नई दिल्ली: सिनेमा समाज का आईना होता है, लेकिन ये बड़े दुख और अफसोस की बात है कि आपातकाल के समय समाज के इस आईने को भी चकनाचूर कर दिया गया. जिस अभिनेता या गायक ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई उसकी आवाज छीन ली गई और जिसने फिल्मों की मदद से समाज और देश को जागरूक करने की कोशिश की, उसकी फिल्में रिलीज नहीं होने दी गईं और कई फिल्मों के प्रिंट जला दिए गए.


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उस समय जब देश आपातकाल की आग में झुलस रहा था, तब आपातकाल के स्क्रिप्ट राइटर्स में से एक संजय गांधी इस तरह के म्यूजिकल कंसर्ट आयोजित करके ये बताने की कोशिश कर रहे थे कि सब कुछ ठीक है और बड़े बड़े अभिनेता और फिल्म इंडस्ट्री का एक हिस्सा भी उनके सामने झुकने के साथ रेंगने भी लगा था. दिलीप कुमार जैसे सुपरस्टार तो संजय गांधी के बगल में खड़े होकर फिल्म इंडस्ट्री की तरफ से उनकी तारीफ कर रहे थे.


बॉलीवुड पर कहर


आपातकाल के दौरान तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री वीसी शुक्ला भी बॉलीवुड पर कहर बरपा रहे थे और बाकायदा धमकी देकर आपातकाल के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे.


इनमें बॉलीवुड सुपरस्टार मनोज कुमार का भी नाम है. मनोज कुमार को केंद्रीय मंत्री विद्या चरण शुक्ल ने फोन करके इमरजेंसी के समर्थन में डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए कहा था, लेकिन जब मनोज कुमार ने इससे मना कर दिया तो उनकी फिल्म शोर के रिलीज होने से दो हफ्ते पहले ही उसका प्रसारण दूरदर्शन पर कर दिया गया. इससे फिल्म बुरी तरह पिट गई और मनोज कुमार को काफी नुकसान हुआ. मनोज कुमार की ये फिल्म दूसरी बार सिनेमा हॉल पर रिलीज होने वाली थी.


किशोर कुमार के गानों पर प्रतिबंध


इसी तरह विद्या चरण शुक्ला ने इंदिरा सरकार के 20 सूत्रीय कार्यक्रम और इमरजेंसी की छवि चमकाने के लिए किशोर कुमार से इसमें मदद करने के लिए कहा लेकिन किशोर कुमार ने जब मना कर दिया तो पहले रेडियो पर उनके गानों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और बाद में दूरदर्शन पर भी उनकी फिल्मों प्रसारित होनी बंद हो गईं.


किशोर कुमार के अलावा विजय आनंद, फिरोज खान, अमोल पालेकर और अभिनेता आत्मा राम के साथ भी ऐसा ही किया गया.


फिल्मों पर बैन


इसके अलावा कई फिल्मों को भी इस दौर में रोकने का काम किया गया. इनमें एक फिल्म थी 'नसबंदी' जो आई. एस. जौहर ने खुद निर्देशित की थी, लेकिन इस फिल्म को रिलीज होने के बाद इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया.


आपातकाल के दौरान बनी अमृत नाहटा की फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' भी बैन कर दी गई थी और इस फिल्म रिलीज होने से पहले ही इसके सारे प्रिंट जला दिए गए थे. सरकार विरोधी फिल्म होने की वजह से प्रिंट की खोज के लिए कई जगहों पर छापे मारे गए.



इसके अलावा मशहूर गीतकार गुलज़ार की फिल्म आंधी पर भी पाबंदी लगा दी गई और फिल्म धर्मवीर को रिलीज होने में पांच महीने लग गए थे. बताया जाता है कि इस फिल्म में जहां-जहां जनता शब्द का उपयोग डायलॉग में किया गया था, उसे एडिट कर दिया गया और इसकी जगह प्रजा शब्द का उपयोग कराया गया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि, तब जनता का मतलब होता था जे.पी और उनकी टीम.


सरकार की मनमानी


मशहूर हिंदी फिल्म शोले भी 15 अगस्त 1975 को इमरजेंसी के दौरान ही रिलीज हुई थी और ये फिल्म भी सरकार की मनमानी का शिकार हुई. इसके क्लाइमेक्स में तब बदलाव करना पड़ा था. इस फिल्म में मौजूदा समय में बीजेपी की सांसद हेमा मालिनी भी थी और उन्होंने एक बार बताया था कि शोले फिल्म ने इमरजेंसी में बहुत बड़ा रोल निभाया. ये फिल्म सुपरहिट हुई थी और हर शहर में सिनेमा हॉल लोगों की भीड़ से भरे हुए थे, ऐसे में जिन नेताओं की गिरफ़्तारी के लिए पुलिस उनके पीछे पड़ी थी, वो नेता इस भीड़ के बीच सिनेमा हॉल में छिप कर खुद को बचाते थे.