एआईडीएमके, सपा और सीपीएम कुल चार चार नेता, एनसीपी के कुल 3, एसी और डीएमके के दो-दो नेता तो पीडीपी, टीआरएस और इंडीपेंडेंट के एक-एक नेता शामिल हैं.

CBI कब और किस मामले की जांच करती है?
साल 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग में जंग से संबंधित खरीद में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोप की जांच के के लिए एक विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का गठन किया गया. बाद में इसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 को लागू कर भारत सरकार के विभिन्न विंगों में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए भारत सरकार की एक एजेंसी के तौर पर  औपचारिक रूप दिया गया. साल 1963 में भारत सरकार की रक्षा से संबंधित गंभीर अपराधों, उच्च पदों पर भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और गबन एवं अखिल भारतीय एवं अंतर-राज्यीय प्रभाव वाले आवश्यक वस्तुओं में काला-बाजारी औऱ मुनाफाखोरी की जांच हेतु केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की स्थापना की गई.

राज्य सरकार डीएसपीई अधिनियम की धारा-6 के तहत सहमति की अधिसूचना जारी करती है और केंद्र सरकार डीएसपीई अधिनियम की धारा-5 के तहत अधिसूचना जारी करती है. सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय सीबीआई को इस तरह की जांच करने का आदेश देता है.
अधिनियम की धारा-5 के तहत, केंद्र सरकार निर्दिष्ट अपराधों की जांच के लिए, एजेंसी की शक्तियां और अधिकार क्षेत्र को राज्यों में बढ़ा सकती हैं. हालांकि, यह शक्ति धारा-6 द्वारा सीमित है, जो यह कहती है कि सीबीआई की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को उस राज्य की सरकार की सहमति के बिना, किसी भी राज्य क्षेत्र में विस्तारित नहीं किया जा सकता है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत सार्वजनिक अधिकारियों और केंद्र सरकार, सीबीआई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, निगमों या निकायों, जो भारत सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में हैं, के कर्मचारियों के खिलाफ मामलों की जांच के लिए है. वहीं डीएसपीई अधिनियम की धारा-2 के मुताबिक, सीबीआई केवल केंद्र शासित प्रदेशों में धारा 3 में अधिसूचित अपराधों की जांच कर सकती है. किसी राज्य की सीमाओं में सीबीआई द्वारा जांच करने हेतु, डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के मुताबिक, सीबीआई जांच हेतु उस राज्य की पूर्व सहमति की आवश्यकता होती है. सामान्यतः केंद्र और राज्य में जिस पार्टी या गठबंधन की सरकार होती है वहां सीबीआई सामान्य सहमति से जांच करती है. वर्तमान में 9 राज्यों मे सीबीआई की एंट्री बैन है. इनमें पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, केरल, झारखंड और मेघालय जैसे राज्य शामिल हैं.

 

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