नई दिल्ली: भारत सरकार ने स्वदेशी हथियारों ( Indigenous Developed weapons) और सैन्य साजो सामान को निर्यात करने की रणनीति बनाई है, जिसमें भारत सरकार अपने राजनयिक संबंधों का भी इस्तेमाल करेगी. रक्षा मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी.


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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Defence minister Rajnath Singh) ने इस महीने की शुरुआत में एक बड़े फैसले की जानकारी देते हुए कहा था कि रक्षा मंत्रालय ने 101 सामानों की ब्लैक लिस्ट बनाई है जिनकी खरीदी अब भारत सरकार नहीं करेगी. इनका उत्पादन भारत में ही होगा ताकि भारत का घरेलू रक्षा उत्पादन बढ़ सके रक्षा उत्पादन बढ़ सके और देश की जरूरतों को पूरा किया जा सके.


रक्षा उत्पादन विभाग के सचिव राजकुमार ने एक वेबिनार में कहा कि भारत सरकार मित्र देशों के राजनयिकों से संपर्क स्थापित कर यह जानने की रणनीति बना रही है कि उन्हें किस तरह के हथियारों और रक्षा सौदों की जरूरत है. ताकि भारतीय उत्पादक उनके हिसाब से रक्षा सामग्री का निर्माण कर सकें.


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राजकुमार ने कहा कि हम अलग-अलग देशों के हिसाब से रक्षा सामग्री हथियारों की प्रोफाइल तैयार कर रहे हैं, जिसकी उन देशों को जरूरत है. इसके लिए हम जल्द ही डिफेंस इंडस्ट्री के साथ बातचीत करेंगे. एक बार हमें उस देश की जरूरतों के बारे में पता चल जाएगा तो हमारी डीपीएसयू और रक्षा सामग्री का निर्माण करने वाली कंपनियों को सामान के उत्पादन में आसानी होगी, क्योंकि हमें पता रहेगा कि हमें क्या बनाना है.


कुमार ने कहा कि भारत सरकार अपने रक्षा प्रतिनिधियों, दूतावासों और राजनयिक चैनलों का इस्तेमाल मेक इन इंडिया के तहत बनाए जाने वाले हथियारों के निर्यात को बढ़ाने में करेगी.


भारत में स्थानीय स्तर पर रक्षा उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत के रक्षा मंत्रालय ने 9 अगस्त को 101 हथियारों और रक्षा सौदों की एक ब्लैक लिस्ट बनाई थी. जिनकी खरीद को रोक दिया गया है. इस लिस्ट पर काम शुरू हो चुका है. भारत सरकार 2024 तक इन 101 सामानों के उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है जिसमें में लाइट कॉन्बैट हेलीकॉप्टर पारंपरिक पनडुब्बियां और क्रूज मिसाइल भी शामिल है


रक्षा उत्पादन विभाग के सचिव राजकुमार ने कहा कि 101 सामानों के अलावा भी कई सारे सामानों को खरीदा नहीं जाएगा, बल्कि उनका उत्पादन भारत में ही किया जाएगा. ऐसे सामानों की दूसरी लिस्ट जल्द ही तैयार की जा रही है.


राजकुमार ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि भारत की निजी रक्षा कंपनियां सामने आएंगी और हमारी जरूरतों के हिसाब से निवेश भी करेंगी, ताकि भारत सरकार को किसी दूसरे देश से हथियार खरीदने की जरूरत ही ना पड़े. बता दे कि उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो डिफेंस कॉरिडोर बनाए गए हैं, जहां रक्षा कंपनियां अपने उत्पादन शुरू करने वाली हैं. 


भारत में रक्षा सौदों के उत्पादन के लिए रक्षा मंत्रालय ने अभी दो केटेगरी में मेक इन इंडिया मुहिम की शुरुआत की है. मेक वन कैटेगरी में आने वाले सामानों के उत्पादन पर आने वाली लागत का 90% दाम भारत सरकार खुद चुकएगी. वहीं मेक टू के तहत कंपनियों को खुद ही हथियारों का प्रोटोटाइप विकसित करना होगा. उसके बाद भारत सरकार सीधे उन कंपनियों को आर्डर देगी.


वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल एसके सैनी ने वेबिनार में कहा कि मेक प्रोजेक्ट के तहत शुद्ध बारूद, टैंक के गोले, ड्रोन मार गिराने वाले सिस्टम और माउंटेन रडार का उत्पादन होगा. उन्होंने बताया कि साल 2019 में ऐसे 9 नए प्रोजेक्ट्स पास किए गए हैं. इसमें इस साल यानि 2020 में भी 4 नए प्रोजेक्ट शामिल किए गए हैं उन्होंने बताया कि जो 28 प्रोजेक्ट चल रहे हैं उसमें से 13 प्रोजेक्ट (वैल्यू 21264 करोड़) के लिए भारतीय रक्षा उत्पादकों ने ही प्रस्ताव दिए थे.


भारत दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा खरीदार है, पिछले 8 सालों से भारत दुनिया में हथियारों का आयात करने वाले शीर्ष तीन देशों में शामिल रहा है. भारतीय सुरक्षा बल अगले 5 अगले 5 साल में करीब 130 बिलियन डॉलर की खरीददारी करने वाले हैं जिसकी आपूर्ति अब स्थानीय तौर पर विकसित और उत्पादित रक्षा सामग्री से की जाएगी.


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 9 अगस्त को कहा था कि भारत अब मेक इन इंडिया के तहत रक्षा निर्माण में भी आत्मनिर्भर होने के लिए तैयार है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत (Self-Reliant India) के सपनों को साकार भी कर रहा है


बता दें कि रक्षा मंत्रालय ने जिन 101 सामानों को ब्लैक लिस्ट में डाला है उनमें हवा से हवा में मार करने वाली छोटी दूरी की मिसाइलें( Short Range Surface to air missile), क्रूज मिसाइल, आर्टिलरी गन, इलेक्ट्रॉनिक वार फेयर सिस्टम, एंटी सबमरीन रॉकेट लॉन्चर लॉन्चर रॉकेट लॉन्चर और बेसिक ट्रेनर जेट भी शामिल शामिल है.


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