यूपी उपचुनाव के नतीजे बीजेपी-कांग्रेस दोनों के लिए हो सकते हैं परेशानी का सबब
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों के लिए हुए उपचुनावों में सपा और बसपा के चुनावी गठबंधन के जरिये कामयाबी हासिल करने का परिणाम कांग्रेस के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है.
नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों के लिए हुए उपचुनावों में एसपी और बीएसपी के चुनावी गठबंधन के जरिये कामयाबी हासिल करने का परिणाम कांग्रेस के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है विशेषकर उन राज्यों में जहां कांग्रेस व बीजेपी के अलावा क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हैं. गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में सपा के उम्मीदवारों को समर्थन देने की बीएसपी की घोषणा के बाद कांग्रेस ने इस गठबंधन से अलग लड़ने का फैसला किया. पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस चाहती थी कि गोरखपुर सीट से सपा अपना उम्मीदवार वापस ले और कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन दे. लेकिन सपा इसके लिए तैयार नहीं हुई. कल आये चुनावी नतीजों में कांग्रेस इन दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवारों की जमानत भी नहीं बचा पाई.
गोरखपुर एवं फूलपुर लोकसभा सीटें क्रमश: उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थीं. इन सीटों के नतीजे आने के बाद कांग्रेस की चिंता साझा करते हुए संप्रग सरकार में मंत्री रहे उत्तर प्रदेश से एक वरिष्ठ नेता ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा कि इस परिणाम के बाद दोनों क्षेत्रीय दल यह मान सकते हैं कि गठबंधन में कांग्रेस के रहने या न रहने से उनकी संभावनाओं पर खास असर नहीं पड़ने वाला. यदि यह धारणा बनी तो कांग्रेस अगले लोकसभा चुनावों के लिए गठबंधन में सीटों की सौदेबाजी में सबसे ज्यादा नुकसान में रहेगी.
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एक वर्ष पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लडा़ था. राज्य की 403 सीटों पर गठबंधन कर सपा 298 और कांग्रेस 103 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा 'कांग्रेस का भाग्य अब पूरी तरह इन दोनों दलों के हाथ में है. और दोनों ही नहीं चाहेंगे कि लोकसभा की 80 सीटों में से कांग्रेस पांच-छ सीट से ज्यादा पर लडे़.'
दोनों क्षेत्रीय दलों का अपना अपना जातिगत समर्थक वर्ग (वोट बैंक) है. दोनों ही दलों के साथ मुस्लिम समुदाय जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए जुड़ता है. दोनों ही दलों के नेताओं को यह आशंका बनी रहती है कि कांग्रेस यदि मजबूत हुई तो उनके वोट बैंक में सेंध लग सकती है. ऐसी स्थिति अकेले उत्तर प्रदेश में नहीं है. कर्नाटक में जल्द ही होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बसपा ने गठबंधन के लिए कांग्रेस के बजाय स्थानीय क्षेत्रीय दल जनता दल (एस) को चुना. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी कांग्रेस के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में अपने लिए सम्मानजनक जगह निकालना बड़ी चुनौती होगी.
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कांग्रेस के रणनीतिकार मान रहे हैं कि यदि कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ जैसे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हुआ तो लोकसभा चुनावों तक हालात में कुछ बदलाव हो सकता है. कर्नाटक को छोड़ बाकी तीनों राज्यों में उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से है. कर्नाटक में वह यदि सरकार बचाने में कामयाब रहती है और वर्ष के अंत में बीजेपी से एक दो राज्य छीनने में उसे सफलता मिलती है तो क्षेत्रीय दलों के लिए उसके अखिल भारतीय महत्व को अनदेखा करना मुश्किल होगा.
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उप चुनावों के परिणाम आने के बाद ट्वीट के जरिए अपनी प्रतिक्रिया में कहा, 'नतीजों से स्पष्ट है कि मतदाताओं में बीजेपी के प्रति बहुत क्रोध है और वो उस गैर बीजेपी उम्मीदवार के लिए वोट करेंगे जिसके जीतने की संभावना सबसे ज़्यादा हो. राहुल ने यह भी कहा, 'कांग्रेस यूपी में नवनिर्माण के लिए तत्पर है, ये रातों रात नहीं होगा.'