Farmers Protest: नए कृषि कानूनों के अमल पर Supreme Court ने लगाई रोक, सुनवाई के दौरान CJI ने कही ये बात
Farm laws Stayed and Supreme Court forms 4-Member Committee: नए कृषि कानूनों (New Agriculture Laws) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए अगले आदेश तक रोक लगा दी.
नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों (New Agriculture Laws) और किसानों के प्रदर्शन (Farmers Protest) को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को सुनवाई की, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने केंद्रीय कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी. इसके साथ ही कोर्ट ने 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली पर रोक लगाने की केंद्र सरकार की अर्जी पर किसान संगठनों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इस मसले पर सोमवार को सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने किया कमेटी का गठन
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कानूनों के अमल पर रोक लगाते हुए इस मसले को सुलझाने के लिए एक कमेटी का गठन किया, जिसमें कुल चार लोग शामिल होंगे. कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के एचएस मान, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल धनवत शामिल हैं.
26 नवंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं किसान
किसान, केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं. किसानों ने 26 नवंबर से इन कानूनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और दिल्ली आने वाली सीमाओं पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों की जमीन बेच दी जाएंगी: वकील
सुप्रीम कोर्ट में किसानों की ओर से वकील एमएल शर्मा ने बहस की शुरुआत की और कहा कि किसान कमेटी के पक्ष में नहीं हैं और हम कानूनों की वापसी ही चाहते हैं. उन्होंने कहा कि किसानों की जमीन बेच दी जाएंगी. इसके बाद चीफ जस्टिस ने वकील से पूछा कि ये कौन कह रहा है कि जमीन बिक जाएंगी? फिर एमएल शर्मा ने कहा कि अगर हम कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट करेंगे और फसल क्वालिटी अच्छी नहीं हुई तो कंपनी उनसे भरपाई मांगेगी. इस पर CJI ने कहा कि हम अंतरिम आदेश में कहेंगे कि जमीन को लेकर कोई कांट्रेक्ट नहीं होगा.
'अनिश्चितकालीन प्रदर्शन से हल नहीं निकलेगा'
चीफ जस्टिस ने कहा, 'हम चाहते हैं कि किसान कमेटी के पास जाएं, हम इस मुद्दे का हल चाहते हैं और अनिश्चितकालीन प्रदर्शन से हल नहीं निकलेगा.' उन्होंने कहा, 'कोई भी हमें कमेटी बनाने से नहीं रोक सकता है. जो कमेटी बनेगी, वो हमें रिपोर्ट देगी.' CJI ने कहा कमेटी हम अपने लिए बना रहे है और कमेटी हमें रिपोर्ट देगी. कमेटी के समक्ष कोई भी जा सकता है. एमएल शर्मा ने कहा कि किसान कल मरने की बजाय आज मरने को तैयार हैं. CJI ने कहा कि हम इसे जीवन-मौत के मामले की तरह नहीं देख रहे. हमारे सामने कानून की वैधता का सवाल है. कानूनों के अमल को स्थगित रखना हमारे हाथ में है. लोग बाकी मसले कमेटी के सामने उठा सकते हैं.
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कमेटी के सामने क्यों नहीं जाएंगे किसान: CJI
CJI की टिप्पणी; कहा- यह कोई राजनीति नही है, हम समस्या का समाधान चाहते हैं. हम जमीनी हकीकत जानना चाहते हैं इसलिए कमेटी का गठन चाहते हैं. CJI ने कहा कि कल किसानों के वकील दवे ने कहा की किसान 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली नहीं निकालेंगे. अगर किसान सरकार के समक्ष जा सकते है तो कमेटी के समक्ष क्यों नही? अगर वो समस्या का समाधान चाहते हैं तो हम ये नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के समक्ष पेश नहीं होंगे. सीजेआई ने कहा कि सुनने में आ रहा है कि गणतंत्र दिवस कार्यक्रम को बाधित करने की तैयारी है. सवाल है कि लोग हल चाहते हैं या समस्या बनाए रखना चाहते हैं. अगर हल चाहते हैं तो यह नहीं कह सकते कि कमेटी के पास नहीं जाएंगे.
'वकील को न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए'
याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने कहा कि कोर्ट ही हम सबकी आखिरी उम्मीद है. CJI ने कहा कि जो वकील हैं, उन्हें न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए. ऐसा नहीं हो सकता कि जब आदेश सही न लगे तो अस्वीकार करने लगें. एमएल शर्मा ने कहा कि मैंने पूर्व CJI खेहर समेत कुछ नाम सुझाए हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि बाकी लोग भी सुझाएं. हम विचार करेंगे.
पीएम को नहीं कहेंगे बैठक में आएं: चीफ जस्टिस
एमएल शर्मा ने कहा कि किसान यह भी कह रहे हैं कि सब आ रहे हैं, पीएम बैठक में क्यों नहीं आते. चीफ जस्टिस ने कहा कि हम पीएम को नहीं कहेंगे कि वह बैठक में आएं. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कृषि मंत्री बात कर रहे हैं और ये उनका विभाग है.
तमिलनाडु में भी प्रदर्शन कर रहे हैं किसान
तमिलनाडु के किसान संगठन ने कहा कि वह कृषि कानून का विरोध करते हैं और कानून रद्द करने की मांग करते है. चीफ जस्टिस ने कहा कल अटॉर्नी जनरल ने हमको बताया की दक्षिण भारत के किसान कानून का समर्थन कर रहे है. इस पर वकील ने कहा कि ऐसा नहीं है. तमिलनाडु में भी किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं.
अनिश्चितकाल के लिए कानून के अमल पर रोक नहीं
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कानून के अमल पर रोक लगाएंगे, लेकिन यह अनिश्चितकाल के लिए नहीं है. हमारा मकसद सिर्फ सकारात्मक माहौल बनाना है. उस तरह की नकारात्मक बात नहीं होनी चाहिए, जैसी याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने आज सुनवाई के शुरू में की. दरअसल, एमएल शर्मा ने कहा था कि किसान कमिटी के पास नहीं जाएंगे और कानून रद्द हो.
सरकार ने दाखिल किया हलफनामा
किसान आंदोलन मामले में सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना प्रारंभिक हलफनामा दाखिला किया था. सरकार ने हलफनामे में कहा कि प्रदर्शनकारियों की 'गलत धारणा' को दूर करने की जरूरत है. कृषि मंत्रालय ने शीर्ष अदालत को बताया कि प्रदर्शनकारियों ने यह गलत धारणा दी है कि केंद्र सरकार और संसद ने कभी भी किसी भी समिति द्वारा परामर्श प्रक्रिया या मुद्दों की जांच नहीं की. कानून जल्दबाजी में नहीं बने हैं, बल्कि दो दशकों के विचार-विमर्श का परिणाम है.
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केंद्र ने की ट्रैक्टर रैली पर रोक की मांग
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अपील की है कि कोर्ट किसान संगठनों की गणतंत्र दिवस को प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली पर रोक लगाए, क्योंकि ऐसी रैली से विश्व में देश के सम्मान को ठेस पहुंचेगी. बता दें कि किसानों ने गणतंत्र दिवस पर दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में टैक्टर परेड निकालने की चेतावनी दी है. इससे पहले किसानों ने 7 जनवरी को दिल्ली के चारों तरफ ट्रैक्टर रैली निकाली थी.
किसानों-सरकार के बीच हो चुकी है 8 दौर की बैठक
बता दें कि केंद्र सरकार और किसान संगठन के नेताओं के बीच अब तक 8 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन कोई भी सहमति नहीं बन पाई है. किसान नेता लगातार तीनों कृषि कानूनों को काला कानून करार देते हुए इन्हें रद्द कराने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार प्रावधानों में बदलाव करते हुए इन्हें बरकरार रखने की जिद्द पर अड़ी है. किसानों का साफ कहना है कि वे कानून रद्द होने तक प्रदर्शन जारी रखेंगे.
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