Bihar Caste Based Survey: पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा करवाई जा रही जाति आधारित गणना पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि राज्य के पास जाति आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है और ऐसा करना संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा. अदालत के इस फैसले के बाद नीतीश सरकार को तगड़ा झटका लगा है. अदालत ने राज्य विधानसभा में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ सर्वेक्षण के आंकड़े साझा करने की सरकार की मंशा के बारे में कहा कि यह निश्चित रूप से निजता के अधिकार का सवाल है, जिसे उच्चतम न्यायालय ने जीवन के अधिकार का एक पहलू माना है.


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पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्य एक सर्वेक्षण की आड़ में एक जातिगत जनगणना करने का प्रयास नहीं कर सकता है, खासकर जब राज्य के पास बिल्कुल विधायी क्षमता नहीं है और उस स्थिति में भारत के संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत एक कार्यकारी आदेश को बनाए नहीं रखा जा सकता. 


बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर 7 से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था. दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और 15 मई तक जारी रहने वाला था. हाई कोर्ट के आदेश के बाद बीजेपी को नीतीश सरकार पर हमला करने का बहाना मिल गया. पार्टी ने उनसे इस्तीफा मांग लिया है. सर्वेक्षण पर अदालत के रोक लगाने के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पूरी सरकार को इस्तीफा दे देना चाहिए. सरकार अदालत के समक्ष इसका बचाव करने में विफल रही है. 


बता दें कि बिहार सरकार ने लोगों की जाति पूछने के लिए सर्वे की  शुरू की थी. तकनीकी पचड़ों से बचने के लिए इसे जातिगत सर्वेक्षण का नाम दिया गया था. इसके पीछे भी सोच यही थी कि राज्य सरकार को जनगणना का अधिकार नहीं है, लिहाजा इसे जातिगत सर्वेक्षण कहा गया. इसमें लोगों की जातियों, उपजातियों, सामाजिक-आर्थिक स्थिति की जानकारी ली जानी थी.


हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने फिर कहा कि यह जातीय जनगणना नहीं बल्कि कास्ट बेस्ड सर्वे है. उन्होंने कहा कि आज नहीं तो कल सब सरकारों को यह कराना ही होगा.


लोकसभा चुनाव से पहले बनेगा मुद्दा


2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दल सामाजिक न्याय के लिए जातीय जनगणना को मुद्दा बना रहे हैं. कांग्रेस भी जातीय जनगणना का समर्थन कर चुकी है. भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा, सर्वेक्षण बहुत आवश्यक है क्योंकि 1931 के बाद कोई जातिगत जनगणना नहीं की गई है और कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण और अन्य योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न सामाजिक समूहों की संख्या का एक नया अनुमान आवश्यक है. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा ने उच्च न्यायालय के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुये कहा कि इस तरह का फैसला समाज में खाई को बढ़ाने वाला होता है. 


क्या है मांग


विपक्ष की मांग है कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जाए. पिछली सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने की भी मांग की जा रही है. डीएमके, सपा, आरजेडी जैसी 20 पार्टियां सामाजिक न्याय को लेकर एकसाथ हैं.