UCC की आड़ में सरकार कर रही ये बड़ा प्लान! जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने किया दावा
Muslim Personal Law: जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema e Hind) ने बताया है कि मुसलमान समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की खिलाफत क्यों करते हैं? इसके पीछे की बड़ी वजह क्या है?
Uniform Civil Code: जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema e Hind) ने आरोप लगाया है कि सरकार समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के जरिए मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) को खत्म करना चाहती है. समान नागरिक संहिता सिर्फ मुसलमानों की दिक्कत नहीं है. इसका संबंध देश के तमाम जातियों, सम्प्रदायों, सामाजिक समूहों और सभी वर्गों से है. भारत अनेकता में एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है. अगर हमारे बहुलतावाद को अनदेखा करके कानून बनाया जाएगा तो उसका सीधा असर देश की अखंडता और एकता पर पड़ेगा. यही समान नागरिक संहिता की खिलाफत का प्रमुख कारण है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के लिए मुसलमानों की ज्यादा संवेदनशीलता की वजह इस्लामी शरीयत का जिंदगी के सभी क्षेत्रों और नैतिक एवं सामाजिक पहलुओं में शामिल होना है. यह पवित्र कुरान के आदेश पर इस ब्रह्मांड के रचनाकार द्वारा बनाए गए हैं. उनमें कोई भी बदलाव नहीं किया जा सकता है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का UCC पर सवाल
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि मुस्लिम पारिवारिक कानूनों को खत्म करने की कोशिश भारत के संविधान में दी गई गारंटी और लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है. जब भारत का कानून लिखा जा रहा था तब यह गारंटी संविधान सभा ने दी थी कि मुसलमानों के धार्मिक मामलों खासकर उनके पर्सनल लॉ से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी. संविधान के आर्टिकल 25 से 29 तक की यही भावना और उद्देश्य है.
सरकार पर लगाया बड़ा आरोप
सरकार पर आरोप लगाते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि इसके बावजूद मौजूदा सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ को यूसीसी के माध्यम से खत्म करना चाहती है. यह वोट बैंक की पॉलिटिक्स से प्रेरित है ना कि फंडामेंटल कॉन्स्टिट्यूशनल राइट्स की सुरक्षा से. अभी सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर देश की अदालतों को भटकाने और उनके आदेशों पर असर डालने का भी काम कर रही है.
अदालतों पर कही ये बात
ये भी जमीयत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से कहा गया कि हाल के दिनों में कोर्ट ने तीन तलाक, हिजाब और खुला आदि से जुड़े मामलों में शरीयत के आदेश और कुरान की आयतों की मनमानी व्याख्या करके मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करने का रास्ता साफ किया है. अदालतों का यह रवैया उनके ऊपर अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों के विश्वास को बहुत नुकसान पहुंचाने वाला है.
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