गुजरात चुनाव से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि सूरत में भाजपा को जीएसटी और नोटबंदी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. लेकिन जिस तरह के रुझान आ रहे हैं उन्होंने साफ कर दिया है कि सूरत में सूरत बदलती नजर नहीं आ रही है. जीएसटी, नोटबंदी के बाद कांग्रेस ये उम्मीद बना कर चल रही थी कि जिस तरह व्यापारी वर्ग भाजपा से खफा नजर आ रहा था उसका फायदा उन्हें मिल सकता है. यही वजह रही कि राहुल गांधी ने सूरत को चुनावी केंद्र बनाया था. इसके अलावा पाटीदार आंदोलन का असर भी इस क्षेत्र में बहुत दिखा था. इसी वजह से हार्दिक पटेल को भी यहां से मजबूत माना जा रहा था. कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अपना पूरा जोर लगा दिया था यही नहीं जिस तरह से हार्दिक पटेल की सभाओं में लोगों का हुजूम उमड़ा था उसने भी कांग्रेस में एक उम्मीद की लौ जगा दी थी. जो अब चुनाव के नतीजों के साथ बुझती सी लग रही है. भाजपा का 16 में से 13 सीटों पर बढ़त हासिल करना इस बात को साफ कर देता है व्यापारी भाजपा से नाराज भले ही थे लेकिन उन्होंने उसका साथ नहीं छोड़ा था. गुजरात में जीएसटी को लेकर विपक्ष के आरोपों की हवा निकल गई है. 


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वहीं अहमदाबाद में 21 में से 17 सीटें बीजेपी के खाते में जा रही है जबकि कांग्रेस को 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ रहा है.


बताते चलें कि 606 साल पुराना अहमदाबाद शहर भारत का एकमात्र ऐसा शहर है जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है, इस किलेबंद शहर के 16 विधानसभा क्षेत्रों में से दो ऐसे निर्वाचन क्षेत्र हैं जमालपुर-खड़िया और दरियापुर जिन पर निगाहें बनी रहती हैं. जमालपुर को खड़िया के साथ परीसीमन के बाद जोड़ा गया. जमालपुर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है. 2012 में यहां से भाजपा के निर्वाचित विधायक भूषण भट्ट को 39 फीसद वोट हासिल हुए थे जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी को 33 फीसदी और निर्दलीय प्रत्याशियों ने 25 फीसदी वोट हासिल किए थे. अहमदाबाद 1990 से ही भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है. 2012 में यहां की 14 सीट भाजपा के खाते में आई थी वहीं कांग्रेस के खाते में सिर्फ दो सीट आई थी. भाजपा एक बार फिर यहां पर जीत दर्ज कर इतिहास दोहराती नजर आ रही है.


गौरतलब है कि देश में जैसे ही गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानि जीएसटी लागू हुआ उसके बाद से ही सूरत में व्यापारी वर्ग रोष में आ गया था. हजारों कपड़ा व्यापारी जीएसटी के विरोध में सड़क पर उतर गए थे. जहां टेक्सटाइल बाजार से लेकर रिंग रोड तक मार्च निकाला गया था वहीं सूरत के 40 हजार थोक कपड़ा व्यापारी हड़ताल पर चले गए थे. हालात इतने बेकाबू हो गए थे कि पुलिस को मजबूरन लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा था. एक अनुमान लगाया गया था कि कपड़ा कारोबार के ठप्प होने से रोजाना करीब 150 करोड़ तक का नुकसान हो रहा था.


इसके बाद गुजरात चुनाव को लेकर ये माना जा रहा था कि इस बार वहां भाजपा का आ पाना बेहद मुश्किल होगा. लेकिन चुनाव नतीजों ने जो रुझान दिए हैं उसने सभी राजनीतिक पंडितों के हैरान करके रख दिया है. इसके बाद ये समझा जा रहा है कि अभी गुजरात में मोदी को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.