बुधवार की दोपहर लखनऊ का कैसरबाग कोर्ट गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. वकील के भेष में आए बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की और गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी जीवा को मौके पर ही ढेर कर दिया. जीवा यूपी में अपराध की दुनिया का जाना-माना नाम था. उसका नाम बीजेपी नेता ब्रह्म दत्त द्विवेदी हत्याकांड और कृष्णानंद हत्याकांड में भी सामने आया था. ब्रह्म दत्त द्विवेदी हत्याकांड  में उसे उम्रकैद की सजा हुई थी. लेकिन जीवा अचानक अपराध की दुनिया का सिरमौर नहीं बना, बल्कि एक समय ऐसा भी जब वो एक आम आदमी की तरह नौकरी करता था. 


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जीवा एक मेडिकल शॉप पर कंपाउंडर के रूप में नौकरी करता था. एक उसके सिर पर गुंडई का भूत सवार हुआ और उसने अपने ही मालिक यानी मेडिकल शॉप को चलाने वाले व्यक्ति को ही किडनैप कर लिया. इसके बाद उसका नाम किडनैपिंग के कई मामलों में जुड़े. उसने एक करोबारी के बेटे को किडनैप कर 2 करोड़ की फिरौती मांगी थी. इस घटनाक्रम के बाद उसका नाम और बड़ा हो गया था. 


देखते ही देखते वो अपराध की दुनिया का बड़ा चेहरा बन चुका था. फरवरी 1997 में ब्रह्म दत्त द्विवेदी की हत्या हुई, इस हत्याकांड में जीवा का नाम सामने आया. इसके बाद वो मुन्ना बजरंगी गैंग का मुख्य सदस्य बन गया. यहीं से उसे मुख्तार अंसारी से जुड़ने का रास्ता मिला. कहा ये भी जाता है कि मुख्तार अंसारी जीवा के हथियार जुटाने की काबिलियत से काफी प्रभावित था.


मुख्तार को हथियारों से खेलने का शौक था और जीवा इस शौक को पूरा करने में सबसे बड़ा मददगार बना. हालांकि, जीवा यूपी तक ही सीमित नहीं रहने वाला था. उसने हरिद्वार के नाजिम गैंग में घुसा और फिर बरनाला गैंग में भी अपनी पहुंच बना डाली. कई अलग-अलग गैंग के लिए काम करके अपराध की दुनिया में सनसनी मचाने वाला जीवा की इच्छा अब अपना गैंग बनाने की हुई.


उसने अपना गैंग बनाया और उसमें करीब 35 गुर्गे शामिल किए. वो कारोबारियों को निशाना बनाने लगा. जमीन पर कब्जा करना, रंगदारी मांगना उसके रोजाना के काम में शामिल था. उम्रकैद पाने के बाद जेल में पहुंचने के बाद भी वो सक्रिय रहा और जेल से ही अपने गैंग को ऑपरेट करता था. जानकारी के मुताबिक जीवा पर करीब 22 केस दर्ज थे, जिसमें से 17 में वो बरी हो चुका था.