अजमेर शरीफ का इतिहास काफी पुराना है, यहां दिल्ली के सुल्तान से लेकर मुगल राजाओं नें तीर्थयात्रा की है. मौजूदा दौर में कई राष्ट्रअध्यक्ष भी चादर चढ़ाने यहां आते हैं.
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Ajmer Sharif Dargah History: अजमेर शरीफ दरगाह एक बार फिर चर्चा में है क्योंकि यहां शिव मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. 'हिंदू सेना' के प्रमुख विष्णु गुप्ता ने एक याचिका स्थानीय कोर्ट में दाखिल की थी जिसके बाद न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने संज्ञान लेते हुए दरगाह परिसर के सर्वे का नोटिस जारी किया गया है.
दरगाह का इतिहास
राजस्थान का अजमेर शरीफ दरगाह को भारत में सूफी इस्लाम को मानने वाले सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है. यहां मुस्लिम संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार है, जहां हर मजबह के लोग जियारत और अकीदत पेश करने आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ख्वाजा कहां से आए थे और इस दरगाह का इतिहास क्या है.
कौन थे ख्वाजा गरीब नवाज?
ऐसा माना जाता है कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती पैगंबर मोहम्मद साहब के वंशज थे, उनके फॉलोअर्स उन्हें 'ख्वाजा गरीब नवाज' के नाम से भी पुकारते हैं. वो एक फारसी इस्लामिक स्कॉलर थे जिनका जन्म 1 फरवरी 1143 में अफगानिस्तान के हेरात प्रांत के चिश्ती शरीफ (Chishti Sharif) में हुआ था.
भारत आगमन
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती सुल्तान इल्तुतमिश के शासन में भारतीय उपमहाद्वीप में आए थे, वो अपने मानवता के उपदेशों की वजह से काफी मशहूर हुए, यही वजह है कि हर धर्म के लोग उन्हें पसंद करते थे. उन्होंने अजमेर को अपना घर बना लिया और मृत्यु तक वो यहीं रहे. 15 मार्च 1236 को 93 साल की उम्र में उनका इंतकाल हुआ.
किसने कराया दरगाह का निर्माण?
राजस्थान टूरिज्म के मुताबिक इस संत के सम्मान में मुगल राजा हुमायूं ने इस दरगाह का निर्माण करवाया था. आप दरगाह के अंदर विशाल चांदी के दरवाजों की एक श्रृंखला के जरिए प्रवेश कर सकते हैं जो एक आंगन में ले जाते हैं जहां संत की कब्र मौजूद है. संगमरमर और सोने की परत से बना, वास्तविक मकबरा चांदी की रेलिंग और संगमरमर की स्क्रीन से सुरक्षित है.
अपने शासनकाल के दौरान मुगल सम्राट अकबर हर साल अजमेर की तीर्थयात्रा करते थे, उन्होंने और बादशाह शाहजहां ने दरगाह परिसर के अंदर मस्जिदें बनवाईं. अकबर की जियारत का सीन फिल्म मशहूर बॉलीवुड जोधा-अकबर में फिल्माया गया है.
लंगर
यहां का लंगर काफी मजहूर है जिसको पकाने के लिए साल 1568 और 1614 में मुगल राजा अकबर और जहांगीर ने विशाल डेग दान में दिया था. ये दोनों डेगों का इस्तेमाल आज भी किया जाता है. चावल, घी, काजू, बादाम, चीनी और किशमिश की मदद से लंगर तैयार किया जाता है.
सालाना उर्स
ख्वाजा गरीब नवाज की डेथ एनिवर्सरी को हर साल उर्स के तौर पर मनाया जाता है. ये इस्लामिक महीने जमाद अल-थानी से लेकर शाबान महीने के छठे दिन तक चलता है. हर साल लाखों की तादात में लोग इस उर्स में शामिल होने अजमेर आते हैं. देश विदेश की हस्तियां यहां इस मौके पर दरगाह पर चढ़ाने के लिए चादर भेजती हैं.
जब धमाके से दहल गया था दरगाह
11 अक्टूबर 2007 में दरगाह के आंगन में एक धमाका हुआ. ये रमजान का पाक महीना था, यहां लोग रोजा खोलने और नमाज पढ़ने के लिए जमा थी. किसी ने उस दिन टिफिन करियर में बम रखा था जो ब्लास्ट हो गया. इस धमाके में 7 लोगों की जान गई और 17 घायल हुए थे.