कल्पना कीजिए कि आपके खानदान का व्यक्ति कभी दुनिया का सबसे अमीर आदमी रहा हो, इसके बावजूद आपको गरीबी का दंश झेलना पड़े तो... अफसाने जैसी लगने वाली ये कहानी सच है. हैदराबाद के 7वें निजाम मीर उस्मान अली खान के बारे में एक समय ऐसी अफवाह थी कि वो 185 कैरेट के हीरे का इस्तेमाल पेपरवेट के रूप में किया करते थे. 1937 में, वो अरबों डॉलर की अनुमानित संपत्ति के साथ दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे और उन्हें इसके लिए टाइम पत्रिका के कवर पेज पर जगह मिली थी. हालांकि, आज उनका परिवार गरीबी में जीवन काटने को मजबूर है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

आज, निजाम के खानदान के लोगों में एक भी अमीर उत्तराधिकारी नहीं है. हैदराबाद में सभी छोटे-मोटे काम करते हैं और छोटे व्यवसाय चलाते हैं. इस परिवार के लोगों को निजाम की दौलत एक पुरानी और फीकी तस्वीर जैसी लगती है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, आखिरी गिनती के अनुसार इस खानदान के करीब 4,500 साहेबजादे हैं. ये सभी 'मजलिस-ए-साहेबजादगान' सोसाइटी के तहत एक छत के नीचे रहते हैं. हालांकि, उनका ये ट्रस्ट लगभग दिवालिया हो चुका है. दुनिया के सबसे अमीर शख्स के इस ट्रस्ट से उनके खानदान के लोगों को अब महीने में 4 रुपये से लेकर 150 रुपये के बीच पैसा मिलता है.


हाल ही में इस सोसाइटी के सदस्यों ने हैदराबाद के पुराने शहर में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने परिवार के वंशजों में से एक मीर रौनक यार खान को अपना निजाम बनाया. इस कार्यक्रम में शान-ओ-शौकत का पूरा ख्याल रखा गया.


इसी खानदान के मीर साजिद अली खान भी वहां मौजूद थे जो पेशे से कार मैकेनिक रहे हैं. 15 साल पहले जब वो एक कार को ठीक कर रहे थे तभी उसमें कुछ खराबी आई और उस समय उनके शरीर का एक हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. 40 वर्षीय साजिद अली खान के तीन बच्चे हैं और छोटे-मोटे काम करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. वे कहते हैं, 'मुझे ट्रस्ट से हर महीने 18 रुपये वेतन के तौर पर मिलते हैं. कोई उस पैसे पर कैसे रह सकता है?'


निजाम के खानदान के 60 साल के मीर सईद-उद-दीन की हालत ठीक है उन्हें हर महीने मिलने वाले 133 रुपये के भत्ते की जरूरत नहीं है क्योंकि उनका बेटा साऊदी में काम करता है. टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक फातिमा बरकत-उन-निसा पहले एक स्कूल टीचर के रूप में काम करती थीं लेकिन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण उन्होंने पढ़ाना बंद कर दिया. वह कहती हैं कि 20 से 25 रुपये मासिक भत्ते के लिए 500 रुपये का टैक्सी का भाड़ा लगाना संभव नहीं है. वो कहती हैं कि वो साल में सिर्फ एक बार दफ्तर जाती हैं ये बताने के लिए कि वो जिंदा हैं.


हिंदी ख़बरों के लिए भारत की पहली पसंद ZeeHindi.com - सबसे पहले, सबसे आगे