नई दिल्ली: आज से दो हजार बीस साल पहले उज्जयिनी नगरी में एक राजा हुए, जिनका नाम था शूद्रक. शूद्रक ने मृच्छकटिकम नाम का एक नाटक लिखा. मृच्छकटिकम मतलब मिट्टी का खिलौना या मिट्टी की गाड़ी. इस नाटक में उस समय एक संवाद लिखा गया था, जिसका हिंदी में अर्थ है मृत्यु से नहीं बदनामी से डर लगता है. यश की हानि और कीर्ति के धूमिल होने से डर लगता है क्योंकि, आपकी पहचान पर किया गया हमला आपके शरीर पर दिए गए घाव से ज्यादा घातक होता है. आप कहेंगे कि ये सब दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक चर्चा अभी क्यों?


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बीते शनिवार को एक खबर आई और चुपचाप चली भी गई. इस खबर की कोई चर्चा नहीं हुई. इस पर कोई बहस नहीं हुई. ऐसा क्यों हुआ? ये खबर कांग्रेस नेता जयराम रमेश के उस माफीनामे से जुड़ी हुई थी, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल के बेटे विवेक डोवल से माफी मांगी थी.


विवेक डोवल पर 17 जनवरी 2019 को कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने गंभीर आरोप लगाए थे. आरोप कारवां नाम एक मैगज़ीन में छपे लेख के आधार पर लगाए गए थे. लेख में विवेक डोवल  (Vivek Doval) और उनकी कंपनी पर घोटाले के आरोप लगे थे. विवेक डोवल ने जयराम रमेश पर जान-बूझकर बदनाम करने का मुकदमा कर दिया. यानी ये मानहानि का मुकदमा था.


वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ये बड़ा मुद्दा बना. सोशल मीडिया और सियासत में छाया रहा. इस पर खूब लिखा पढ़ा गया, लेकिन जब कोर्ट में इसे सच साबित करने की बात हुई तो जयराम रमेश ने माफी मांग ली. 


जयराम रमेश को विवेक डोवल ने माफ भी कर दिया, लेकिन इस माफीनामे पर, जयराम रमेश के झूठ और कारवां मैगज़ीन की मनगढ़ंत खबर पर किसी ने कोई चर्चा नहीं की न ही झूठी पत्रकारिता करने के आरोप में इस मैगज़ीन पर कोई कार्रवाई की गई.


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अब सवाल उठता है कि चुनाव से पहले इस मैगजीन और इसकी वेबसाइट पर ये झूठी और बदनाम करने वाली रिपोर्ट क्यों छपी? जयराम रमेश जैसे जिम्मेदार व्यक्ति ने बिना पुष्टि के आरोपों को सार्वजनिक कैसे कर दिया? बिना जांच पड़ताल के किसी न्यूज़ रिपोर्ट पर विश्वास क्यों कर लिया गया?


इन सारे सवालों का जवाब छिपा है, गोदी पत्रकारिता के आरोप और दरबारी पत्रकारिता के सच के बीच और सच ये है कि ये सब दरबारी पत्रकारों का किया-धरा था. जो किसी के भी बारे में भ्रामक खबर गढ़ते हैं. उसे पार्टियों की विचारधारा को समर्थन देने वाले Media Houses के ज़रिए प्रकाशित किया जाता है. फिर उस पार्टी के नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं और चुनावों के दौरान माहौल अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं. यानी ये एक तरह का Hit And Run Plan होता है. जिसका फॉर्मूला ये है कि पहले झूठे आरोप लगाओ, फिर उस झूठ का प्रचार करो और झूठ पकड़े जाने पर चुपचाप माफी मांग कर मामला रफा दफा कर लो. इस तरह के मनगढ़ंत आरोप Zee News के खिलाफ भी लगाए जाते हैं और हमारे खिलाफ भी इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल होता है. ये असली गोदी पत्रकारिता है और इसी गोदी मीडिया की आधी अधूरी खबरों को सच मानकर देश के जाने माने लोग अवॉर्ड वापसी करने लग जाते हैं.



वर्ष 2015 में यूपी के दादरी और कर्नाटक के कुलबर्गी की घटना के बाद कई साहित्यकारों और लेखकों ने अवॉर्ड वापसी का ऐलान किया था. हमारी टीम ने साहित्य अकादमी पुरस्कार पर एक स्टडी की तो पता चला कि साहित्य अकादमी से जुड़े 39 लेखकों ने पुरस्कार वापसी का ऐलान किया था. 


-अवॉर्ड वापसी गैंग के 39 लेखकों में से सिर्फ 13 ने स्मृति चिन्ह वापस भेजे.


-सिर्फ 13 लेखकों ने पैसे और स्मृति चिन्ह दोनों वापस किए. 


-39 लेखकों में से 4 लेखकों ने अवॉर्ड की पुरस्कार राशि को लौटाने का ऑफर ही नहीं किया.


-35 लेखकों ने पुरस्कार राशि का चेक साहित्य अकादमी को लौटाने की बात कही.


-4 लेखकों ने सिर्फ अवॉर्ड वापसी का ऐलान किया. उन्होंने न तो स्मृति चिन्ह और न ही अवॉर्ड की राशि वापिस लौटाने की पेशकश की. जिन लोगों ने चेक लौटाए उनके चेक कभी बैंक में लगाए नहीं गए क्योंकि, साहित्य अकादमी के संविधान में कहीं भी अवॉर्ड वापसी के तरीके का जिक्र नहीं है. यानी अगर कोई पुरस्कार लौटाए भी तो वो वापस लिए नहीं जा सकते हैं.


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साहित्य अकादमी पुरस्कारों की जांच के दौरान हमें ये भी पता चला कि अवॉर्ड देने वाली ज्यूरी के सदस्य कुछ दिन बाद अवॉर्ड पाने वालों की लिस्ट में शामिल हो जाते हैं और जिन्होंने अवॉर्ड लिया वो अवार्ड देने वाली समिति के सदस्य बन जाते हैं.


ऐसा खेल खेलने वाले कई लोग अवॉर्ड वापसी गैंग में शामिल हैं जबकि वो जानते हैं कि अवॉर्ड लेने के बाद अवॉर्ड वापस नहीं होते हैं.


यहां एक बात और ध्यान देने की है. वो ये कि क्या आपने कभी सुना है कि किसी सैनिक ने वीरता पुरस्कार लौटाए. परमवीर चक्र लौटाया, महावीर चक्र लौटाया या फिर अशोक चक्र लौटाए हों. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये पुरस्कार वीरता और शौर्य के दम पर हासिल किए जाते हैं जबकि दरबारी विचारधारा से संक्रमित होकर अवॉर्ड वापस करने वालों की संख्या इस देश में बहुत ज्यादा है, लेकिन ये एक तरीके से अच्छा ही है क्योंकि, चापलूसी के दम पर हासिल किए गए पुरस्कार लौटा ही दिए जाने चाहिए.