Farmers Protest Noida Updates in Hindi: आज नोएडा के लाखों लोग पिछले 2 दशकों के सबसे बड़े महाजाम से जूझे. इसका असर केवल नोएडा तक नहीं है बल्कि ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली से नोएडा आने वाले लोग भी इसके शिकार हुए. इस जाम की वजह थी, अपनी विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली जाने पर अड़े किसानों का आंदोलन. ऐसा नहीं है कि ऐसा आंदोलन शहर में पहली बार हुआ है या नोएडा-ग्रेनो के किसानों ने पहली बार संसद भवन का घेराव करने के लिए कूच किया हो. इससे पहले भी आंदोलन और दिल्ली कूच के ऐलान हुए लेकिन सूझबूझ और बेहतरीन रणनीति के जरिए हर बार उनसे शांतिपूर्व तरीके से निपट लिया गया और शहर के लोग जाम का शिकार होने से बच गए. लेकिन इस बार पुलिस अधिकारियों ने आंदोलन से निपटने के लिए कैजुअल अप्रोच अपनाई और उससे निपटने के लिए ठोस रणनीति नहीं बनाई, जिसके चलते गुरुवार का दिन दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों के लिए 'ब्लैक डे' बन गया. 


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किसानों ने पहले ही कर दिया था ऐलान


सबसे पहले आपको इस आंदोलन के बारे में बताते हैं. सुखबीर खलीफा के नेतृत्व में संसद भवन जाने की मांग कर रहे 149 गांवों के किसानों में करीब डेढ़-दो हजार प्रदर्शनकारी दिल्ली जाने के लिए निकले. इन प्रदर्शनकारियों में महिलाओं की भी खासी संख्या रही. वे किसान विभिन्न मांगों को लेकर पिछले कई दिनों से नोएडा अथॉरिटी के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन उनकी समस्याओं का ठोस समाधान नहीं हो पाया. इसके बाद सुखबीर खलीफा ने 7 फरवरी को किसानों की सभा में 8 फरवरी को संसद भवन घेराव का ऐलान कर दिया.


अभी तक अपनाई जाती थी ये रणनीति


अभी तक हुए इस तरह के आंदोलनों में पुलिस दिल्ली कूच से पहले ही किसान नेताओं को ऐहतियातन हिरासत में लेकर जाम की समस्या को टाल देती थी. अगर किसान संगठन सांकेतिक रूप से दिल्ली जाने पर अड़ भी जाते थे तो चिल्ला बॉर्डर तक उन्हें जाने की अनुमति देकर बाद में डिटेन कर पुलिस लाइन पहुंचा दिया था. अगर किसान वहीं पर धरना शुरू करने की जिद करते थे तो नोएडा की सीमा में चिल्ला बॉर्डर के पास रोड से अलग जगह का इंतजाम कर उन्हें विरोध- प्रदर्शन करने की जगह दे दी जाती थी. इससे ट्रैफिक पर भी असर नहीं पड़ता था और किसानों की बात भी रह जाती थी.


किसान आंदोलन में भी अपनाई गई थी रणनीति


पंजाब-हरियाणा के किसान आंदोलन के दौरान भी इसी रणनीति का इस्तेमाल किया गया था. उस दौरान भाकियू का भानु गुट समेत दूसरे कई किसान संगठन दिल्ली में प्रदर्शन करने पर अड़े थे लेकिन पुलिस ने चिल्ला बॉर्डर पर नाकाबंदी कर उन्हें रोक दिया था. इसके बाद उन्होंने तीनों कृषि कानून वापस होने तक चिल्ला बॉर्डर के पास ही टेंट लगाकर आंदोलन किया था.



दिल्ली पुलिस के साथ रहता था तालमेल


कई बार ऐसा वाकया भी हुआ, जब किसानों और दूसरे संगठनों को विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाने की अनुमति दी गई. ऐसा होने पर नोएडा पुलिस के अधिकारियों ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के साथ तालमेल करते हुए पूरी सूचना दी. इसके बाद जब प्रदर्शनकारी जंतर-मंतर पर पहुंचने के बाद संसद की ओर बढ़ने की कोशिश करते तो पुलिस उन्हें हिरासत में ले लेती थी और देर शाम छोड़ देती थी.


नोएडा पुलिस की गलती पड़ी लोगों को भारी


नोएडा पुलिस ने इस बार ऐसा कोई तरीका नहीं अपनाया और वह हो गया, जिससे गुरुवार का दिन नोएडा वालों के लिए ब्लैक डे के रूप में दर्ज हो गया. पुलिस ने पहली बड़ी गलती ये की कि आंदोलन से जुड़े बड़े नेताओं को भरोसे में लेकर दिल्ली कूच को वापस लेने के लिए मनाने की गंभीर कोशिश नहीं की गई. दूसरी गलती ये रही कि किसानों को दलित प्रेरणा स्थल तक पहुंचने का मौका दिया गया. करीब 30 किमी लंबे नोएडा- ग्रेनो एक्सप्रेसवे पर करीब 3 किमी लंबा यह एरिया बॉटलनेक की तरह काम करता है, जहां पर हर वक्त गाड़ियां रेंगकर चलने को मजबूर होती हैं. ऐसे में जब डेढ़- दो हजार किसान दलित प्रेरणा स्थल की सड़क पर आए तो दोनों ओर का ट्रैफिक पूरी तरह जाम हो गया. 


गलती पर गलती करती चली गई पुलिस


पुलिस चाहती तो किसानों को अपनी गाड़ियों में बिठाकर डीएनडी या चिल्ला बॉर्डर तक पहुंचाकर वहां के खुले एरिया में डिटेन कर सकती थी. ऐसा करने से ट्रैफिक भी नॉर्मल हो जाता लेकिन ऐसा करने के बजाय पुलिस ने दलित प्रेरणा स्थल की मेन रोड पर ही हैवी बैरिकेडिंग करके किसानों को रोक दिया. इसके साथ ही दिल्ली से नोएडा-ग्रेनो एक्सप्रेस वे होते हुए आगरा, अलीगढ़, लखनऊ, बुलंदशहर, मथुरा जाने वाले हजारों गाड़ियों को डीएनएडी-फ्लाईओवर, फिल्मसिटी फ्लाईओवर होते हुए डीएससी रोड पर डाइवर्ट करना शुरू कर दिया.


शहर की अंदरूनी सड़कों पर लगा महाजाम


इसी तरह ग्रेनो एक्सप्रेसवे से होते हुए दिल्ली जा रही हजारों गाड़ियों को महामाया फ्लाईओवर पर डाइवर्ट करवाकर सेक्टर 37 होते हुए भेजना शुरू कर दिया. इसके चलते एक्सप्रेसवे समेत नोएडा की तमाम अंदरुनी सड़कों पर दिनभर लंबा महाजाम लगा रहा. जिन स्कूलों की छुट्टी 2 बजे हुए थी, वे शाम 4 बजे के बाद अपने घर पहुंचे. वहीं ऑफिस जाने वाले लोगों को भी डेढ़- 2 घंटे तक जाम से जूझना पड़ा. दिक्कत की बात ये थी कि आगे जाने का रास्ता बंद था और पीछे मुड़ नहीं सकते थे, इसके चलते लोग जाम में फंसकर रह गए.  


काफी मान-मनौव्वल के बाद किसान संगठन शाम के वक्त अपना प्रदर्शन खत्म करने पर राजी हो गए और दलित प्रेरणा से हट गए. इसके साथ ही ट्रैफिक के हालात भी अब धीरे-धीरे सामान्य होने लगे हैं. हालांकि अगर पुलिस अधिकारी अपनी सूझबूझ का परिचय देकर योजना बनाते तो इस अप्रिय स्थिति को टाला जा सकता था.