DNA: शिवराज ने चलाई ये तिकड़म और MP में BJP को मिल गया `राज`, अब सत्ता के सिंहासन पर कौन होगा विराजमान?
MP Election Result 2023: इस चुनाव में जीत के साथ शिवराज सिंह चौहान ने एक नया रिकॉर्ड भी बना लिया है. अभी तक माना जाता था कि गुजरात, बीजेपी का एक ऐसा गढ़ है, जिसमें सेंध लगाना लगभग नामुमकिन है. गुजरात में 1995 के बाद लगातार बीजेपी की सरकार रही है.
MP News: मध्य प्रदेश में पिछली बार भले ही जनता के मन में शंका रही हो, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनावों में जनता के मन में कोई शंका नहीं थी. उन्होंने बीजेपी को झोली भरकर वोट दिए. मध्यप्रदेश की चुनावी परिणाम यही बताता है कि वहां की जनता के लिए बीजेपी और कांग्रेस में से एक चुनना था.
उनके लिए आम आदमी पार्टी, बीएसपी या निर्दलीय उम्मीदवारों के कोई मायने नहीं थे. मात्र 1 सीट भारत आदिवासी पार्टी को मिली है. लेकिन अन्य पार्टियां कोई सीट नहीं जीत पाई. यानी जनता को अपने प्रदेश की सरकार किसके हाथ में देनी थी, ये साफ था.
शिवराज ने बनाया नया रिकॉर्ड
इस चुनाव में जीत के साथ शिवराज सिंह चौहान ने एक नया रिकॉर्ड भी बना लिया है. अभी तक माना जाता था कि गुजरात, बीजेपी का एक ऐसा गढ़ है, जिसमें सेंध लगाना लगभग नामुमकिन है. गुजरात में 1995 के बाद लगातार बीजेपी की सरकार रही है. मुख्यमंत्री पद पर चेहरे भले ही बदले हों, लेकिन सत्ता पर बीजेपी का ही राज रहा है. ठीक उसी तरह आने वाले समय में मध्य प्रदेश, बीजेपी के नया गुजरात बन रहा है. जहां बीजेपी को हराना लगभग नामुमकिन है. अगर हम 2018 चुनाव के बाद कांग्रेस के 18 महीने के शासनकाल को हटा दें तो पिछले करीब 18 वर्षों से शिवराज सिंह चौहान, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
2003 से 2008 तक रहे बीजेपी शासनकाल में शिवराज सिंह चौहान का पहला कार्यकाल वर्ष 2005 से 2008 तक रहा.
इसके बाद वर्ष 2008 से 2013 तक उनका दूसरा कार्यकाल रहा.
फिर इसके बाद 2013 से 2018 तक उनका तीसरा कार्यकाल रहा.
2018 में हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी, प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी रही. कांग्रेस कार्यकाल में कमलनाथ करीब 18 मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
मार्च 2020 से 2023 चुनावों तक शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद पर रहे.
यानी 2018 चुनावों के बाद 18 महीने की कांग्रे सरकार को हटा दें, तो दिसंबर 2003 से लगातार मध्यप्रदेश में बीजेपी का शासन रहा है.
शिवराज सिंह चौहान ने देश के हिंदी भाषी राज्यों में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बनाया है.
2018 चुनावों के बाद कांग्रेस की राज्य में वापसी हुई थी. कमलनाथ, पूरे दम खम के साथ राज्य में सत्ता चलाने का दम भर रहे थे, लेकिन मध्यप्रदेश में पार्टी के अंदर इतनी फूट पड़ चुकी थी, कि उनका सत्ता से जाना तय था.
2023 में भी यही फूट, उनपर फिर से भारी पड़ी. वर्ष 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया, अपने करीब 27 समर्थकों के साथ सरकार से अलग हो गए थे. जिससे मध्यप्रदेश में 18 महीनों तक चली कांग्रेस सरकार गिर गई थी. इस मौका फायदा शिवराज सिंह चौहान ने उठा लिया. उस घटना के बाद, शिवराज सिंह चौहान ने दोबारा कांग्रेस को उबरने का मौका नहीं दिया. बीजेपी ने प्रदेश के जनता को इतने योजनाओं के तोहफे दिए, कि उन्होंने अपना भरोसा बीजेपी पर जताया. कई ऐसी योजनाएं थी जिनकी वजह से जनता को कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी पर भरोसा बना.
इन योजनाओं से हुई बीजेपी की बल्ले-बल्ले
बीजेपी को जिन योजनाओं ने लाभ पहुंचाया, उसमें एक है प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जिसके तहत केंद्र सरकार किसानों को सालाना 6000 रुपये देती है.
इस योजना को राज्य सरकार फ्रेंडली बनाने के लिए शिवराज सरकार ने अपनी तरफ से भी 6000 रुपये सालाना किसानों को देना शुरू किया. जिसके तहत मध्यप्रदेश के किसानों को सालाना 12 हजार रुपये मिलना तय हुआ.
इसके अलावा राज्य सरकार की लाडली बहना योजना भी इस बार महिलाओं को वोट करने के लिए प्रेरित कर गई. इस योजना के तहत राज्य की महिलाओं को हर महीने 1250 रुपये मिल रहे हैं. शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं में इस योजना का क्रेज देखते हुए, रकम को 1250 रुपये महीना से बढ़ाकर 3000 रुपये महीना करने का चुनावी वादा किया.
इस योजना का लाभ मध्यप्रदेश की 1 करोड़ 30 लाख महिलाओं को मिलता है. मध्य प्रदेश में कुछ 5 करोड़ 60 लाख वोटर हैं, जिसमें 2 करोड़ 70 लाख महिला वोटर हैं. बीजेपी को महिलाओं की बंपर वोटिंग का फायदा हुआ.
उज्ज्वला योजना के तहत सस्ते एलपीजी सिलेंडर भी बीजेपी के पक्ष में गए. 100 यूनिट तक 1 रुपये प्रति यूनिट के दर से मिलने वाली बिजली ने भी लोगों को बीजेपी के पक्ष में किया.
इसके अलावा मुख्यमंत्री कन्या विवाह, मुख्यमंत्री निकाह योजना, लाडली लक्ष्मी योजना ने भी प्रदेश की जनता पर सकारात्मक असर डाला है.
मध्य प्रदेश में केवल योजनाओं ने भी लाभ नहीं पहुंचाया. बल्कि इस बार बीजेपी ने 2018 के चुनावों में हुई चूक से सीख लेते हुए, मतदाता क्षेत्रों का माइक्रो मैनेजमेंट किया. इसका जिम्मा, कुछ बड़े नेताओं को दिया गया था. राज्य को अलग-अलग हिस्सों में बांटकर, चुनावी तैयारियों के लिए केंद्रीय नेताओं को उतारा गया. ये रणनीति काम कर गई.
बीजेपी ने बनाई ये रणनीति
जैसे बीजेपी ने मध्य प्रदेश को 6 हिस्सों में बांटा. कुछ नेताओं को इनके माइक्रो मैनेजमेंट की जिम्मेदारी दी. जिसमें ग्वालियर-चंबल के इलाके की जिम्मेदारी ज्योतिरादित्य सिंधिया, मालवा-नीमर क्षेत्र की जिम्मेदारी कैलाश विजयवर्गीय, महाकौशल क्षेत्र की जिम्मेदारी प्रह्लाद पटेल, बुंदेलखंड क्षेत्र की जिम्मेदारी राज्य मंत्री भूपेंद्र सिंह और गोपाल भारद्वाज को मिली, इसी तरह से भोपाल-नर्मदापुरम की जिम्मेदारी खुद शिवराज सिंह चौहान और विंध्या रीजन की जिम्मेदारी लोकसभा सदस्य रीति पाठक को दी गई.
आदिवासी क्षेत्रों पर बीजेपी की पकड़
बीजेपी को इसका लाभ हुआ. इस बार मध्यप्रदेश में बीजेपी की बड़ी जीत की एक वजह आदिवासी क्षेत्रों में बनी पकड़ भी है. आदिवासी क्षेत्रों से इस बार बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले ज्यादा सीटें मिली हैं.
मध्यप्रदेश में 47 सीटें आदिवासी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. 2018 में बीजेपी ने इनमें से केवल 17 सीटें जीती थीं. लेकिन 2023 के चुनावों में बीजेपी ने इन 47 आदिवासी आरक्षित सीटों में से 27 सीटें जीती हैं.
आदिवासी क्षेत्रों में बनी पकड़ ने, बीजेपी को कांग्रेस से कहीं आगे पहुंचा दिया. कांग्रेस के पास अब जनता के इस फैसले को स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है.
अब सवाल ये है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा. फिलहाल अभी तक शिवराज सिंह चौहान,कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रह्लाद पटेल और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच रेस चल रही है.
अगर पार्टी ने पिछला रिकॉर्ड देखा तो शिवराज का दावा मजबूत नजर आता है, लेकिन अगर बीजेपी नए चेहरे को मौका दिया तो इस रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया एक विकल्प के तौर पर जरूर देखे जाएंगे.