First Dalit Lok Sabha speaker: 18वीं लोकसभा के गठन के बाद सबकी नजरें लोकसभा स्पीकर के चुनाव पर टिकी थीं. बुधवार को ओम बिरला को लगातार दूसरी बार लोकसभा स्पीकर चुन लिया गया है. लोकसभा अध्यक्ष का अध्यक्ष चुने जाने के बाद ओम बिरला ने साल 1975 में लगाई गई इमरजेंसी की कड़े शब्दों में निंदा की और कांग्रेस पर जमकर बरसे. उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान भारत के नागरिकों के अधिकार नष्ट कर दिए गए, नागरिकों से उनकी आजादी छीन ली गई. ये वो दौर था जब विपक्ष के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया. इमरजेंसी अपने साथ ऐसी असामाजिक और तानाशाही की भावना से भरी भयंकर कुरीतियां लेकर आई, जिसने गरीबों, दलितों और वंचितों का जीवन तबाह कर दिया. आइए इस मौके पर जानते हैं भारत देश के पहले दलित लोकसभा स्पीकर के बारे में. 


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बालयोगी लोकसभा के पहले दलित स्पीकर
1990 के दशक के अंत में देश गठबंधन के दौर से गुजर रहा था और 1998 में हुए मध्यावधि चुनाव से 12वीं लोकसभा का गठन किया गया. केंद्र में इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार (एनडीए) की बनी. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी पिछली संयुक्त मोर्चा सरकार की परंपरा को जारी रखते हुए स्पीकर का पद अपने पास नहीं रखा और बाहर से समर्थन दे रही दल तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) को दे दिया. टीडीपी की ओर से जीएमसी बालयोगी निर्विरोध स्पीकर चुने गए. बालयोगी को देश के पहले दलित स्पीकर होने का गौरव हासिल है. 12वीं लोकसभा का कार्यकाल 13 महीने ही रहा. इस तरह लोकसभा के प्रथम दलित स्पीकर गंती मोहन चंद्र बालयोगी बनने का इतिहास अपने नाम दर्ज कराया. 1998 में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के सुप्रीमो एन. चंद्रबाबू नायडू ने उस समय के लोकसभा के सबसे युवा सांसद को लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुना था.


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बालयोगी के जिंदगी का सफर
बालयोगी दलित समाज से आने वाले पहले नेता थे जो लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे. लेकिन उनके करियर की शुरुआत सियासत के साथ नहीं हुई. वे तो कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने गृह जिले ईस्ट गोदावरी के हेडक्वार्टर काकीनाडा में वकालत कर रहे थे. 1985 में वे जुडिशियल सर्विस के लिए सिलेक्ट भी हो गए और बतौर मजिस्ट्रेट 1 बरस काम भी किया. मजिस्ट्रेट की नौकरी छोड़ने के बाद राजनीति में आए और लोकसभा स्‍पीकर के पद तक सफर पूरा किया.


जब अटल की गिरी सरकार, बालयोगी थे लोकसभा स्पीकर 
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार अविश्वास प्रस्ताव पर एक वोट के अंतर से गिर गई. बतौर स्पीकर जीएमसी बालयोगी चाहते तो उस समय कांग्रेस के सदस्य गिरिधर गोमांग को, जो उस समय ओडिशा के मुख्यमंत्री भी थे, मतदान में शामिल होने से रोककर या फिर स्पीकर के रूप में अपने निर्णायक वोट का इस्तेमाल कर वाजपेयी सरकार के गिरने से रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने पद की मर्यादा रखी और ऐसा नहीं किया. गिरधर गोमांग को उस समय के लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने अपने विवेक के आधार पर वोट डालने की अनुमति प्र​दान की थी. उस साल फरवरी में गोमांग ओडिशा के सीएम बन गए थे, पर लोकसभा से इस्तीफा नहीं दिया था और और वोटिंग के दिन वह सदन में मौजूद थे. उन्होंने सरकार के खिलाफ वोट किया और सरकार गिर गई. बतौर मुख्यमंत्री सांसद के रूप में वोट देने के लिए गोमांग की काफी आलोचना भी हुई थी.


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कौन थे वो सांसद जिनके एक वोट से गिरी सरकार?
अटलजी की सरकार के गिरने के पीछे ​जिस सांसद को जिम्मेदार माना जाता है, वो थे ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरिधर गोमांग ही थे. इन्होंने अटल की सरकार के खिलाफ वोट किया था. लोकसभा में वोटिंग के दौरान पक्ष में 269 वोट डाले गए थे. वहीं विपक्ष में गिरधर गोमांग के वोट डालते ही वोटों की संख्या 270 हो गई और महज एक वोट से अटल की सरकार गिर गई. दरअसल 1998 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन भाजपा 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.

विमान हादसे में बालयोगी की मौत
1999 के एक और मध्यावधि चुनाव वाजपेयी की अगुवाई में फिर एनडीए सरकार बनी और जीएमसी बालयोगी ही अगले स्पीकर चुने गए लेकिन इस बार भी वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और मार्च 2002 में एक विमान हादसे में मारे गए.