नई दिल्‍ली: आज हम आपको एक जोक सुनाना चाहते हैं.  ये जोक आपकी प्राइवेसी के लिए खतरा बन चुकी टेक कंपनियों  पर है.  इसे सुनकर आप हंसेंंगे नहीं, बल्कि आपकी खुशी उड़ जाएगी. आप चिंता में पड़ जाएंगे और उसी चिंता में आपका आने वाला भविष्य छिपा है. 


आपकी प्राइवेसी के साथ मजाक 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

एक आदमी फोन पर पिज्‍जा ऑर्डर करता है. उसे जवाब में पता चलता है कि पुरानी पिज्‍जा कंपनी को एक टेक कंपनी ने खरीद लिया है.  पिज्‍जा के बिजनेस में आई टेक कंपनी  के पास ग्राहक के पुराने ऑर्डर्स का डेटा है और उसे ग्राहक की पसंद पहले से पता होती है.  ये बात जानकर ग्राहक हैरान हो जाता है, इसके बाद वो अपनी पसंद का पिज्‍जा ऑर्डर करता है. 


जवाब में पिज्‍जा कंपनी का सेल्समैन कहता है कि उसके पास इस ग्राहक की लैब रिपोर्ट्स भी हैं जिससे उसे पता है कि कस्‍टमर का कोलेस्‍ट्रोल लेवल ज्‍यादा है इसलिए उसे उसकी पसंद के पिज्‍जा की जगह वो पिज्‍जा लेना चाहिए जिससे कोलेस्‍ट्रोल न बढ़े.अपनी प्राइवेट बातों को इस तरह से पिज्‍जा कंपनी के सेल्समैन से सुनकर ग्राहक को गुस्सा आने लगता है वो कहता है कि तुम पिज्‍जा  दो. मैं दवाई खा कर कोलेस्‍ट्रोल को कंट्रोल कर लूंगा. 


इस पर पिज्‍जा वाला कहता है कि आपके बैंक ट्रांजैक्‍शंस और क्रेडिट कार्ड बिल से पता चलता है कि आपने काफी दिनों से दवाई नहीं खरीदी है. इतना सुनकर कस्‍टमर को बहुत गुस्सा हो जाता है और कहता है कि मैं सबकुछ छोड़कर किसी ऐसी जगह चला जाऊंगा जहां इंटरनेट ही नहीं हो. इसपर सेल्‍समैन कहता है आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि आपके पासपोर्ट की वैलिडिटी खत्म हो चुकी है.


टेक कंपनियों की मनमानी रोकने के लिए कड़े कानूनों की जरूरत 


ये सब सुन कर आप हंस नहीं सकते. ऐसा ही मजाक हमारी प्राइवेसी के साथ हो रहा है. अब अगर टेक कंपनियों की मनमानी रोकने के लिए कड़े कानून नहीं बनाए गए तो यही आपका भी भविष्य है. इसका मतलब है कि आपका पसंदीदा खाना, आपकी लैब रिपोर्ट्स, आपके बैंक ट्रांजैक्‍शंस, क्रेडिट कार्ड रिकॉर्ड्स और आपके पासपोर्ट की डिटेल्‍स,  ये सब जानकारी टेक कंपनियों के पास होंगी और आप अपनी पसंद का पिज्‍जा तक नहीं खा पाएंगे और खुद को बचाने के लिए आपको किसी निर्जन टापू में जाना पड़ सकता है. 


सोशल मीडिया के युग में प्राइवेसी


कुल मिलाकर देखें तो आज सोशल मीडिया के इस युग में आपके पास उतनी ही प्राइवेसी है जितनी पोस्‍टकार्ड से भेजे जाने वाले संदेश में होती थी.  आप में से बहुत सारे लोगों ने इसका इस्तेमाल किसी न किसी को संदेश भेजने के लिए किया होगा. तब इन पोस्‍टकार्ड्स  पर लिखा हुआ आपका मैसेज कोई भी पढ़ सकता था और ऐसा करने के लिए उन्हें आपसे किसी प्रकार की परमिशन लेने की जरूरत भी नहीं थी. लगभग यही हाल आज की तारीख में आपके डेटा और आपकी प्राइवेसी का भी है. 


टेक कंपनियाें की आपके हर संदेश तक पहुंच  


बाद में आपकी प्राइवेसी की सुरक्षा के लिए अंतर्देशीय पत्र की शुरुआत हुई थी.  यह चारों तरफ से बंद होता था और आपका संदेश इसके अंदर सुरक्षित होता था. उसे सिर्फ आप ही पढ़ सकते थे. इसी तरह कई मैसेजिंग एप्‍स  में भी End-To-End Encryption का दावा किया गया . ये कहा गया कि आपका संदेश आपके अलावा सिर्फ वही लोग देख पाएंगे,  जिनके साथ आपने उसे शेयर किया है.  लेकिन समय-समय पर अपनी पॉलिसी  को बदल कर ये टेक कंपनियां आपके हर एक संदेश तक पहुंच गई हैं. 


सोशल मीडिया पर असुरक्षा का अनुभव


अब हम आपको सोशल मीडिया पर असुरक्षा का अनुभव कराने वाली एक ऐसी केस स्टडी के बारे में बताएंगे जो आपको दुनिया की जानकारी देने वाले गूगल सर्च  में भी नहीं मिलेगी. 


- Google दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में एक है. आपने अपने स्कूल या कॉलेज में लाइब्रेरी देखी होगी और गूगल के पास आपके डेटा की भी एक लाइब्रेरी मौजूद है. 


- सामान्यत: गूगल के पास अपने हर एक यूजर के बारे में लगभग 2 गीगा बाइट  तक का Data होता है  और इतने में लगभग 18 लाख पन्ने या 9 हजार किताबों के बराबर का डेटा रखा जा सकता है. 


- इस डेटा में आपकी इंटरनेट हिस्‍ट्री, आप कौन सा वीडियो देखते हैं, आप किन जगहों पर जाते हैं और आप गूगल पर क्या सर्च करते हैं, ये सबकुछ मौजूद होता है. 


- अगर आप गूगल  की जीमेल सर्विस का इस्तेमाल करते हैं तो उसमें मौजूद आपके ई मेल, आपकी सभी फाइलें और वो ड्राफ्ट भी इकट्ठा किए जाते हैं, जो अबतक आपने किसी को भेजा तक नहीं है. 



- अगर आप एंड्रॉयड फोन इस्तेमाल करते हैं तो आप गूगल का इस्तेमाल जरूर करते होंगे. अपने सवाल गूगल से ही पूछते होंगे.  दुनिया भर में गूगल सर्च से हर सेकेंड 40 हजार सवाल पूछे जाते हैं और इंटरनेट पर होनेवाली 98 प्रतिशत सर्च गूगल  की मदद से ही होती है. 


- लेकिन ये सभी जानकारियां गूगल अपने पास रख लेता है और इसकी मदद से आपका एक प्रोफाइल बनाया जाता है और उस प्रोफाइल का इस्तेमाल करके आपको आपकी पसंद के डिजिटल विज्ञापन दिखाए जाते हैं. 


- इन डिजिटल  विज्ञापनों की मदद से ही गूगल दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ज्‍यादा कमाई करने वाली टेक कंपनियों में से एक बन गया है.


- वर्ष 2019 में गूगल की कुल आमदनी 11 लाख 83 हजार करोड़ रुपए थी और इसमें से 9 लाख 86 हजार करोड़ रुपए से अधिक की कमाई डिजिटल विज्ञापनों की मदद से की गई. 


अरबों डॉलर्स की कीमत वाली कंपनियां आपको मुफ्त में सेवाएं क्यों देती हैं ? 


गूगल ने आपको सर्च इंजन, ई-मेल , मैप्‍स, कैलेंडर, फोटो और इंटरनेट ब्राउजर तक तमाम सुविधाएं दी हैं. आपने एक और बात पर गौर किया होगा और वो ये कि इन सारी सर्विसेज के लिए आपसे कोई पैसा नहीं मांगा जाता. कोई फीस नहीं ली जाती. क्या आपने कभी सोचा है कि अरबों डॉलर्स की कीमत वाली ये कंपनियां आपको मुफ्त में ये सेवाएं क्यों देती हैं ? इसका जवाब ये है कि ज्‍यादातर टेक  कंपनियां आपको और आपके डेटा को ही एक प्रोडक्‍ट समझती हैं और आपके द्वारा दी गई निजी जानकारियों से ऐसी कंपनियां भारी मुनाफा कमाती हैं. 


हालांकि गूगल का दावा है कि वो एक सर्च इंजन है, इसलिए वो लोगों द्वारा शेयर की गई और इंटरनेट पर मौजूद सभी जानकारियों को इकट्ठा करता है और कुछ समय तक इन जानकारियों को अपने पास ही रखता है. 


भारत में करीब 50 करोड़ स्‍मार्टफोन यूजर्स  हैं,  जो हर दिन लगभग साढ़े चार घंटे का वक्त अपने मोबाइल फोन पर बिताते हैं. आप भी सुबह उठकर अपना ई-मेल चेक  करते होंगे, ऑनलाइन समाचार या कोई वीडियो देखते होंगे. ऑफिस जाते समय रास्ते में भी आप सोशल मीडिया  पर दूसरों के पोस्‍ट देखकर, उन्हें लाइक और शेयर करते होंगे. लेकिन ऐसा करके आप सुबह से लेकर रात तक लगातार, टेक कंपनियों की डिजिटल तिजोरी में अपना डेटा भेजते रहते हैं.


वर्षोंं से इस्‍तेमाल कर रहे ये App


हर दिन की भागदौड़ में शायद आपको याद भी नहीं होगा कि आप इन एप्‍स को पिछले कितने वर्षों से इस्तेमाल कर रहे हैं. 


- WhatsApp को आज से 12 वर्ष पहले लॉन्च किया गया था. 


- Facebook Messenger की शुरुआत 11 वर्ष पहले हुई थी. 


- Snapchat को 10 वर्ष पहले लॉन्च किया गया था. 


- Telegram को 8 वर्ष पहले और Signal को 7 साल पहले लॉन्च किया गया था और वाट्सऐप विवाद के बाद इन दोनों एप्‍स को बहुत ज्‍यादा डाउनलोड किया गया है. 


डेटा को न बनने दें गुलामी का कारण 


आज आपको एक बात और समझनी चाहिए और वो ये है कि जो लोग कल वाट्सऐप पर थे, उसमें से कई आज Signal या Telegram पर हैं.  कल किसी और ऐप पर होंगे. यही डिजिटल जीवन का चक्र है. आप गूगल या वाट्सऐप की जगह किसी दूसरे ऐप का इस्तेमाल कर लेंगे और भविष्य में जब वो ऐप भी सुरक्षा के मामले में कमजोर साबित होगा, तो आप किसी तीसरे ऐप का इस्तेमाल कर लेंगे. लेकिन ये सिलसिला रुकने वाला नहीं है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि आप अपने डेटा को गुलामी का कारण न बनने दें और सोच समझकर ही अपना डेटा किसी कंपनी के साथ शेयर करें.