How the cities of Indus Civilization came to end: हम सभी बचपन से ही सिंधु घाटी की सभ्यता (Indus Valley Civilisation) के बारे में पढ़ते और सुनते आए हैं. आए दिन इसकी चर्चा होती रहती है, खासकर इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों और कंपटीशन की तैयारी करने वालों में इसका बड़ा क्रेज है. कहा जाता है कि विश्व की सबसे समृद्ध सभ्यताओं में से एक सिंधु सभ्यता थी. हजारों साल पहले यहां के लोगों का जीवनयापन काफी हाईटेक (Hightech Lifestyle) हुआ करता था. यहां के लोग आभूषण प्रेमी थे, व्यापार करते थे. इनकी सड़कें चौड़ी होती थी. नालियों को काफी सुनियोजित तरीके से बनाया गया था. ऐसा कह सकते हैं कि 4200 साल पहले ही यहां के लोग काफी आधुनिक हो चुके थे. लेकिन कहावत है कि जो भी बना है या जन्मा है उसका अंत निश्चित है, इसलिए अब इस सभ्यता का नामोनिशान नहीं बचा है.


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पहली शहरी संस्कृति


यह दुनिया की सबसे पहली शहरी संस्कृति मानी जा सकती है. जहां पर पीने के कई कुएं खोदे गए थे. पानी की निकासी का प्रबंध था. एक ऐसा शहर बनाया गया था जो चारों तरफ से सुरक्षित था और 4200 साल पहले जीवन को सबसे आसान कर दिया गया था. 


सिंधु सभ्यता को लेकर सबसे बड़ा खुलासा


उत्तराखंड (Uttarakhand) स्थित एक गुफा में प्राचीन चट्टान के बनने पर किए गए एक हालिया रिसर्च में सिंधु सभ्यता के अंत से जुड़ा बड़ा खुलासा हुआ है. अबतक के सबसे बड़े शोध में यह सामने आया है कि लंबे समय तक रही सूखे (Drought) की स्थिति सिंधु सभ्यता के शहरों के पतन का कारण हो सकती है. स्टडी के मुताबिक, इस शुष्क काल की शुरुआत करीब 4200 साल पहले हुई और यह करीब 200 साल तक रहा. यह वह काल था जो महानगर-निर्माण सिंधु सभ्यता के पुनर्गठन के साथ मेल खाता है. यह सभ्यता अखंड भारत यानी वर्तमान में पाकिस्तान और समूचे भारत तक फैली थी.


तीन बार आई भुखमरी की नौबत


पत्रिका ‘कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट’ में प्रकाशित शोध में शोधकर्ताओं ने इस शुष्क अवधि के दौरान कम से कम तीन दीर्घकालिक सूखों की पहचान की जिनमें से प्रत्येक की अवधि 25 से 90 वर्षों के बीच थी.


ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन के सह-लेखक प्रोफेसर कैमरन पेट्री ने कहा, 'हमें इस बात के स्पष्ट सबूत मिले हैं कि यह अंतराल एक अल्पकालिक संकट नहीं था बल्कि उन पर्यावरणीय परिस्थितियों का एक प्रगतिशील परिवर्तन था जहां सिंधु सभ्यता के लोग रहते थे.'


शोधकर्ताओं ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के पास एक गुफा में बने ‘स्टैलाग्माइट’ में विकसित परतों का अध्ययन करके ऐतिहासिक वर्षा की एक सारणी तैयार की. ‘स्टैलाग्माइट’ एक प्रकार की चट्टान का निर्माण है, जो एक गुफा के तल से बनता है.


वैज्ञानिक तथ्यों पर पड़ताल


उन्होंने ऑक्सीजन, कार्बन और कैल्शियम समस्थानिकों सहित पर्यावरणीय अनुरेखक की एक श्रृंखला को मापकर एक पुनर्निर्माण की प्रक्रिया अपनाई और मौसम के सापेक्ष वर्षा को दर्शाकर जानकारी एकत्र की.


अध्ययन के दौरान टीम ने सूखे के समय और अवधि को क्रमबद्ध तरीके से जानने के लिए उच्च परिशुद्धता वाली ‘यूरेनियम-श्रृंखला डेटिंग’ का भी इस्तेमाल किया.


ग्लोबल वार्मिंग से हुआ अंत


कैम्ब्रिज के पृथ्वी विज्ञान विभाग में पीएचडी के हिस्से के रूप में शोध करने वाली अध्ययन की प्रमुख लेखिका अलीना गिशे ने कहा, 'कई साक्ष्य हमें इस सूखे की प्रकृति को हर दृष्टिकोण से एक साथ देखने की अनुमति देते हैं और पुष्टि करते हैं कि एक स्थिति के कारण दूसरी स्थिति बदली.'


गिशे और शोध टीम ने गर्मियों और सर्दियों दोनों मौसमों में औसत से कम वर्षा की अलग-अलग अवधियों की पहचान की. पेट्री ने कहा, 'मानव आबादी पर जलवायु परिवर्तन की इस अवधि के प्रभाव को समझने के लिए दोनों फसलों के मौसम को प्रभावित करने वाले सूखे के साक्ष्य बेहद महत्वपूर्ण हैं.' निष्कर्ष से मिले साक्ष्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सिंधु महानगर का पतन जलवायु परिवर्तन से जुड़ा था.


(एजेंसी इनपुट के साथ)