Kota Factory Real Stories: कोटा (Kota) इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेस टेस्ट की तैयारी कर रहे हर छात्र का ड्रीम डेस्टिनेशन होता है, लेकिन हर छात्र को कोटा के कोचिंग संस्थानों से तैयारी करने का मौका नहीं मिलता और जिनको मिलता है वो खुद को खुशकिस्मत समझते हैं. अपने और अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए के वे कोटा पहुंच जाते हैं. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक छात्रों और उनके माता-पिता के विश्वास को कोटा शहर ने जीता है. राजस्थान को वो शहर, जिसने शिक्षा नगरी का टैग हासिल किया है. आईआईटी-जेईई और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करवाने में कोटा शहर का कोई तोड़ नहीं है. टॉप 10 से लेकर टॉप 100 में सबसे ज्यादा स्टूडेंट्स कोटा के ही रहते हैं. यहां पढ़ने आने वाले हर छात्र की कामयाबी कोटा की कामयाबी की कहानी बयान करती है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कोटा की नाकामयाबी की रियल कहानियां


जाहिर है कोटा में कुछ तो ऐसा है जो यहां पढ़ने वाले छात्रों के लिए कामयाबी की गारंटी होता है. लेकिन, हर चीज की एक कीमत होती है. कोटा की कामयाबी के किस्से तो पूरी दुनिया जानती है, लेकिन कोटा की नाकामयाबी की रियल कहानियां हम आपको बताते हैं. ये उस कोटा की रियल स्टोरी है, जिस कोटा को छात्र और उनके अभिभावक सफलता की सीढ़ी मानते हैं. लेकिन, वो असल में कोटा फैक्ट्री है, जहां कोचिंग संस्थानों के लिए छात्र कच्चे माल की तरह होते हैं. जिससे इंजीनियर और डॉक्टर ढाले जाते हैं. लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में कमजोर छात्र उस बचे हुए माल की तरह होते हैं, जिनके लिए कोटा में कोई जगह नहीं बचती और फिर वो होता है, जिनकी खबरें आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनती हैं. न्यूज़ चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज़ बनती हैं.


कोटा आखिर क्यों बनता जा रहा सुसाइड प्वाइंट


आज हम रियल कोटा फैक्ट्री में बताएंगे कि युवाओं के सपनों का केंद्र बन चुका कोटा आखिर क्यों सुसाइड प्वाइंट बनता जा रहा है. हाल ही में आपने खबर सुनी होगी कि कोटा से कोचिंग ले रहे तीन छात्रों ने आत्महत्या कर ली. इस खबर ने हर उस मां-बाप को परेशान किया होगा, जिन्होंने अपने बच्चों को इंजीनियरिंग और मेडिकल परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा को सिलेक्ट किया होगा. लेकिन, अधिकतर न्यूज़ चैनलों ने इस खबर को ये कहकर गायब कर दिया कि इससे बच्चों के दिमाग पर गलत असर पड़ेगा. हो सकता है कि कोटा के कोचिंग संस्थानों के दवाब में छात्रों के सुसाइड की खबरों को छिपा दिया जाता हो. लेकिन, Zee News देशहित और समाज से जुड़े मुद्दों को हमेशा आगे रखता है, क्योंकि हमारे लिए आपका विश्वास मायने रखता है. इसलिए, हम आपको कोटा फैक्ट्री का सच बताएंगे.


आखिर कोटा में छात्र सुसाइड क्यों कर लेते हैं?


सबसे पहले ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर कोटा में छात्र सुसाइड क्यों कर लेते हैं? और कौन है जो छात्रों को सुसाइड के लिए उकसा रहा है? जोधपुर और जयपुर के बाद राजस्थान का तीसरा सबसे बड़ा शहर कोटा इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेस की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए सपनों की नगरी है और शिक्षा को व्यापार बना देने वालों के लिए कोटा फैक्ट्री. कोटा भारत में कोचिंग की राजधानी के तौर पर मशहूर है. देश के कोने-कोने से बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी के लिए कोटा पहुंचते हैं. मां बाप को लगता है कि अगर बच्चा कोटा कोचिंग पहुंच गया तो सफलता निश्चित है. यही कारण है कि माता-पिता अपने जीवन की सारी कमाई बच्चों के कोटा कोचिंग पर लगा देते हैं, लेकिन हाल फिलहाल में कोटा से बच्चों की सुसाइड की खबरों ने हमें और आप को हिला कर रख दिया है. देश के भविष्य युवा कोटा में आत्महत्या के लिए क्यों मजबूर हो रहे हैं?


कोटा विख्यात है अपने कोचिंग संस्थानों के लिए और कुख्यात है छात्रों के सुसाइड के लिए. 12 दिसंबर 2022 को कोटा में सफलता की गारंटी देने वाले कोचिंग संस्थानों से तैयारी कर रहे तीन छात्रों ने आत्महत्या कर ली, जो अपने माता-पिता की उम्मीदों को पूरा करने कोटा आए थे, लेकिन छोटी उम्र में इतना बड़ा मानसिक बोझ सह नहीं पाए. जिस कोटा में बच्चे करियर बनाने की तैयारी के लिए पहुंचते हैं. जिंदगी में कुछ कर गुजरने की हसरत लेकर पहुंचते हैं. उस कोटा में आए दिन छात्रों के सुसाइड की क्यों खबरें आती हैं.


इस मामले में अब तक कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. यहां के जो आसपास के छात्रों ने जानकारी दी कि दोनों बच्चों अपने फोन का पूरा डेटा रीसेट कर दिया था. कोटा में कोचिंग के लिए लाखों की संख्या में बच्चे पहुंचते हैं और हॉस्टल व पीजी में रहते हैं. आखिर कोटा में पढ़ने वाले छात्र इतना निराश, इतने हताश क्यों हो जाते हैं कि उन्हें दुनिया के सारे रास्ते बंद नजर आने लगते हैं. क्या खराबी कोटा की आबोहवा में है. क्यों बात इस हद तक बढ़ जाती है कि निराश छात्रों को उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती और उनकी जिंदगी अंधेरी गुफा बन जाती है, जहां से निकलना उनके लिए मुश्किल और कई बार नामुमकिन हो जाता है.


आखिर क्या है बच्चों के सुसाइड की वजह


सुसाइड वाले हॉस्टल के पास रहने वाले छात्र सुबोध यादव ने बताया, 'मैं पढ़ाई करता हूं. इस हॉस्टल में मेरे भैया भी रहा करते थे, तो मैं कभी कभी यहां आया करता था. अभी कुछ दिन पहले यहां पर 2 बच्चों ने आत्महत्या कर ली थी. दोनों ने सबसे पहले अपने मोबाइल फोन का पूरा डाटा रीसेट कर दिया था और फिर आत्महत्या की. बेडशीट की मदद से पंखे में लटककर आत्महत्या की थी. कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. ऐसा सुनने में आया कि एक बच्चा फैमिली प्रेशर में था और दूसरे का कुछ लड़की का मामला था. इस हॉस्टल के सेकंड फ्लोर पर आमने सामने के कमरे में दोनों बच्चे रहते थे.'


सुसाइड वाले हॉस्टल के बगल में प्रेस की दुकान चलाने वाले सत्यनारायण ने कहा, 'उन बच्चों ने क्यों सुसाइड किया, ये अब तक पता नहीं चल पाया. बच्चे जब कुछ बताते हैं तब ही हमें कुछ पता चल पाता है. बच्चे शेयर करते हैं कि उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है. कोई गर्लफ्रेंड के चक्कर में पड़ जाता है. कोई बच्चा पूरा कारण नहीं बताता है.


सुसाइड वाले हॉस्टल के बगल में रहने वाली और एक हॉस्टल की संचालिका शशि अग्रवाल ने बताया, 'बच्चों ने क्यों सुसाइड किया था, इसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया. वो बच्चे यहां पर 6-7 महीने से रहा करते थे. वो बच्चे कुछ लिखकर भी नहीं गए. बच्चे जब आते हैं तो हम देखकर जान जाते हैं कि बच्चे कैसे हैं. किसी किसी के माता-पिता आते हैं. तो उनसे मिल लेते हैं. सुसाइड करने वाले बच्चों के बारे में कुछ भी अलग नहीं लगा. यहां Allen कोचिंग का बोलबाला है. ये जिन बच्चों ने सुसाइड किया ये भी Allen कोचिंग में पढ़ते थे. बच्चों की सोच कब बदल जाती है, हमें पता ही नहीं चल पाता. दुःख तो बहुत हुआ है. ये बच्चे बहुत छोटी उम्र में आते हैं, उन्हें गार्जियन की जरूरत होती है. इस उम्र में भी बच्चों को सही देख रेख की जरूरत होती है.


कोचिंग छात्र सिद्धांत सिंह ने बताया, 'मैं JEE की तैयारी कर रहा हूं. मैं Allen में पढ़ता हूं. जिन बच्चों ने सुसाइड किया था वो Stress की वजह से किया था. नंबर ना आने की वजह से Stress हो जाता है. माता पिता और टीचर्स दोनों प्रेशर लगाते हैं. दबाव बहुत होता है. सुसाइड करने वाले बच्चे नीट की तैयारी कर रहे थे.


इस मामले में Allen ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया


हॉस्टल संचालिका शशि अग्रवाल और कोटा में कोचिंग करने वाले कुछ छात्रों ने दावा किया कि सुसाइड करने वाले बच्चे Allen कोचिंग में पढ़ते थे, उनके इस दावे पर हमने Allen की प्रतिक्रिया भी लेने की कोशिश की. हमने Allen कोचिंग के मीडिया प्रभारी नीतेश को फोन कर प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की, लेकिन नीतेश ने फ़ोन नहीं उठाया. हमने कई बार कोशिश की. जब फोन नहीं उठा तो हमने Allen Coaching को ईमेल भेज सवालों के जवाब मांगे हैं, लेकिन अब तक जवाब नहीं मिला. जैसे ही जवाब मिलेगा, हम उनका भी पक्ष आपको बताएंगे.


अब तक साफ नहीं हो पाई आत्महत्या की वजह


इन बच्चों की आत्महत्या के पीछे क्या वजह है, ये अब तक साफ नहीं हो पा रहा है. लेकिन, कोटा के जिलाधिकारी ओपी बुनकर के अनुसार इसके बीच की वजह प्रेशर हो सकती है. कोटा के जिलाधिकारी ओपी बुनकर ने कहा, 'अभी जिन बच्चों ने सुसाइड किया वो कई दिनों से अबसेंट चल रहे थे, कोई कोचिंग परिसर से सुसाइड नहीं जुड़ा है. पैरेंट्स को अपनी अपेक्षाएं को पूरा करने के लिए अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए.'


उन्होंने कोटा में बच्चों के सुसाइड का पूरा मामला बच्चे और उनके परिवार के ऊपर छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि इसकी जिम्मेदारी परिवार वालों की होती है. कई बार बच्चों की मर्जी के खिलाफ पैरेंट्स उन्हें भेज देते हैं. इसके लिए डीएम ने कई केस स्टडी भी बताए, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या कभी जिला प्रशासन भी अपनी कोई जिम्मेदारी देखेगा. क्या कोचिंग संस्थानों पर कोई लगाम लग पाएंगे? जिलाधिकारी की बातों से साफ है कि वो कोचिंग संस्थानों को हरी झंडी देते नजर आए.


एक दशक में 120 छात्रों ने किया सुसाइड


कोटा को देश को डॉक्टर और इंजीनियर देने की फैक्ट्री कहा जाता है, लेकिन कोटा अब छात्रों के लिए सुसाइड फैक्ट्री बनता जा रहा है. ये सच है, जिससे मुंह तो चुराया जा सकता है, लेकिन नकारा नहीं जा सकता. पुलिस रिकॉर्ड्स के मुताबिक, कोटा में पिछले एक दशक में 120 छात्रों ने सुसाइड किया है. अकेले इस साल 15 छात्रों के सुसाइड को रिपोर्ट किया गया है.


ये सरकारी आंकड़े हैं और असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हो सकते हैं, लेकिन कोटा में उन छात्रों का कोई रिकॉर्ड नहीं है जो Mental Trauma से गुजर रहे हैं. कभी पढ़ाई का प्रेशर, कभी मां-बाप की उम्मीदों का बोझ और कभी अकेलापन. कोटा में पढ़ने वाले अधिकतर छात्र कभी ना कभी ऐसे दौर से गुजरते हैं जब वो खुद को टूटता हुआ महसूस करते हैं. उनमें से कुछ ऐसे होते हैं, जो अपने सपनों को बिखरते देखना बर्दाश्त नहीं कर पाते.


पाठकों की पहली पसंद Zeenews.com/Hindi - अब किसी और की ज़रूरत नहीं.