Shershah Death Reason: 1540 में शेरशाह ने मुगल बादशाह हुमायूं को बिलग्राम(bilgram battle 1540) की लड़ाई में मात दी थी. हुमायूं के बारे में कहा जाता है कि वो अपने शासन के शुरुआती दौर में हरम की विलासी जिंदगी से गहराई से जुड़ा था. वो इस बात को समझ तो रहा था कि शेरशाह की अगुवाई में अफगान (shershah suri)इकट्ठा हो रहे हैं लेकिन निर्णय लेने में देरी या अमल ना करने में नाकामी उसकी हार की वजह बनी. 1540 में शेरशाह ने खुद को बादशाह घोषित किया. लेकिन वो लंबे समय तक शासन नहीं कर सका. 1545 में कालिंजर फोर्ट(Attack on Kalinjar fort) पर चढ़ाई के दौरान उसकी मौत हो गई थी.


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गोले का शिकार हो गया शेरशाह


यहां सवाल ये है कि जिस शेरशाह ने महान मुगलों को पराजित किया वो खुद एक फोर्ट पर चढ़ाई के दौरान कैसे मरा. इतिहासकार बताते हैं कि कालिंजर के फोर्ट को अभेद्य माना जाता था. कालिंजर फोर्ट दीवीरें खड़ी थीं लिहाजा उस पर सीधी चढ़ाई कर पाना आसान नहीं था. कई महीनों की घेरेबंदी के बाद शेरशाह(afghan ruler shershah) ने किले की दीवार को तोप के जरिए उड़ाने का फैसला किया. वो खुद तोप के पास खड़े होकर तोपचियों को निर्देश दे रहा था. उसी दौरान एक तोप से गोला दीवार की तरफ फेंका गया लेकिन वो गोला फिर वापस तोप की तरफ आया और उसमें शेरशाह बुरी तरह घायल हो गया. लड़ाई के मैदान में ही उसकी मौत भी हो गई. उसके शव को दिल्ली लाया गया और उसकी इच्छा के मुताबिक सासाराम में दफना दिया गया.


शेरशाह में बाबर को भी डर आता था नजर


शेरशाह के बारे में आकलन बाबर ने पहले ही कर लिया था. जब वो अंतिम दिनों में था उस समय हुमायूं(mughal emperoro humayun) को बुलाकर कहा कि तुम्हारे लिए चुनौती कोई और नहीं होगा बल्कि अफगान होंगे. बाबर की कही बात सच भी साबित हुई थी. शेरशाह ने हुमायूं को पहले 1539 में और बाद में 1540 में मात दी थी. शेरशाह कहा भी करता था कि अगर उसे मौका मिला तो वो मुगलों की सत्ता को उखाड़ फेंकेगा. उसने अपने प्रण को साबित करके दिखाया भी था. इतिहासकार कहते हैं कि अपने पांच साल के शासन में उसने जो कुछ सुधार किए या प्रयोग किए वो आगे चलकर मुगल शासन का आधार बना. 1556 में जब अकबर गद्दी पर काबिज हुआ उसने शेरशाह के कई प्रयोगों को अपने शासन सत्ता में शामिल किया.