नई दिल्‍ली:  दुनिया में ज्‍यादातर लोग अपना पूरा जीवन पैसे कमाने और भौतिक सुख सविधाओं को जमा करने में लगा देते हैं. उनकी कोशिश होती है कि मृत्यु के बाद भी लोग उन्हें याद रखें. लेकिन सभी को अपने जीवन में इतना वक्त नहीं मिलता है और वो कम उम्र में भी बहुत बड़ा काम कर देते हैं.  दिल्ली की सिर्फ 20 महीने की धनिष्ठा ने ऐसा ही काम किया है. कम उम्र में ही उसकी मौत हो गई, लेकिन मृत्यु से पहले ही उसने अपने शरीर के 6 अंगों का दान करके 5 लोगों को नई जिंदगी दी है. 


अंगदान का बड़ा फैसला


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इसी महीने की 8 तारीख को धनिष्ठा अपने घर की पहली मंजिल से नीचे गिर गई. उसके माता-पिता उसे लेकर अस्पताल गए. वहां डॉक्टरों ने धनिष्ठा को ब्रेन डेड घोषित कर दिया और कहा कि उसके ठीक होने की संभावना न के बराबर है. धनिष्ठा के माता-पिता के दुख का आप अनुमान भी नहीं लगा सकते. लेकिन इस मुश्किल समय में भी इस परिवार ने धनिष्ठा के अंगदान का बड़ा फैसला किया और इस फैसले ने उनकी बच्ची को अमर बना दिया है. 


इस बच्ची के हार्ट, लिवर और दोनों किडनियां और दोनों आंखों के कॉर्निया को परिवार की सहमति से दान दे दिया गया. 


इन अंगों से 5 लोगों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल चुकी है और अब उन 5 लोगों में ही धनिष्ठा के परिवार को अपनी बेटी की खुशियां दिखाई देती हैं.


अमर होने का सबसे बढ़िया तरीका


लोग चाहते हैं कि मृत्यु के बाद भी उन्हें याद रखा जाए. हालांकि अमर होने का सबसे बढ़िया तरीका अंगदान ही है, जिसमें आप दूसरों को नया जीवन देकर अमर हो सकते हैं. 20 महीने की धनिष्ठा की कहानी हमें ये भी बताती है कि अमर होने के लिए लंबे जीवन की नहीं, बल्कि बड़े जीवन की जरूरत होती है. 


अपने दिल के दुकड़े को अंगदान के लिए सौंप देना किसी माता-पिता के जीवन का शायद सबसे कठिन फैसला होगा. विज्ञान मृत्यु पर विजय कब हासिल करेगा ये तो नहीं मालूम, लेकिन धनिष्ठा ने सिर्फ 20 महीने की उम्र में ही मृत्यु पर विजय हासिल कर ली. 



अपने घर में ही हुए एक हादसे के बाद धनिष्ठा को अस्पताल ले जाया गया. वहां डॉक्टरों ने पहले इस बच्ची को बचाने की बहुत कोशिशें की और जब वो बच्ची की जान नहीं बचा पाए,  तो उसके अंगों की मदद से 5 लोगों को नई जिंदगी दे दी. 


भावुक करने वाली कहानी 


सर गंगाराम अस्पताल के ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. नैमिष मेहता ने बताया कि  हमारे पास बच्ची को 8 जनवरी को लाया गया था. बच्ची छत से गिर गई थी. बच्ची को हमने बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन दुर्भाग्‍यवश हम उसे नहीं बचा पाए.  उसके बाद हमने फैमिली से कंसल्ट किया ऑर्गन डोनेशन के लिए.  अभी तक इस तरह का कोई केस हमने भारत में नहीं देखा है, जहां 20 महीने की बच्ची ने 5 लोगों को एक नई जिंदगी दी हो. 


भावुक करने वाली इस कहानी में धनिष्ठा के माता-पिता ने भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ये परिवार अपनी बेटी को खोने से दुखी है, लेकिन अब इन्होंने दूसरे लोगों को मिली नई जिंदगी में अपनी खुशी ढूंढ ली है.


धनिष्ठा मां का कहना है कि ये बहुत मुश्किल डिसीजन था हमारे लिए.  जब हम हॉस्पिटल मे थे तब ऐसे कई लोग थे जिनको ऑर्गन ट्रांसप्लांट की जरूरत थी लेकिन कोई डोनर नहीं मिल रहा था. हमने भी सोचा और आपस में बात की कि हमारी बेटी तो चली गई लेकिन शायद अंगदान से कुछ लोगों की जिंदगी बच सकती है.  मैं सभी से ये कहूंगी कि वो अंगदान करें.  मैंने और मेरे पति ने ये डिसीजन लिया है कि हम भी अपने ऑर्गन डोनेट करेंगे. 


वहीं पिता आशीष कुमार कहते हैं, हमने हॉस्पिटल से कंसल्ट किया उन्होंने हमारी पूरी मदद की. आज हमारी बेटी पांच लोगों  में जिंदा है.  


किसी की मृत्यु शोक का विषय है या खुशी का, धनिष्ठा की कहानी में आपको इसी अंतर को समझने की जरूरत है. दूसरों को जीवन देना दुनिया का सबसे बड़ा पुण्य है और 5 जिंदगियों को बदलकर धनिष्ठा ने इसकी बराबरी की है.


पिछले वर्ष 17 दिसम्बर को हमने आपको गुजरात के जश ओझा की कहानी दिखाई थी.  ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बाद जश के सात अंगों का दान किया गया था.  जश सिर्फ ढाई साल का था.  हमने इस खबर पर आपके साथ चर्चा की और इस कहानी ने दूसरे लोगों को भी अंगदान के लिए प्रेरित किया. आज हमने जश ओझा के परिवार से बात की और उन्होंने भी हमारी सकारात्मक खबरों वाली इस पत्रकारिता की तारीफ की है.