DNA Analysis: महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक संकट के बीच एक सवाल लगातार पूछा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे की बगावत के बावजूद महाराष्ट्र में अब तक सरकार क्यों नहीं गिरी और उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा क्यों नहीं दिया? क्योंकि इस राजनीतिक घटनाक्रम को अब एक पूरा हफ्ता बीत चुका है. लेकिन उद्धव ठाकरे सरकार में बने हुए हैं और लगातार बैठकें भी कर रहे हैं. तो इस सवाल का जवाब ये है कि भले शिवसेना के दो तिहाई विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हैं. लेकिन संगठन के मोर्चे पर उद्धव ठाकरे अब भी एकनाथ शिंदे पर हावी हैं.


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ठाकरे गुट अब भी मजबूत


शिवसेना में अध्यक्ष पद के बाद कुल 12 बड़े नेता हैं, जिनमें एकनाथ शिंदे को छोड़ कर बाकी सब उद्धव ठाकरे के साथ हैं. इसके अलावा 30 उप-नेता हैं, जिनमें मंत्री गुलाबराव पाटिल, विधायक तानाजी सावंत और यशवंत जाधव को छोड़ कर बाकी सभी नेता अब भी उद्धव ठाकरे का समर्थन कर रहे हैं और शिवसेना के सभी पांचों सचिव और पार्टी प्रवक्ता और दूसरी राजनीतिक ईकाइयां भी उद्धव ठाकरे के साथ हैं. जिसकी वजह से महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक हंगामा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा है.


टकराव की असली वजह क्या?


शिवसेना और शिंदेसेना के इस राजनीतिक टकराव के पीछे बजट को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है. असल में वित्त वर्ष 2022-23 के लिए महाराष्ट्र का जो बजट पेश हुआ था, उसमें से आधा बजट ऐसे मंत्रालयों और विभागों को अलॉट हुआ, जो NCP के पास हैं. मौजूदा साल में महाराष्ट्र का कुल बजट 5 लाख 48 हज़ार करोड़ रुपये है, जिसमें से 3 लाख 14 हजार करोड़ रुपये यानी कुल बजट का 57 प्रतिशत हिस्सा NCP कोटे के मंत्रियों को अलॉट हुआ है. जबकि एक लाख 44 हजार करोड़ रुपये का बजट यानी बजट का 26 प्रतिशत हिस्सा कांग्रेस कोटे के मंत्रियों को अलॉट हुआ है और शिवसेना कोटे के मंत्रियों को उनके मंत्रालयों और विभागों के लिए 90 हजार करोड़ रुपये ही दिए गए. यानी शिवसेना के 11 मंत्रियों को कुल बजट का सिर्फ 17 प्रतिशत हिस्सा ही मिला और इस असंतुलन ने ही शिवसेना में बगावत के बीज बोने का काम किया.


क्या था शिवसेना का उद्देश्य?


महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने खुद बजट के बंटवारे को लेकर सवाल उठाए थे और अब ऐसा कहा जा रहा है कि इस बगावत की जड़ में बजट अलॉटमेंट एक बड़ा मुद्दा हो सकता है. शिवसेना की स्थापना वर्ष 1966 में बाल ठाकरे ने की थी और उस समय इस पार्टी की स्थापना का मकसद था. सरकारी नौकरियों में मराठी समुदाय के लोगों को प्राथमिकता दिलाना. मराठी भाषा का प्रचार प्रसार करना और मराठी संस्कृति को बढ़ावा देना. हिन्दुत्व की विचारधारा को शिवसेना ने 1980 के दशक में अपनाया. यानी शिवसेना की स्थापना के समय हिन्दुत्व बड़ा मुद्दा नहीं था.


बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद बदले पार्टी के सिद्धांत


लेकिन 1980 के दशक में बाल ठाकरे ने हिन्दुत्व और क्षेत्रवाद को मिला दिया और महाराष्ट्र में हिन्दुत्व के सबसे बड़े ब्रैंड ऐम्बेस्डर बन गए. इसके अलावा बाल ठाकरे ने जीवित रहते हुए सरकार में कभी कोई पद हासिल नहीं किया और ना ही अपने परिवार से किसी को सरकार का हिस्सा बनने दिया. लेकिन वर्ष 2012 में बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद शिवसेना एक परिवार की पार्टी बन गई और उद्धव ठाकरे वर्ष 2019 में कांग्रेस और NCP के साथ गठबंधन करके राज्य के मुख्यमंत्री बन गए और अपने बेटे आदित्य ठाकरे को भी सरकार में मंत्री बना दिया और ये शिवसेना के पतन का सबसे बड़ा कारण है.


इसलिए जो एक परिवार पर आधारित पार्टियां होती हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ी सीख है. क्योंकि ऐसी पार्टियों में ज़मीन से जुड़े नेताओं को परिवार से छोटा समझा जाता हैं. उन्हें मौके नहीं दिए जाते. और इन पार्टियों को एक परिवार द्वारा प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह चलाया जाता है.


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