श्रीनगर: पुलिस और सुरक्षा बलों के पास हर रोज ना जानें कितनी सूचनाएं आती हैं, हरेक को गंभीरता से लेकर उसकी छानबीन करना भी संभव नहीं है. इन्हीं सूचनाओं में से जिस किसी पर पुलिस को संदेह होता है तो वह उसकी डिटेल जानकारी पता करते हैं. एकाध मौके ऐसे होते हैं जब पुलिस या सुरक्षाबल किसी सूचना को नजरअंदाज करने की भूल कर बैठते हैं जिसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. पुलवामा में आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद हमले में CRPF के 40 जवानों की शहादत मामले में भी कुछ ऐसी ही बात देखने को मिल रही है.


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शुरुआती जांच में पता चला है कि जैश ए मोहम्मद साल 2017 से ही पुलवामा जैसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की तैयारी कर रहा था. साल 2017 में आरजू बशीर नाम का एक युवक परिजनों के साथ जम्मू-कश्मीर पुलिस से मुलाक़ात की थी, जिसमें उसने बताया था कि जैश-ए मोहम्मद ने उसे आतंकवादी बनने का ऑफर दिया था. साथ फिदायीन हमलावर बनकर कार के जरिए सेना की गाड़ी उड़ाने को कहा था. आरजू बशीर फिदायीन हमलावर बनने की बात से डर गया था और उसने सारी बातें अपने घरवालों को बता दी थी, जिसके उन सारे लोगों ने पुलिस में इसकी शिकायत की थी.



उस वक्त अगर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आरजू बशीर की बात सच मानकर उसकी छानबीन की होती तो शायद पुलवामा जैसी घटना नहीं घटती. 


26 जनवरी को मिले क्लू को सुरक्षा बलों ने गंवाया
इसके अलावा इसी साल 26 जनवरी को भी मारे गए जैश ए मोहम्मद के दो आतंकवादियों के बारे में सूचना थी कि वे सुरक्षाबलों के किसी वाहन को टारगेट करना चाहते थे. सुरक्षाबलों ने दोनों आतंकियों को मार गिराने के बाद उनके मंसूबों पर सघन जांच नहीं करने की भूल कर बैठी.


2019 में 10 जैश के आतंकी मारे जा चुके हैं. पिछले 2 साल में जैश के 90 आतंकी मारे जा चुके हैं. इस बात से जैश-ए-मोहम्मद के आलाकमान काफी परेशान थे और वे किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की तैयारी कर रहे थे.