नई दिल्ली: 5 राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो गया है. ऐसे में जहां केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए 2024 के लोक सभा चुनावों से पहले महत्वपूर्ण परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है तो वहीं, इन्हीं चुनावों के नतीजे पूरे विपक्ष के लिए भी एक अहम परीक्षा है. क्योंकि माना जा रहा है कि 2024 के चुनावों में विपक्ष का चेहरा इन्हीं चुनावों से तय होगा. बता दें कि चुनाव वाले 5 राज्यों में से 4 में भाजपा सत्तारूढ़ है.


भाजपा के लिए अहम टास्क हैं ये चुनाव


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उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने शनिवार को 5 राज्यों में विधान सभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की है. चुनाव वाले 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर में भाजपा की सरकार है, जबकि पंजाब में कांग्रेस सत्तारूढ़ है और ये चुनाव 3 ‘विवादित’ कृषि कानूनों को खत्म करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद भाजपा की पहली महत्वपूर्ण परीक्षा है. बता दें कि उत्तर भारत के किसानों के बड़े वर्ग के बीच सरकार के प्रति बढ़ रहे असंतोष को समाप्त करने के लिए मोदी ने तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया था.


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विपक्षी खेमे में चेहरा ढूंढ़ने की कवायद


यदि 10 फरवरी से शुरू होने वाले चुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ दल के लिए महत्व रखते हैं तो इनके परिणाम विपक्षी खेमे के लिए भी उतना ही राजनीतिक महत्व रखते हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने आक्रामक चुनावी अभियान छेड़ दिया है, जिनके निशाने पर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 2024 के लोक सभा चुनावों में भाजपा को चुनौती देने वाले किसी भी संयुक्त विपक्ष का स्वाभाविक चेहरा होने के कांग्रेस के दावे को भी इन 5 राज्यों के विधान सभा चुनावों में क्षेत्रीय परीक्षाओं से गुजरना होगा. इन चुनावों के नतीजे विपक्ष की राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दे सकते हैं.


कांग्रेस के लिए भी अहम चुनौती


यह थ्योरी इसलिए भी ज्यादा प्रभावी नजर आती है क्योंकि सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी उन चार में से तीन राज्यों में मुख्य रूप से चुनौती देने वाली पार्टी है, जहां भाजपा सत्ता में है. पंजाब में कांग्रेस खुद सत्ता में है. 


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भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं ये 2 चरण


भाजपा के लिए, 10 और 14 फरवरी को होने वाली वोटिंग के पहले 2 चरण शायद सबसे चुनौतीपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हीं में पंजाब और जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट पड़ेंगे. पंजाब में किसानों का आंदोलन सबसे तीव्र था और पश्चिमी UP भी इससे जुड़े विरोध प्रदर्शनों से बुरी तरह प्रभावित हुआ था.


ऐलान से पहले लगाई जा रहीं थीं अटकलें 


इसके अलावा गोवा और उत्तराखंड दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है और वहां भी 14 फरवरी को ही वोटिंग होनी है. कुछ राजनीतिक ज्ञानियों का मानना है कि पहले 2 चरणों में दिखने वाले चुनावी रुझान उत्तर प्रदेश के लिए शेष 5 चरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. बता दें कि UP में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं, जहां 15 करोड़ से ज्यादा वोटर्स हैं. कुछ हलकों में अटकलें लगाई जा रही थीं कि भाजपा चाहेगी कि उत्तर प्रदेश में चुनाव राज्य के पूर्वी हिस्से से शुरू हों, जहां माना जाता है कि किसानों के विरोध के मद्देनजर पार्टी राज्य के पश्चिमी हिस्से की तुलना में मजबूत स्थिति में है. हालांकि, चुनावी शेड्यूल में पहले की ही तरह का पैटर्न अपनाया गया है और यह राज्य के पश्चिमी हिस्से से पूरब की ओर बढ़ेगा.


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2017 बनाम 2022


अगर 2017 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में मजबूत लहर थी, जिसके कारण पूरे राज्य में भाजपा को फायदा मिला था, तो इस बार भाजपा को जाटों के एक वर्ग के बीच कथित गुस्से की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिसे सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ अपने पक्ष में भुनाने के लिए समाजवादी पार्टी और रालोद ने हाथ मिलाया है. भाजपा नेताओं ने पिछले चुनाव में मिली जीत के कारनामे को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में हुए विकास और हिंदुत्व के दम पर दोहराने का विश्वास व्यक्त किया है, जबकि मोदी पार्टी के अभियान का मेन सोर्स बने हुए हैं.


भाजपा को इन बातों का मिल सकता है फायदा


भाजपा को उत्तराखंड में कांग्रेस के खेमे में मतभेदों से भी फायदा होने की उम्मीद है, भले ही उसे राज्य में 2 मुख्यमंत्रियों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा हो. गोवा और मणिपुर में भी बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, क्योंकि भाजपा ने दोनों राज्यों में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को ‘दलबदल’ के जरिए कमजोर करने का काम किया है.


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