DNA ANALYSIS: क्या खालिस्तानियों ने किसान आंदोलन हाइजैक किया?
पिछले महीने 30 नवंबर को डीएनए में रात 9 बजे हमने आपको दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर खड़े एक ऐसे ट्रैक्टर की तस्वीरें दिखाई थी. जिस पर खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लिखे हुए थे और AK-47 राइफल का चित्र बना हुआ था. हमने आपको प्रदर्शन में शामिल एक व्यक्ति का बयान भी सुनाया था. ख़बर दिखाने के सिर्फ़ 15 घंटे के अंदर ही न्यूयॉर्क में भारत के किसानों के समर्थन में रैलियां निकाली गईं और इनमें खालिस्तानी विचारधारा वाले पोस्टर लहराए गए.
नई दिल्ली: आज दोपहर 2 बजे किसानों और सरकार के बीच तीसरे राउंड की महत्वपूर्ण बातचीत होगी. लेकिन इस बातचीत से पहले ही किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का ऐलान कर दिया है. यानी आपका वीकेंड और आने वाला हफ़्ता इस आंदोलन की भेंट चढ़ सकता है.
किसानों ने फिर से कहा कि अगर सरकार ने बैठक में तीनों क़ानूनों को वापस नहीं लिया तो बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू किया जाएगा.
कल पंजाब से डॉक्टरों की एक टीम सिंघु बॉर्डर पहुंची जिसने वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों की जांच की. डॉक्टरों का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के बीच कोरोना तेज़ी से फैल सकता है. गाज़ीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे जिन किसानों की तबीयत ठीक नहीं है. उन तक दवाइयां पहुंचाई जा रही हैं.
इस प्रदर्शन की वजह से दिल्ली और ग़ाज़ियाबाद के बीच एनएच 24 बंद है. जम्मू कश्मीर को दक्षिण भारत से जोड़ने वाला देश का सबसे लंबा एन एच 44 भी कई जगहों पर बंद है.
बल्लभगढ़ में भी किसानों के आंदोलन की वजह से कई रास्ते बंद कर दिए गए हैं. टिकरी बॉर्डर पर मौजूद किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए पुलिस द्वारा सुरक्षा बढ़ा दी गई है
नेशनल हाइवे 9 जो दिल्ली को उत्तर प्रदेश से जोड़ता है उसे भी कई जगहों पर बंद कर दिया गया है.
झूठ में लग चुके हैं नफ़रत वाले बूस्टर इंजन
मशहूर अमेरिकी लेखक Mark Twain ने कहा था कि जब तक सच अपने जूते के फीते बांधता है. तब तक झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है. Mark Twain ने ये बात करीब सवा सौ साल पहले कही थी. लेकिन 100 वर्षों में दुनिया बहुत बदल चुकी है और आज के दौर में जितनी देर में सच जूते के फीते बांधता है तब तक झूठ दुनिया के दो तीन चक्कर लगा चुका होता है और अगर ये झूठ नफ़रत के कंधों पर सवार हो तो इसकी रफ़्तार किसी सुपर सोनिक मिसाइल से भी ज़्यादा हो जाती है. यानी झूठ में नफ़रत वाले बूस्टर इंजन लग चुके हैं.
पिछले महीने 30 नवंबर को डीएनए में रात 9 बजे हमने आपको दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर खड़े एक ऐसे ट्रैक्टर की तस्वीरें दिखाई थी. जिस पर खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लिखे हुए थे और AK-47 राइफल का चित्र बना हुआ था. हमने आपको प्रदर्शन में शामिल एक व्यक्ति का बयान भी सुनाया था जो कह रहा था कि जो हाल इंदिरा गांधी का हुआ था वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होगा.
फिर भी हमें एक बार को लगा था कि इस आंदोलन में खालिस्तान की एंट्री हो तो गई है. लेकिन नफ़रत वाली इस मिसाइल की रफ़्तार शायद ज़्यादा नहीं होगी और ये लंबा सफ़र तय नहीं कर पाएगी. लेकिन ख़बर दिखाने के सिर्फ़ 15 घंटे के अंदर ही न्यूयॉर्क में भारत के किसानों के समर्थन में रैलियां निकाली गईं और इनमें खालिस्तानी विचारधारा वाले पोस्टर लहराए गए. इस पोस्टर पर इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगी थी और इस पर लिखा था कि '1984 में इंदिरा गांधी ने गड़बड़ की और वो चली गईं. ये सिर्फ़ समय की बात है. जो मोदी को भी समझ आ जाएगी.' 1984 में इंदिरा गांधी की उन्हीं के सुरक्षा कर्मियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. ज़ाहिर है कि इस पोस्टर के ज़रिए प्रधानमंत्री मोदी को भी उसी तरह से जान से मारने की धमकी दी गई है. इतना ही नहीं इस रैली में खालिस्तान के झंडे भी लहराए गए. खालिस्तान की जो भाषा 30 तारीख को दिल्ली में बोली गई थी. वही न्यूयॉर्क के पोस्टर्स पर लिखी हुई है.
नफरत वाली विचारधारा कितनी तेजी से न्यूयाॅर्क पहुंची
यानी दिल्ली में खड़े एक ट्रैक्टर पर नफ़रत वाली जो बातें लिखी थीं. उन्हें न्यूयॉर्क तक पहुंचने में 15 घंटे का भी समय नहीं लगा. न्यूयॉर्क में ये रैलियां 1 दिसंबर की दोपहर को हुई थीं. एक ट्रैक्टर की औसत स्पीड 25 किलोमीटर प्रति घंटा होती है अगर कोई इस ट्रैक्टर को नॉनस्टॉप चलाकर न्यूयॉर्क जाए, तो भी उसे साढ़े 19 दिन का समय लगेगा. लेकिन खालिस्तान वाली नफ़रत किसी हवाई ज़हाज़ की रफ़्तार से सिर्फ़ 15 घंटों में दिल्ली से अमेरिका के न्यूयॉर्क तक पहुंच गई. वैसे नॉन स्टॉप फ्लाइट दिल्ली से न्यूयॉर्क पहुंचने में साढ़े 15 घंटे का समय लेती है. लेकिन खालिस्तान की विचारधारा इससे भी आधे घंटे पहले यानी 15 घंटे में ही न्यूयॉर्क पहुंच गई.
इस आंदोलन को खालिस्तानी विचारधारा के लोग कैसे हाईजैक कर रहे हैं उसका एक और सबूत ZEE NEWS के पास है. कल रात को जब हमारी रिपोर्टिंग टीम जब इस आंदोलन की कवरेज कर रही थी तो इस दौरान एक बार फिर खालिस्तान का जिक्र आया.
आंदोलन में खालिस्तान की एंट्री की ख़बर हमने आपको 5 दिन पहले यानी 30 नवंबर को दिखाई थी. एक तारीख को खालिस्तान के प्रति नर्म रहने वाले देश कनाडा से ख़बर आई कि कनाडा के प्रधानमंत्री Justin Trudeau ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है और कहा है कि कनाडा इस आंदोलन पर नज़र रख रहा है.
Justin Trudeau की सरकार पर खालिस्तानियों के प्रति हमदर्दी दिखाने के आरोप भी लग चुके हैं. 2018 में जब कनाडा के प्रधानमंत्री भारत आए थे तो इस दौरान दिए गए एक डिनर में खालिस्तानी आतंकवादी को भी न्योता भेजा गया था. दावा किया गया था कि ये आतंकवादी Justin Trudeau के आधिकारिक दल का हिस्सा था. हालांकि कनाडा की सरकार इससे इनकार करती है.
भारत की सरकार का विरोध
लेकिन कल कनाडा के वैनकूवर शहर में भी एक रैली निकाली गई. जिसमें भारत की सरकार का विरोध किया गया. यहां तक तो ठीक था. लेकिन इस रैली में भी खालिस्तान के झंडे लहराए गए और खालिस्तान के समर्थन में नारे भी लगाए गए. रैली में मौजूद कुछ लोगों ने जो नारा लगाया वो बहुत गंभीर है. ये नारा था- भिंडरा वाला की सोच से, डरा देंगे ठोक के.
खालिस्तान के समर्थक सिखों के लिए एक अलग देश की मांग करते हैं और इसके लिए वो आतंकवाद का भी सहारा लेते हैं. अब आप सोचिए कि कनाडा की धरती पर अगर कोई व्यक्ति आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के झंडे लहराने लगे तो क्या होगा. उसे बिना देरी किए जेल में डाल दिया जाएगा.
खालिस्तान के नाम पर भारत में आतंकवाद फैलाने का काम
तीन दिसम्बर को हमने आपको बताया था कि कैसे खालिस्तान की मांग करने वाले वो संगठऩ जो विदेशों से संचालित होते हैं वो विदेशों में बसे युवाओं को भड़का रहे हैं. ऐसे ही एक संगठन का नाम है Sikh For Justice जिसने इस आंदोलन में शामिल किसानों को साढे सात करोड़ रुपये की मदद देने का ऐलान किया है. ये संगठन खालिस्तान के नाम पर भारत में आतंकवाद फैलाने का काम करता है.
आंदोलन में खालिस्तान की एंट्री की ये क्रोनोलाॅजी हमारे तमाम दावों को पुख्ता करती हैं और ये साबित करती है कि किसान आंदोलन को देश विरोधी ताकतें हाईजैक करना चाहती हैं और इसके लिए सिर्फ़ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी ज़मीन तलाशी जा रही है और हम इसी से देश को सावधान करना चाहते हैं.