42 साल बाद बोधघाट डैम की फिर चर्चा, 379 गांव होंगे लाभांवित तो 42 गांव के लोग हैं नाराज
बाढ़ से प्रभावित होने वाले गांव की ओर यहां हमारी लोगों से मुलाकात हुई. लोगों ने जो कहा वह जान या जमीन की शर्त पर एक को चुनने वाला था.
रायपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में इंद्रावती नदी पर बांध बनने जा रहा है. इस बांध का नाम बोधघाट है. सरकार का दावा है कि इस बांध के बन जाने से बस्तर के कृषी क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी. दंतेवाड़ा जिले के सीमा पर इस बांध को बनाने की योजना है. हालांकि इस बांध के बनने से 379 गांव लाभांवित होंगे जबकि 42 गांव के लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा. सरकार ने सर्वे शुरू कर दिया है. वहीं इस क्षेत्र के बाशिंदों की धड़कने बढ़ी हुई हैं. गांवों के लोग जमीन नहीं देंगे. उनका कहना है कि वह जान दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे.
बस्तर में सिंचाई सुविधा देने के लिए सरकार ने 1979 में जिस बांध के लिए कागज पत्तर आगे बढ़ाए गए उसे फिर से बनाने पर विचार किया जा रहा है. सरकार का दावा है कि बस्तर इलाके के 379 गांव इस योजना से लाभांवित होंगे. 1,71,075 हेक्टेयर खरीफ 1,31,075 हेक्टेयर रबी और 64,430 हेक्टेयर गर्मी की फसल की सिंचाई इस परियोजना से होगी. बस्तर के सुकमा बिजापुर दंतेवाड़ा जिले के 3,66,580 हेक्टेयर की सिंचाई इस परियोजना से होने की बात कही जा रही है. इससे 42 गांव उजड़ेंगे.
इतनी बड़ी योजना है, इतना फायदा होने जा रहा है तो बांध से प्रभावित होने वाले 42 गांव के लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं. यही जानने हम पहुंचे बाढ़ से प्रभावित होने वाले गांव. यहां हमारी लोगों से मुलाकात हुई. लोगों ने जो कहा वह जान या जमीन की शर्त पर एक को चुनने वाला था. लोगों ने कहा कि हम जान और जमीन में से जमीन को चुनेंगे. जान चली जाए, लेकिन जमीन वे सरकार को देने के लिए तैयार नहीं हैं.
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ऐसा नहीं है कि ग्रामीण ही इसका विरोध कर रहे हैं. इसका विरोध पहले भी हुआ वन्य जीव, जैव विवधता वनस्पती पौधे जो बोल नहीं सकते उनके लिए 1987 में भारतीय वन्य जीव संस्थान ने रिपोर्ट दी थी, कि यह बांध बन जाएगा तो वन्य प्राणियों को खतरा हो जाएगा. इसके बाद इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. बस्तर के एक क्षेत्र के किसानों को सिंचाई संपन्न बनाने के लिए एक क्षेत्र के किसानों की जमीन को डूबान में आना होगा. सिर्फ खेत ही नहीं डूबेंगे, लोगों की गांव से जुड़ी यादें, पुरखों की कब्र, देवी देवता, खेत, पेड़, घर, एक बसी बसाई जिंदगी जलमग्न हो जाएगी.
इंद्रावती नदी के आसपास का अपना इको सिस्टम है. लाखों की संख्या में साल से भरे जंगल हैं. जिनसे प्राणवायु मिलती है. मगरमच्छ का प्राकृतिक रहवास इस ईलाके में है. वह दिगर बात है कि, जिन ग्रामीणों को बांध बनने से विकास हो जाने की बात समझाई जा रही है. उनके गांव तक सड़क भी पूरी नहीं बन पाई है. सरकार के बांध बनाने के पीछे अपने तर्क हैं. जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे कहते हैं कि, बांध तो बनकर रहेगा, सर्वे का काम चल रहा है डिलेट प्रोजेक्ट रिपोर्ट आ जाए तो आगे का काम करेंगे.
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ग्रामीण दबी जबान में कहते हैं कि सरकार यदि ठान लें तो बांध बनाकर रहेगी. उनके विरोध को उनके क्षेत्र में फैले नक्सलीयों से जोड़कर विकास विरोधी करार दे दिया जाएगा. गांव-गांव में बैठकें होती हैं तो पुलिस चली आती है. बैठक करने नहीं दिया जाता ताकि, विरोध के स्वर इन इलाकों से बुलंद न हों. दरअसल, जिस परियोजना पर मोरार जी देसाई ने प्रधानमंत्री रहते नींव रखी. उस परियोजना को पर्यावरण को होने वाले खतरे को देखते हुए रोक दिया गया. सालों बाद जब पर्यावरण को बचाए जाने की सबसे अधिक जरूरत है. लाखों पेड़ों से भरे जैव विविधता वाले क्षेत्र को डूबान में लाने सरकारी सर्वे चल रहा है.
विधानसभा में जब पहली बार बोधघाट को लेकर चर्चा हुई तब विधानसभा में पूर्व सीएम रमन सिंह ने मुख्यमंत्री को चुनौती दे दी थी कि आप इस बांध को बनाकर दिखा दीजिए हम मान जाएंगे. उत्साह से लबरेज सीएम ने उसी समय टेबल ठोककर कह दिया इसे हम चैलेंज मानते हैं करके दिखाएंगे. दो राजनेताओं के इस संवाद से 42 गांव के लोग भयभीत हैं. न जाने कब सरकारी सुरक्षाबलों का सरकारी बेड़ा गांव में दस्तक दे जाए और आंसुओं से भीगे सहमती पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़े.
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