शख्स ने हाथ के बजाय अपनी जांघ में लगवाई Corona Vaccine, जानिए फिर क्या हुआ
झारखंड में एक शख्स के बचपन से ही दोनों हाथ नहीं थे, लेकिन फिर भी उसने कोरोना का टीका लगवाने की ठान ली और डॉक्टरों के पास जाकर अपनी जांघ में कोरोना वैक्सीन लगवा ली. राज्य के सीएम ने भी उनकी तारीफ की है.
नई दिल्ली: दुनिया के करोड़ों लोगों ने कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) लगवाने के लिए आस्तीन उठाई, लेकिन झारखंड के रहने वाले गुलशन लोहार (Gulshan Lohar) देश के एकमात्र ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने अपनी जांघ में कोरोना का टीका लगवाया है.
गुलशन के नहीं है दोनों हाथ
गुलशन के दोनों हाथ नहीं हैं. ऐसे में जब गुलशन कोरोना वैक्सीन लगवाने सेंटर पर पहुंचे तो डॉक्टर असमंजस में पड़ गए कि वैक्सीन कहां पर लगाएं. इस पर गुलशन ने स्वास्थ्यकर्मियों से कहा कि उनकी जांघ में वैक्सीन लगा दें. इसके बाद डॉक्टरों ने उनके जांघ में वैक्सीन लगा दी. इस तरह गुलशन उन करोड़ों लोगों के लिए उदाहरण बन गए, जो अभी भी वैक्सीन लगवाने से डर रहे हैं. अपने इस सराहनीय कार्य से उन्होंने एक जागरूक नागरिक होने का उदाहरण पेश किया है.
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वैक्सीन लगवाने के बाद क्या हुआ?
झारखंड के पश्चिमी सिंघभूम जिले के रहने वाले गुलशन लोहार ने वैक्सीन लेने के बाद बताया कि उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं हो रही है. वे पहले की तरह ही बिल्कुल ठीक हैं. वह लोगों से भी वैक्सीन लगवाने की अपील कर रहे हैं, क्योंकि कोरोना से बचने का यही एकमात्र रास्ता है.
सीएम हेमंत सोरेन ने भी की तारीफ
जांघ में वैक्सीन लगवाने के दौरान गुलशन की एक तस्वीर भी सामने आई है, जो इस वक्त सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) भी अपने ट्विटर हैंडल से इस तस्वीर को शेयर कर चुके हैं. सोरेन ने तस्वीर के कैप्शन में लिखा- आम लोगों को गुलशन से प्रेरणा लेने की जरूरत है. वहीं स्वास्थ्य विभाग ने भी गुलशन की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने उन लोगों के बीच एक बहुत सार्थक संदेश पहुंचाने का प्रयास किया है जो वैक्सीन लगवाने में कतरा रहे हैं.
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जांघ में वैक्सीन लगवाना क्या सही है?
टीका लगाने के स्थान पर लसीका पर्व का झुंड होता है. उदाहरण के लिए कई टीके ‘डेलटॉयड’ में लगाए जाते हैं क्योंकि लसीका पर्व ठीक कांख के नीचे होते हैं. जब टीका जांघ में लगाया जाता है, तो लसीका नलिका को उरुसंधि (ग्रोइन) में मौजूद लसीका पर्व के झुंड तक पहुंचने के लिए अधिक दूरी तय नहीं करनी पड़ती. वह मांसपेशियों गतिविधियों को स्थानीय रखती हैं. मांसपेशियों के टिशू भी टीके की प्रतिकिया को स्थानीय रखते हैं.
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