J&K Elections: जम्मू-कश्मीर में प्रयोग और परिवर्तन के प्रयासों की परीक्षा, 90 सीटों का तिलिस्म कौन तोड़ेगा?
Jammu-Kashmir Assembly Election: जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. इस चुनाव का परिणाम बताएगा कि 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर की जनता ने बीजेपी को कितने नंबर दिए हैं, राज्य में 90 विधानसभा सीटों का तिलिस्म इस बार कौन तोड़ेगा, इसका खुलासा 4 अक्टूबर को होगा. राज्य में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को कुल तीन चरणों में चुनाव होगा.
Jammu-Kashmir News: पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को समाप्त कर केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है. अब मतदाताओं का मन बताएगा कि 2014 के बाद हुए बदलावों को उन्होंने किस भाव-भावना से महसूस किया है. 2019 के बाद तो वादों-इरादों, दावों-प्रतिदावों की बाढ़ सी आती रही है. कई प्रयोग भी किए गए. परिणामों में इनका परीक्षण होगा. अनुच्छेद 370, पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली के साथ-साथ रोजी-रोजगार और जमीन के बुनियादी अधिकारों पर जम्मू की जनता की जद्दोजहद, कश्मीरियों की कश्मकश और पंडितों के पुनर्वास पर पशोपेश का भी जनादेश में अहम पहलू बनना तय है. 1996 के बाद यहां किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है. उस समय नेशनल कांफ्रेंस ने 87 में से 57 सीटें पाई थीं, जो 2002 और 2008 में 28 पर आ गई. 2008 में 11 सीटें पाने वाली भाजपा 2014 में दोगुने से अधिक यानी 25 सीटों तक पहुंच गई. 2014 में अलग-अलग लड़ी पीडीपी ने 28, नेशनल कांफ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं.
जम्मू-कश्मीर में कई साल गुजारने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप मिश्र कहते हैं कि अब जम्मू-कश्मीर में 'एक विधान-एक निशान' के तहत भारत सरकार के नियम-कानून लागू हो रहे हैं. आपातकाल के दौर में शुरू हुई छह साल की राज्य सरकार की परंपरा भी खत्म होने वाली है. 36 सदस्यीय विधान परिषद का अस्तित्व खत्म हो गया है. राज्यसभा की खाली चार सीटें विधानसभा चुनाव के बाद ही भरी जाएंगी. चुनाव बाद केंद्र शासित प्रदेश के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होने की संभावना है. अनुच्छेद 370 खत्म करते समय संसद में गृह मंत्री अमित शाह और बाद में श्रीनगर में सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी घोषणा कर चुके हैं. 2023 में सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 के खात्मे को संविधान सम्मत ठहराने के साथ ही राज्य का दर्जा खत्म करने पर सवाल उठा चुकी है. आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर पहला राज्य है, जिसे विभाजित कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. वैसे, शेख अब्दुल्ला द्वारा नाराजगी में रियासी जिले को खत्म कर तहसील बनाने का उदाहरण भी यहीं का है. गुलाम नबी आजाद के मुख्यमंत्रित्व काल में पुराना जिला बहाल हो पाया.
दस साल बाद अवाम जो नई सरकार चुनेगा, उसके स्वरूप और ताकत के बारे में वह आश्वस्त नहीं है. राज्य के दर्जे की जल्द वापसी पर उसे संशय हैं. दिल्ली या पुडुचेरी म़ॉडल उसे समझना होगा. हालांकि छह साल से राज्यपाल और उपराज्यपाल शासन के अधीन होने के कारण अधिकारियों की मनमर्जी को मतदाता समझ गए हैं. इससे पहले इतने लंबे अरसे तक उसे कभी भी अपने नुमाइंदों से दूर नहीं रहना पड़ा है. इस दौरान जनप्रतिनिधियों का विवशता से वास्ता साफ दिखा. फिर भी पुराने और स्थापित दलों और उनके नेताओं को चुनौती देने और अपनी पहचान बनाने के लिए जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी जैसे नए दल बने. नए दलों के अलावा सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस, बारामुला से लोकसभा सदस्य इंजीनियर रशीद की अगुवाई वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी ही नहीं, 1987 के बाद पहली बार जमात-ए-इस्लामी से जुड़े नेता भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.
बीते पांच साल में पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओजेके), वेस्ट पाकिस्तानी शरणार्थियों को जमीन-जायदाद का मालिकाना हक दिया गया है. पंचायतों, शहरी स्थानीय निकाय में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण और महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें सुरक्षित की गई है. प्रदीप मिश्र ने बताया कि औद्योगिकीकरण के लिए 90 हजार करोड़ से अधिक के प्रस्तावों में से 14 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है. 34 हजार से अधिक सरकारी नौकरी दी गईं. श्रीनगर में विजय दशमी के आयोजन, साढ़े तीन दशक बाद शिया समुदाय का जुलूस, खीर भवानी मंदिर में कश्मीरी पंडितों की पूजा-अर्चना और इसी साल जुलाई तक 12.5 लाख से अधिक पर्यटकों को घाटी आना भी उपलब्धि है. चुनाव की घोषणा से ठीक पहले 78वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में पाकिस्तान के सीमावर्ती जिले बारामुला में कशूर रिवाज में 10 हजार छात्राओं ने एक साथ कश्मीरी लोक नृत्य प्रस्तुत कर विश्व रिकॉर्ड बना दिया. यही नहीं, दो दशक के दौरान 2024 में चौथी बार अमरनाथ यात्रियों की संख्या पांच लाख से अधिक रही. रक्षाबंधन पर श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर में 50 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे और हरि पर्वत घंटे-घड़ियाल से गूंज गया.
प्रदीप मिश्र कहते हैं एक बार पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बना और गिरा चुकी भाजपा को ऐसे आयोजनों के अलावा राष्ट्रवाद, अनुसूचित जनजातियों के लिए पहली बार आरक्षित की गई नौ सीटों, अनुसूचित जाति की सात सीटों और आठ लाख से अधिक नए मतदाताओं का सहारा है. वह जम्मू संभाग की 43 सीटों पर चुनाव केंद्रित कर कश्मीर घाटी में 8-10 सीटों पर निर्दलीयों को समर्थन देगी, लेकिन पहले चरण की 24 सीटों पर उसने जम्मू संभाग की चिनाब घाटी (डोडा, किश्तवाड़ और रामबन) पीरपंजाल (राजोरी-पुंछ) में भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर इरादे जता दिए हैं. बाद के दो चरणों की सूची में दोनों पूर्व उपमुख्यमंत्रियों डॉ. निर्मल सिंह और कवींद्र गुप्ता का नाम नहीं होना बताता है कि पुराने और लोकप्रिय चेहरों को किनारे कर आयातित नेताओं के सहारे पार्टी दंभ दिखा रही है. यह हाल तब है, जब लोकसभा चुनाव में उसके साथ रही पूर्व मंत्री अल्ताफ अंसारी की अपनी पार्टी और गुलाम नबी आजाद की डीपीएपी बाद में राजनीतिक सौदेबाजी के लिए छिटक गई हैं.
दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ 'इंडिया' गठबंधन में प्रमुखता और प्रखरता से शामिल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी में चुनाव पूर्व तालमेल नहीं हुआ है. फिर भी लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के मिजाज के आधार पर हुए गठबंधन में नेशनल कांफ्रेंस ने 51 सीटें अपने लिए ले लीं. कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 की याद दिलाई जा रही है. घोषणापत्र में इस अनुच्छेद के साथ-साथ राज्य के दर्जे की बहाली और 2000 से पूर्व विधानसभा द्वारा पारित वृहत्तर स्वायत्तता का प्रस्ताव भी है. पीडीपी का घोषणापत्र भी कश्मीर केंद्रित है. वह भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत और विश्वास बहाली की पैरोकार है. अपनी बेटी इल्तिजा मुफ्ती की चुनावी रण में उतारने वाली पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की गठबंधन न होने पर सधी प्रतिक्रिया से जाहिर है कि नतीजों के बाद बनने वह गठबंधन सरकार का समर्थन करेंगी.
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