नई दिल्ली: जॉर्ज फर्नांडिस (George fernandes) के निधन के साथ ही भारतीय राजनीति ने एक महान समाजवादी नेता को खो दिया है. अपने राजनीतिक जीवन के ज्यादातर हिस्से विरोध-प्रदर्शन और जनता की लड़ाई लड़ते रहने वाले इस नेता से जुड़े कई किस्से हैं. खासकर इमरजेंसी के दौरान जॉर्ज ने जिस तरह से इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की वह ऐतिहासिक है. जॉर्ज काफी मिलनसार और जनता के बीच रहने वाले नेता रहे. वह देश के जिस भी हिस्से में गए लोगों ने उन्हें अपना मान लिया.


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जॉर्ज फर्नांडिस के निधन की खबर सुनकर कई लोग उनके से जुड़े संस्मरण का याद कर रहे हैं. ZEE डिजिटल से बातचीत में जॉर्ज से मित्रवत रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने इमरजेंसी के दिनों की एक घटना का जिक्र करते हुए जॉर्ज के व्यक्तित्व को समझाने की कोशिश की. सुरेंद्र किशोर ने बताया कि 1975 से 1977 तक देश में इमरजेंसी थी. इस दौरान देश में कुछ लोग ही जान हथेली पर रखकर राजनीतिक गतिविधियों मे शामिल थे. उनमें से एक जॉर्ज फर्नांडिस भी थे.


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उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार अपने हर विरोधी नेता को किसी ना किसी मुकदमें में आरोपी बनाकर जेल में ठूंस रही थी. इसी कड़ी में जॉर्ज फर्नांडिस को बड़ौदा डायनामाइट केस में आरोपी बनाया गया. जॉर्ज पर आरोप था कि उन्होंने डायनामाइट जुटाकर सरकारी प्रतिष्ठान को नुकसान पहुंचाया. सुरेंद्र किशोर ने बताया कि इस मामले में उनकी भी तलाश थी, लेकिन वह अंडरग्राउंड हो गए थे. मामले में करीब 25 लोगों को गिरफ्तार करके दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैद कर लिया गया था, लेकिन जॉर्ज पुलिस के हाथ नहीं आ रहे थे. तिहाड़ में कैद सभी आरोपियों को तरह-तरह की यातनाएं दी गई थीं.


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जॉर्ज फर्नांडिस भेष बदलकर देशभर में घुमते रहे और इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ मोर्चेबंदी में जुटे रहे. पुलिस से बचने के लिए जॉर्ज कभी पंजाबी वेश-भूषा धारण कर लेते तो कभी ठेठ ग्रामीण बन जाते. इसी कड़ी में वह पटना भी आए थे. यहां वे करीब 7 दिन रहे थे. यहां उन्होंने इमरजेंसी का विरोध करने वालों के साथ बैठकें की थी. हालांकि जॉर्ज भी गिरफ्तार कर लिए गए थे. उन्हें जंजीरों में जकड़कर कोर्ट में पेश किया गया था. जंजीरों में जकड़ी हुई जॉर्ज की तस्वीर इमरजेंसी को बयां करती है.


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जब जॉर्ज फर्नांडिस को बड़ौदा डायनामाइट केस के सिलसिले में दिल्ली के तीस हज़ारी कोर्ट में पेश किया गया तो जेएनयू के करीब दर्जन भर छात्रों ने नारे लगाए, 'जेल का फाटक तोड़ दो, जॉर्ज फर्नांडिस को छोड़ दो.' इमरजेंसी खत्म होने के बाद देश में पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी. तब जाकर बड़ौदा डायनामाइट केस में आरोपी बनाए गए सभी लोगों को बरी कर दिया गया. इमरजेंसी खत्म होने के बाद जयप्रकाश नारायण के आदेश पर जॉर्ज फर्नांडिस बिहार के मुजफ्फरपुर से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते. 



आज के दौर में जहां भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद बड़ी समस्या बनी हुई है, वहीं जॉर्ज एक ऐसे नेता थे जो मुंबई से आकर बिहार में लंबे समय तक राजनीति करते रहे. बिहार के लोगों ने उन्हें कभी भी पराया नहीं समझा. जॉर्ज मुजफ्फरपुर के अलावा नालंदा लोकसभा सीट से भी सांसद बने. वह वीपी सिंह की सरकार में रेलमंत्री रहे और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा मंत्रालय का जिम्मा संभाला.