नई दिल्ली: भारत (India) के वैध तरीके से ऊर्जा खरीदने का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए और जो देश तेल (Oil) के मामले में आत्मनिर्भर हैं या जो खुद रूस (Russia) से तेल आयात करते हैं वे प्रतिबंधात्मक व्यापार (Business) की वकालत नहीं कर सकते हैं. सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत प्रतिस्पर्धी ऊर्जा स्रोतों (Competing Energy Sources) पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और उसने सभी तेल उत्पादकों की पेशकश का स्वागत किया है. भू-राजनैतिक घटनाक्रम ने देश की ऊर्जा सुरक्षा पर बड़ी चुनौती पेश की है.


कच्चा तेल खरीदने के रास्ते खुले हैं


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हालांकि भारत के इस रुख को लेकर आलोचना की गई है कि उसने रूस से रियायती दर पर कच्चा तेल खरीदने के लिए रास्ते खुले रखे हैं. इसके बाद ऐसी टिप्पणी आई है. रूस ने पिछले सप्ताह के आखिर में यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के जवाब में रूसी तेल और गैस के आयात पर अमेरिका की तरफ से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भारत और अन्य देशों को सस्ता तेल देने की पेशकश की थी.


कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी


सूत्रों ने बताया, 'भारत प्रतिस्पर्धी ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करता रहेगा. हम सभी उत्पादकों के ऐसे प्रस्तावों का स्वागत करते हैं. भारतीय व्यापारी भी सर्वोत्तम विकल्प तलाशने के लिए वैश्विक ऊर्जा बाजारों में काम करते हैं.' सूत्रों ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष के कारण कच्चे तेल की कीमतों में आई तेजी ने भारत की चुनौतियां बढ़ा दी हैं. इससे स्वभाविक रूप से प्रतिस्पर्धी दर पर तेल खरीदने को लेकर दबाव बढ़ा है.


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इंडियन ऑयल ने खरीदा 30 लाख बैरल कच्चा तेल


जानकारी के मुताबिक, तेल के मामले में आत्मनिर्भर या खुद रूस से तेल का आयात करने वाले देश वैध तरीके से इसके कारोबार पर प्रतिबंध की वकालत नहीं कर सकते हैं. भारत के वैध तरीके से ऊर्जा खरीदने का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए. खबर है कि इंडियन ऑयल ने पिछले हफ्ते रूस से रियायती दर पर 30 लाख बैरल कच्चे तेल की खरीद की है.


उल्लेखनीय है कि व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा था कि भारत द्वारा रियायती दर पर रूसी तेल खरीदने की पेशकश को स्वीकार करना अमेरिका द्वारा मॉस्को पर लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं है, लेकिन इन देशों को ये भी समझना चाहिए कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच ‘वे कहां खड़ा होना चाहते हैं.’


ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के प्रवक्ता ने कहा कि ब्रिटेन चाहता है कि सभी देशों को रूसी तेल और गैस से अलग होना चाहिए, क्योंकि इससे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की युद्ध मशीन को फाइनेंस मिलेगा. उन्होंने कहा कि रूस बहुत कम मात्रा में भारत को कच्चे तेल का निर्यात करता है, जो देश की जरूरत का एक फीसदी से भी कम है.


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सूत्रों ने कहा कि आयात के लिए सरकारों के बीच कोई समझौता भी नहीं है. उन्होंने कहा कि भू-राजनैतिक घटनाक्रम ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा के सामने चुनौती पेश की है. सूत्रों ने बताया कि रूसी तेल और गैस की खरीद पूरी दुनिया करती है, खासतौर पर यूरोप में. उन्होंने कहा कि रूस के कुल प्राकृतिक गैस निर्यात का 75 प्रतिशत ओईसीडी देशों जैसे जर्मनी, इटली और फ्रांस को होता है.


विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने रूस से रियायती दर पर तेल खरीदने की संभावना से गुरुवार को इनकार नहीं किया था और कहा था कि वह बड़ा तेल आयातक होने की वजह से हमेशा सभी संभावनाओं पर विचार करता है.


मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, ‘भारत अपनी जरूरत का अधिकतर तेल आयात करता है, उसकी जरूरतें आयात से पूरी होती हैं. इसलिए हम वैश्विक बाजार में सभी संभावनाओं का दोहन करते रहते हैं, क्योंकि इस परिस्थिति में हमें अपने तेल की जरूरतों के लिए आयात का सामना कर पड़ रहा है.’


बागची ने कहा कि रूस, भारत को तेल की आपूर्ति करने वाला प्रमुख आपूर्तिकर्ता नहीं रहा है. बागची से जब पूछा गया कि ये खरीददारी रुपये-रूबल समझौते के आधार पर हो सकती है तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस पेशकश की विस्तृत जानकारी नहीं है.


(इनपुट- भाषा)


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